Deepak Ambastha
ओलंपिक खत्म हो गए, पैरा ओलंपिक भी खत्म हो गया और तो और आईपीएल भी भारत छोड़कर खाड़ी देशों में चला गया, लेकिन एसआईटी एसआईटी (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) का खेल झारखंड समेत पूरे देश में खूब चल रहा है. इस पर कोरोना वायरस का कोई असर नहीं है, यह तो ऐसा खेल है जिसमें बिना टीका कोरोना वायरस आप से आप मर जाता है.
फिलहाल अपने झारखंड की ही बात हो, हर बात पर एसआईटी बन जाती है और यह टीम खेल शुरू कर देती है. मजा यह कि इस टीम में कोई भी स्पेशल नहीं होता, वही साधारण लोग होते हैं जिनकी लापरवाही से कहा जाता है कि अपराध हो गया, कोई मारा गया ,कहीं बलात्कार हो गया , कहीं कोई जला दी गयी. बस इस इन घटनाओं की जांच जैसे एसआइटी के नाम होती है. पुलिस टीम को साधारण कहें, अति साधारण कहें और ज्यादा कहें तो निष्क्रिय और निकृष्ट लोग स्पेशल हो जाते हैं. समझ रहे हैं न ,मरें हम, आप लेकिन हम तो कोई स्पेशल हैं नहीं लेकिन हमारी मौत और फजीहत की जांच करने वाले स्पेशल हो जाते हैं. सरकार में बैठा आदमी एसआईटी बनाता है, विपक्ष में बैठे लोग खुश हो जाते हैं कि चलो एसआईटी बनायी गयी, काम हो गया क्योंकि जब वह सत्ता में था वह भी खूब एसआइटी बनाता था और अब जो सत्ता में हैं एसआइटी बना कर ऐसे ही खुश हो जाते थे जैसे आज विपक्ष में बैठे लोग खुश हैं, जान तो हम लोगों की जा रही है, इज्जत अस्मत आम लोगों की लुट रही है और खास टीम जांच कर रही है? यही खास लोग जिन घटनाओं की जांच करते हैं वैसी घटनाएं ना हों इसके लिए यही लोग नियुक्त किए गए हैं ,पैसे भी हमारे आपकी जेब से ही लेते हैं लेकिन अपराध होने के बाद यह बेचारे भी एसआईटी गठन किए जाने के इंतजार में रहते हैं, स्पेशल होना कौन नहीं चाहता?
राजधानी रांची की ताजा घटना है ओरमांझी भाजपा एसटी मोर्चा के ग्रामीण जिला अध्यक्ष जीत राम मुंडा की गोली मारकर हत्या, जीत राम पर 4 साल से जान का खतरा बना हुआ था दो बार इन पर गोली चली भी थी लेकिन वे बच गए थे, थाने से लेकर सरकार तक में इस मामले की जानकारी थी, लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है, इसे रोका कैसे जाए इसके लिए कोई एसआइटी कभी नहीं बनी, क्योंकि रोकथाम के लिए एसआईटी बनती नहीं है यह तो अपराध होने के बाद अपराधी पकड़ने के लिए बनती है, अपराध रोकना ना, सरकार और ना पुलिस विभाग की प्राथमिकता है. पुलिस विभाग तो इसलिए मस्त रहता है कि कमाई तो दरअसल अपराध में ही है. अपराध रुक गए तो क्या तनख्वाह से ही घर चलेगा ? इसलिए मेरा भी मन बड़ा मचलता है एसआईटी बनाने का, एसआईटी एसआईटी खेलने का,पर क्या करें यहीं मार खा जाते हैं. दरअसल स्पेशल और साधारण का यही तो फर्क है.
जीत राम मर गए अब खबर मिल रही है कि पुलिस के हाथ उनकी हत्या से संबद्ध कई अहम सुराग हाथ लग गए हैं, पूछा जाना चाहिए पुलिस से, दंडित किया जाना चाहिए उसे जो सुराग पाने का दावा कर रही है, सरकार या पुलिस के बड़े अधिकारी क्यों नहीं सवाल करते कि जब जीतराम की जान को जिनसे खतरा था उसकी भी जानकारी थी तो क्या एसआइटी गठित करने के लिए उसकी हत्या का इंतजार हो रहा था ?