NewDelhi : इस्लामी शासन के दौरान देश ने अपने गौरवशाली मंदिरों, विश्वविद्यालयों और मूल्य व्यवस्था को खो दिया, जबकि यूरोपीय शासकों ने राष्ट्रवाद, हिंदुत्व सामाजिकता को खत्म करने का अभियान चलाया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वरिष्ठ पदाधिकारी अरुण कुमार ने यह बात कही. आरएसएस के संयुक्त महासचिव कुमार ने कहा कि देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर पिछले 1000 साल के स्वतंत्रता संग्राम और देश इन हमलों से कैसे बचा, इन्हें याद करना जरूरी है. अरुण कुमार शनिवार को संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी जे नंद कुमार की पुस्तक एसडब्ल्यूए: स्ट्रगल फॉर नेशनल सेल्फहुड के विमोचन समारोह में बोल रहे थे.
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भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बारे में चर्चा की जरूरत है
कुमार ने कहा कि देश में भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बारे में चर्चा की जरूरत है इस बात की चर्चा जरूरी है कि इस्लामिक आक्रमण से पहले भारत कैसा था और यूरोपीय आक्रमण से पहले क्या था. अपने भाषण के क्रम में कुमार ने कहा, देश में स्मृति हानि हुई है और इसका कारण यह है कि हमने इस्लामी शासन के खिलाफ संघर्ष के दौरान विश्वविद्यालयों, मंदिरों और संपूर्ण मूल्य प्रणाली सहित अपने विभिन्न संस्थानों को खो दिया है.
उन्होंने कहा कि देश इस्लामिक शासन से लड़ने में सक्षम था क्योंकि इसकी परिवार प्रणाली और गांवों में सामाजिक व्यवस्था बरकरार थी. यूरोपीय आक्रमण को लेकर कुमार ने कहा कि यह समझने की जरूरत है कि वे एक विशिष्ट उद्देश्य और पृष्ठभूमि के साथ आये थे. साथ ही अरुण कुमार ने कहा, उन्होंने श्वेत व्यक्ति सर्वोच्चता स्थापित करने तथा राष्ट्रवाद, हिंदुत्व एवं सामाजिकता को देश से मिटाने की कोशिश की.
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यूरोपीय लोगों ने देश को धार्मिक और जाति के आधार पर विभाजित किया
कुमार ने कहा, ईस्ट इंडिया कंपनी, डच, ब्रिटिश और पुर्तगाली इंजील ताकतों से प्रेरित होकर यहां आये थे. उन्होंने अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका को उपनिवेश बनाया और फिर अपने पिछले आक्रमणों के अनुभव के साथ एशिया आये. उन्होंने देश में व्हाइट-मैन वर्चस्व और डी-नेशनलाइजेशन, डी-हिंदूकरण और डी-सोशलाइजेशन स्थापित करने की कोशिश की. कहा कि इस व्यापक हमले का जवाब पूरे देश में व्यापक प्रतिरोध के साथ दिया गया.
अपनी शिक्षा प्रणाली के माध्यम से, यूरोपीय लोगों ने नयी पहचान बनाने की कोशिश की और देश को धार्मिक और जाति के आधार पर विभाजित किया, कुमार ने कहा कि यह उनकी शिक्षा का परिणाम था कि जो लोग 1905 में बंगाल के विभाजन के लिए तैयार नहीं थे, वे 1947 में भारत का विभाजन के लिए सहमत हो गये.