Ahmedabad : क्या सरल होना राजनीति में गुनाह है? यह सवाल गुजरात के पूर्व सीएम विजय रुपाणी की बेटी राधिका रुपाणी का है. उनका सवाल पूछना लाजिमी भी है. गुजरात में कल भूपेंद्र पटेल ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. बता दें कि पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी की बेटी राधिका रुपाणी ने सोशल मीडिया के जरिए इस राजनीतिक घटनाक्रम पर अपने विचार रखे हैं.
इस क्रम में राधिका ने लिखा. कल बहुत सारे राजनीतिक विश्लेषकों ने उनके काम और भाजपा कार्यकाल की बातें करते हुए छोटी-छोटी बातें कहीं, मैं उनकी आभारी हूं. उनके अनुसार पापा का कार्यकाल एक कार्यकर्ता के रूप में शुरू हुआ, जिस के बाद चेयरमैन, मेयर, राज्यसभा के सदस्य, टूरिज्म चेयरमैन, भाजपा के अध्यक्ष, मुख्यमंत्री तक. लेकिन राधिका के अनुसार उनके पापा 1979 मोरबी की बाढ़, कच्छ का भूकंप, गोधराकांड, बनासकांठा में बाढ़, ताऊते, और कोरोना में हरपल काम करते रहे है.
राधिका लंदन में रहती हैं
राधिका लंदन में रहती हैं. उन्होंने रविवार (12 सितंबर, 2021) को यह बातें फेसबुक पोस्ट के जरिए कहीं. विजय रूपाणी फ्रॉम दि आईज ऑफ ए डॉटर शीर्षक वाले पोस्ट में उन्होंने पिता की मृदुभाषी छवि को नष्ट करने वाले सभी लोगों की निंदा की. आगे पिता के सियासी जीवन के उदाहरणों का जिक्र किया और बताया कि कैसे वह एक संवेदनशील नेता बनना चाहते थे.
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हर जिम्मेदारी को पापा ने निभाया
राधिका ने लिखा है, उन्होंने कभी अपने पर्सनल काम को नहीं देखा है, जो ज़िम्मेदार मिली है उसे पहले किया है. कच्छ के भूंकप में भी लोगों की मदद के लिए सब से पहले गये थे. बचपन में कभी हमें मम्मी-पापा घुमाने नहीं ले जाते थे, वो किसी कार्यकर्ता के यहां ले जाते थे. ये उनकी परंपरा रही है. स्वामी नारायण अक्षरधाम मंदिर में आंतकी हमले के वक्त मेरे पिता वहां पहुंचने वाले पहले शख्स थे, वह नरेंद्र मोदी से पहले ही मंदिर परिसर पहुंचे थे.
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तीन बजे भी फोन आये तो नम्रता से बात करनी है
उन्होंने आगे लिखा है, बहुत कम लोग जानते होंगे के जब ताऊते आया तो वो रात को दो बजे तक सीएम डेस्क बोर्ड के ज़रिए लोगों से संपर्क कर रहे थे. सालों तक हमारे घर का एक ही प्रोटोकॉल था. किसी का भी रात को तीन बजे भी फ़ोन आये तो नम्रता से बात करनी है. कोई भी इन्सान किसी भी टाइम घर पर आये और पिताजी ना हों तो, चाय नाश्ते के बिना ना जाने दिया जाये. सरल स्वाभाव रखना. आज हम हमारे फ़ील्ड में सेटल हो पाये और विनम्र हैं तो इसका श्रेय हमारे माता-पिता को जाता है.
Vijaybhai’s soft spoken image worked against him
मैंने हेडलाइन पढ़ी, Vijaybhai’s soft spoken image worked against him. अपने पोस्ट में राधिका रुपाणी ने लिखा है, मुझे एक सवाल पूछना है, क्या संवेदनशील, शालीनता नहीं रखनी चाहिए? क्या हम एक नेता में यह जरूरत गुण नहीं तलाशते हैं? मतलब soft spoken image? जहां-जहां गुंडागर्दी और जुर्म की बात है वहां उन्होंने काफ़ी कड़े कदम उठाये हैं. सीएम डेस्कबोर्ड से शुरू कर, लैंड ग्रैबिंग एक्ट, लव जिहाद, गुजकोका,दारुबंदी सबूत है, पूरा दिन गंभीर होकर, मुंह फुलाकर घूमना क्या यही नेता की निशानी है?
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पापा कभी गुटबाजी या साजिश को समर्थन नहीं देते
राधिका ने लिखा कि हमारे घर में कई बार इस मामले पर बातचीत हुई, जब इतना सारा, भ्रष्टाचार, नकारात्मकता राजनीति में है तो ऐसे में वो सरल स्वभाव के साथ टिक पायेंगें? क्या यह पर्याप्त होगा? लेकिन पापा हमेशा एक बात कहते थे, राजनीति की छवि फिल्मों और पुराने लोगों से गुंडे और मनमानी करने वाले लोगों जैसी बना दी गयी है. हमें इस नजरिए को बदलना है. पापा कभी गुटबाजी या साजिश को समर्थन नहीं देते. वही उनकी ख़ासियत है. कोई राजनीति विशेषज्ञ ये सोचता है कि उनका कार्यकाल ख़त्म हो गया है, तो Nuisance या Resistance से भी RSS और BJP के सिद्धांत के अनुसार सत्ता के मोह के बिना उसे छोड़ना किसी भी अन्य चीज से ज्यादा हिम्मत भरा काम है.