इस स्कूल में नामांकित हैं 172 बच्चे, छात्रावास के लिए अभिभावक उठा रहे खर्च
20 शिक्षक और दो गार्ड हैं बहाल, प्रतिभावान बनाए जा रहे नौनिहाल
Pramod Upadhyay
Hazaribagh : हजारीबाग के दीपूगढ़ा में संचालित मूक-बधिर विद्यालय पांच साल से बिना फंड के चल रहा है. फिर भी नौनिहालों के सपनों को यह विद्यालय पंख लगा रहा है. यहां 172 बच्चे नामांकित हैं. स्कूल का छात्रावास भी है, जहां 110 बच्चे रहते हैं. इशारों में अनुष्का केरकेट्टा महाराष्ट्र की दृष्टिबाधित आईएएस ऑफिसर प्रांजल पाटिल का उदाहरण देते हुए बताती हैं कि जब वह आईएएस बन सकती है, तो मैं क्यों नहीं बन सकती. उसी तरह कई विद्यार्थी डॉक्टर बन पीड़ितों की सेवा करने की बात लिखकर करती है. बच्चों के अभिभावक ही छात्रावास का खर्च वहन कर रहे हैं. वर्ष 2017 से स्कूल को सरकार का फंड मिलना बंद हो गया. तब से अभिभावक 1000 रुपए प्रतिमाह हॉस्टल चार्ज और ट्यूशन फी के नाम पर 500 रुपए देते हैं. पहले यह विद्यालय पीटीसी प्रशिक्षण ग्राउंड के पीछे वर्ष 1995 से चल रहा था. इस विद्यालय में करीब दर्जनभर जिलों के मूक बधिर विद्यार्थी नामांकित हैं. हजारीबाग, रामगढ़, गढ़वा, दुमका, रांची, लातेहार, गुमला, कोडरमा, धनबाद, सिमडेगा, चतरा और गिरिडीह के बच्चे यहां रहकर पढ़ाई करते हैं. स्थानीय बच्चे छात्रावास में नहीं रहते हैं. वे घर से पठन-पाठन के लिए स्कूल आते हैं. कुदरत ने भले ही इनके शरीर के कुछ अंग प्रभावित कर दिए हों, लेकिन सभी नौनिहाल कुशाग्र बुद्धि के हैं. इन बच्चों की प्रतिभा में चार चांद लगाने के लिए 20 शिक्षक और सुरक्षा के लिए दो गार्ड बहाल हैं.
सरकारी मदद मिलती, तो कुछ और होती तस्वीर : सिस्टर रोशनी
स्कूल की प्रिंसिपल सिस्टर रोशनी कहती हैं कि सरकारी मदद मिलती, तो इस स्कूल और यहां के बच्चों की तस्वीर कुछ और होती. अचानक फंड आना बंद हो गया और कुछ कारण भी स्पष्ट नहीं किया गया. वह कहती हैं कि प्रति बच्चा 1000 रुपए भी कम पड़ते हैं. हर बच्चे को प्रत्येक दिन 33 रुपए में तीन वक्त का भोजन जुटाना आसान नहीं है. कुछ ईसाई मिशनरीज से फंड मिलते हैं, तो किसी प्रकार काम चल रहा है. यहां के बच्चों को हर विधा में पारंगत बनाने का प्रयास रहता है.
कक्षा 10वीं तक ही होती है पढ़ाई
इस स्कूल में कक्षा दसवीं तक की पढ़ाई होती है. जिला प्लस टू हाई स्कूल से मैट्रिक का रजिस्ट्रेशन कराया जाता है. यहां सभी बच्चे का कुछ न कुछ बनने और जीवन में आगे बढ़ने का सपना है. यहां लड़कियों की संख्या ज्यादा है. मूक-बधिर होने के कारण इशारों में ही सब कुछ बयां करते हैं. लिखने में यहां के बच्चे काफी एक्सपर्ट हैं. अधिकांश बच्चे गरीब परिवार से हैं.
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