NewDelhi : नोटबंदी के छह साल बीत जाने के बाद भी इसके फायदे-नुकसान को लेकर बहस जारी है. मोदी सरकार का दावा है कि इससे अर्थव्यवस्था को औपचारिक रूप देने में मदद मिली, जबकि आलोचकों का कहना है कि यह फैसला काले धन पर अंकुश लगाने और नकदी पर निर्भरता को कम करने में विफल रहा है. याद करें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर, 2016 को अर्थव्यवस्था में भ्रष्टाचार और काले धन की समस्या को दूर करने के उद्देश्य से 500 और 1,000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया था. इस कदम का उद्देश्य भारत को कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था बनाना था. यह भी कहा गया कि इससे काले धन पर अंकुश लगाने तथा आतंकवाद के वित्तपोषण को खत्म करने में मदद मिलेगी.
काला धन नहीं आया, बस ग़रीबी आई
इकॉनमी कैशलेस नहीं, कमज़ोर हुई
आतंकवाद नहीं, करोड़ों छोटे व्यापार और रोज़गार ख़त्म हुए
‘राजा’ ने नोटबंदी में, ‘50 दिन’ का झांसा दे कर अर्थव्यवस्था का DeMo-lition कर दिया।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) November 7, 2022
पिछले 6 साल में अर्थव्यवस्था में जो कैश-इन-सर्कुलेशन है, वो 72% बढ़ा है।
2016 में अर्थव्यवस्था में कैश सर्कुलेशन 17.97 लाख करोड़ था, जो आज 30.88 लाख करोड़ हो चुका है।
कैशलेस से लेस कैश होते-होते कैश सर्कुलेशन 72% बढ़ा है: श्री @GouravVallabh
— Congress (@INCIndia) November 8, 2022
अर्थव्यवस्था खत्म हो गयी है
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मोदी सरकार पर हल्ला बोलते हुए ट्वीट किया कि नोटबंदी का वादा देश को काले धन से मुक्त करने का था लेकिन इसने व्यवसायों को नष्ट कर दिया और नौकरियां खत्म कर दी हैं. मोदी के मास्टरस्ट्रोक के छह साल बाद जनता के पास उपलब्ध नकदी 2016 की तुलना में 72% अधिक है. प्रधानमंत्री ने अभी तक इस विफलता को स्वीकार नहीं किया है जिसके कारण अर्थव्यवस्था का खत्म हो गयी है.
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आतंकी फंडिंग पर अंकुश लगाने जैसे अपने उद्देश्यों में नोटबंदी फ़ेल हुई है
खड़गे ने अपने ट्वीट के साथ एक रिपोर्ट साझा की कि आज प्रचलन में नकदी 30.88 लाख करोड़ रुपये है जबकि नवंबर 2016 में यह केवल 17.97 लाख करोड़ रुपये थी. नोटबंदी के घोषित उद्देश्यों में से एक डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देना था जैसा कि सरकार ने महसूस किया था. बहुत अधिक नकदी चलन में थी. लेकिन अब नकदी में तेज उछाल ने सरकार के उस उद्देश्य को स्पष्ट रूप से विफल कर दिया है. कहा कि भ्रष्टाचार से लड़ने, नकली नोटों को बाहर निकालने और आतंकी फंडिंग पर अंकुश लगाने जैसे अपने उद्देश्यों में नोटबंदी फ़ेल हुई है.
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राहुल गांधी ने भी बोला हमला
राहुल गांधी उस वक्त कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में नोटबंदी के फैसले के विरोध में थे, उन्होंने सोमवार को ट्वीट कर कहा कि इससे कारोबार और करोड़ों नौकरियां खत्म हो गयी, आतंकवाद नहीं गया। सम्राट(पीएम मोदी) ने 50 दिनों में लोगों को बेहतर परिणाम का भ्रम देकर भारत की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया.
चलन में मौजूद मुद्रा का स्तर नोटबंदी से अब तक 71 प्रतिशत बढ़ा.
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा पखवाड़े के आधार पर शुक्रवार को जारी धन आपूर्ति आंकड़ों के अनुसार, इस साल 21 अक्टूबर तक जनता के बीच चलन में मौजूद मुद्रा का स्तर बढ़कर 30.88 लाख करोड़ रुपये हो गया. यह आंकड़ा चार नवंबर, 2016 को समाप्त पखवाड़े में 17.7 लाख करोड़ रुपये था. इस तरह चलन में मौजूद मुद्रा का स्तर नोटबंदी से अब तक 71 प्रतिशत बढ़ा. एसबीआई के अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट के अनुसार इस साल दिवाली वाले सप्ताह में प्रणाली में नकदी या मुद्रा (सीआईसी) में 7,600 करोड़ रुपये की कमी हुई. लोगों के बीच डिजिटल भुगतान के लोकप्रिय होने के कारण ऐसा हुआ.
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भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय एक संरचनात्मक बदलाव के दौर से गुजर रही है.
रिपोर्ट में साथ ही कहा गया कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय एक संरचनात्मक बदलाव के दौर से गुजर रही है. एसबीआई की शोध रिपोर्ट के अनुसार भुगतान प्रणाली में सीआईसी की हिस्सेदारी 2015-16 में 88 प्रतिशत से घटकर 2021-22 में 20 प्रतिशत रह गयी. इसके 2026-27 तक घटकर 11.15 प्रतिशत रह जाने का अनुमान है. इसी तरह डिजिटल लेनदेन 2015-16 में 11.26 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 80.4 प्रतिशत हो गया. इसके 2026-27 तक बढ़कर 88 प्रतिशत होने की उम्मीद है.
नोटबंदी के लिए अपनायी गयी प्रक्रिया गलतियों से भरी थी
अमेरिका के मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर जयति घोष ने कहा कि नोटबंदी के लिए दिया गया तर्क (काले धन की वजह नकदी है), इसकी योजना (अनौपचारिक क्षेत्र में नकदी की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार न करना, जिस पर 85 प्रतिशत आबादी निर्भर है) और कार्यान्वयन (सरकारी एजेंसियों तथा बैंकों को तैयारी का मौका दिये बिना अचानक की गयी नोटबंदी), सभी पूरी तरह गलतियों से भरे थे. इस बीच एसबीआई के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्य कांति घोष ने ट्वीट कर कहा कि डिजिटल लेनदेन बढ़ने से प्रणाली में मौजूद नकदी उल्लेखनीय रूप से कम हुई है.
लोग अभी भी रियल एस्टेट लेनदेन में काले धन का इस्तेमाल कर रहे हैं
लोकल सर्किल की एक रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी के छह साल बाद भी यह स्पष्ट नहीं है कि इस बड़े फैसले ने अपने लक्ष्य को हासिल किया या नहीं. उपलब्ध सबूतों से पता चलता है कि लोग अभी भी रियल एस्टेट लेनदेन में काले धन का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके अलावा हार्डवेयर, पेंट और कई अन्य घरेलू उत्पादों की बिक्री बिना उचित रसीद के की जा रही है. नोटबंदी के बाद सरकार ने 2,000 रुपये के नये नोट जारी किये. साथ ही 500 और 200 रुपये के नये के नोटों की श्रृंखला पेश की गयी.