Gyan Vardhan Mishra
Dhanbad : धनबाद (Dhanbad) झरिया की अस्मिता पर संकट के काले बादल फिर मंडराने लगे हैं. धरती के नीचे आग और ऊपर भू धंसान की बढ़ती घटनाओं ने नागरिकों की चिंता पर घी डालने का काम किया है. हालांकि यहां के नागरिक इसके अभ्यस्त ही चुके हैं या झेलने को विवश हैं. कोयलांचल के इस क्षेत्र में कोई साठ हजार करोड़ रुपये का कोयला दबा पड़ा है. इसकी निकासी के लिए झरिया को उजाड़ना ही होगा, एक नया झरिया बसाना ही पड़ेगा. गौरवशाली अतीत की याद, वर्तमान में झेले सुख-दुख और भविष्य की कल्पनाएं झारियावासियों के दिलोदिमाग से नहीं उतर रही हैं.
कोयला मंत्रालय सक्रिय, झरियावासी चिंतित
दरअसल कोई भी नया शहर एक-दो वर्ष में न तो बनता है, न बसता है. लेकिन एक नया झरिया शहर बनाने की तीन दशक पूर्व बनी योजना फाइलों में अब भी जिंदा है। लेकिन उसके नक्शे से झरिया शहर गायब , सिवाय खानापूर्ति के। स्थिति-परिस्थिति बदली और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने स्थिति को गंभीरता से लिया है. कुछ कर दिखाने के मजबूत इरादे के साथ कोयला मंत्रालय भी सक्रिय हो उठा है. एक माह के भीतर ही कोयला सचिव अमृत लाल मीणा की दो बार झारखंड यात्रा, अग्निप्रभावित क्षेत्रों का दौरा और प्रभावितों का कुशल-क्षेम जानने के बाद सूबे के सर्वोच्च प्रशासनिक अधिकारियो के साथ समीक्षा बैठक व सीएम हेमंत सोरेन से वार्ता आदि केंद की सक्रियता बयां कर रही है.
बगैर नया शहर बसाए उजाड़ना नामुमकिन
झरिया शहर के गर्भ में अब भी साठ हजार करोड़ रुपये का कोयला है. इसकी निकासी के लिए समूचे शहर को साफ करना होगा अर्थात पूरी आबादी को किसी नई जगह बसाना होगा. एक नए झरिया शहर को योजनाबद्ध तरीके से बनाने-बसाने पर 10-15 हजार करोड़ रुपये के खर्च का पुराना दस्तावेजी अनुमान है. तब इसे घाटे का सौदा नहीं बताया गया था. बाद में बलियापुर के पास बेलगड़िया में कुछ को बसाया तो गया लेकिन वह सुविधा उन्हें मयस्सर नहीं, जो झरिया में मिलती थी. अबतक के अनुसंधान, तर्क वितर्क व विद्वानों के अनुसार बगैर नया शहर बसाए झरिया को उजाड़ना नामुमकिन है.
सिमट रही है झरिया, दशकों से चल रही उल्टी गिनती
झरिया का विस्थापन तय है. यह होगा ही. हो रहा है. पिछले करीब पचास साल से झरिया विस्थापन की चल रही प्रक्रिया कभी जोर, तो कभी मद्धिम पड़ जाती है. राजनीति होती है और झरिया विस्थापन पर पर्दा डाल दिया जाता है. परदे में झरिया का विस्थापन अनवरत जारी है. सवाल है कौन नहीं हटेंगे? सब हट गये. बड़े मारवाड़ी से लेकर बेलगड़िया में छोटे लोग तक चले गये. बड़े लोगों का कारोबार तब सिर्फ झरिया में था, अब झरिया में बस एक शाखा है. थोक गल्ला व्यापार जो झरिया की जान था, कई दशक पहले हटा. फिर, फल- सब्ज़ी का थोक कारोबार थमा. झरिया, सिमट रही है. झरिया की उल्टी गिनती दशकों से चल रही है. कुछ वर्ष पहले राजा शिवप्रसाद कालेज हटाया गया था तो राजनीति थोड़ी गर्म हुई थी. फिर, सब सामान्य हो गया था.
किंकर्तव्यविमूढ़ नागरिक, कंपनी मकसद में आमादा
नए सिरे से फिर उठी चर्चा और शासन-प्रशासन की सक्रियता ने झारियावासियों को चिंता में डाल दिया है. अपने प्राचीन शहर की पहचान के मिटने का दर्द और नई पहचान बनाने का जोखिम भरा काम अपने सीने में दबाए झारियावसी किंकर्तव्यविमूढ़ हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी यहां गुजार चुके नागरिक मरता क्या न करता कि स्थिति में हैं. आशंका है कि कोयला को जल्द से जल्द नहीं निकाला गया तो बढ़ती भूमिगत आग में यह अमूल्य ऊर्जा भंडार जल कर नष्ट हो जाएगा.
रुक-रुक कर चल रहे चरणबद्ध अभियान में अब तेजी
नवीनतम सूचना के मुताबिक रुक-रुक कर चल रहे चरणबद्ध अभियान के तहत झरिया कोयलांचल के 9 क्षेत्रों के 70 स्थानों पर रहने वाले लोगों को हटाना है. उनकी संख्या 12 हजार से अधिक है. विस्थापन की कार्रवाई उस झरिया पुनर्वास योजना के तहत होनी है, जो दशकों पूर्व बनी थी. बीसीसीएल प्रबंधन ने अपने सभी नौ क्षेत्रों के जीएम को कब्जे वाली जगह खाली कराने का निदेश दिया है. अग्नि और भू धंसान का जिस एरिया में ज्यादा असर है, उसमें बरोरा, ब्लाक टू, गोविंदपुर, कतरास, सिजुआ, कुसुंडा, पुटकी बलिहारी, और लोदना शामिल हैं. इन क्षेत्रों में कुल 1982 रैयत, 10,308 अवैध कब्जाधारी और 678 Bएसईसीएल के कर्मी हैं, जिन्हें हटाया जाएगा. बीसीसीएल की ओर से सौंपी गई सूची को गंभीरता से लेते हुए डीसी संदीप सिंह ने संबंधित अंचलाधिकारियों को जांच करने का निदेश दिया है.
भू स्वामित्व का विवाद भी काफी पुराना
उधर झरिया कोयलांचल में भू स्वामित्व को लेकर विवाद काफी पुराना है. लोगों का मानना है कि झरिया की सारी जमीन रैयती है. इसलिए बीसीसीएल का यह दावा गलत है कि यह उनकी संपत्ति है और बसे लोग अनधिकृत हैं. यहां डेढ़-दो सौ वर्षों से लोग रहते आ रहे हैं, जबकि कोयला के राष्ट्रीयकरण को मात्र चार-पांच दशक ही हुए हैं. वैसी परिस्थिति में यदि बीसीसीएल ने खदान ली तो उस वक्त लोगों को हटाने की कार्रवाई क्यों नहीं की ?
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