Jamshedpur (Ashok Kumar) : पूर्व सांसद सह आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर कहा है कि पारसनाथ पहाड़ मरांगबुरू को आदिवासियों के सुपुर्द किया जायेगा. मारंग बुरु अर्थात झारखंड के गिरिडीह जिला के पीरटांड़ प्रखंड में अवस्थित पारसनाथ पहाड़ संताल आदिवासियों का ईश्वर है. संताल आदिवासी अपनी सभी पूजा-अर्चनाओं में सबसे पहले “हिरला मारंग बुरू हिरला” का उच्चारण करते हैं. पारसनाथ पहाड़ में आदिवासियों का जाहेरथान अर्थात पूजा स्थल भी है.
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राम मंदिर और मक्का मदीना से कम नहीं
जहां युग-युग से आदिवासी पूजा अर्चना और धार्मिक-सांस्कृतिक सेंदरा या शिकार भी करते आ रहे हैं. यह मारंग बुरू मुसलमानों के मक्का मदीना, हिंदुओं के अयोध्या राम मंदिर, ईसाइयों के रोम वैटिकन सिटी गिरजाघर और सिखों के स्वर्ण मंदिर से कम महत्वपूर्ण नहीं है. अतः सरकारों द्वारा आदिवासियों की धार्मिक मान्यता और भावनाओं पर हमला करते हुए आदिवासियों को पूर्णता दरकिनार कर मारंग बुरू को आदिवासियों से छीनकर जैनियों को सुपुर्द करना मतलब आदिवासियों के भगवान का कत्ल करने जैसा है. आदिवासियों का धार्मिक अन्याय, अत्याचार और शोषण करना है. आदिवासी सेंगेल अभियान भारत और विश्व के आदिवासी समुदायों की तरफ से इसका विरोध करते हुए इसके पुर्न वापसी की मांग करता है. मारांगबुरु पर आदिवासियों का प्रथम अधिकार है. इसकी पुष्टि इंग्लैंड में अवस्थित प्रिवी काउंसिल ने भी 1911 में जैन बनाम संताल आदिवासी के विवाद पर संताल आदिवासियों के पक्ष में फैसला देकर किया था.
आदिवासियों के अस्तित्व, पहचान व हिस्सेदारी पर है हमला
आदिवासियों की मांग है मारंग बुरु अर्थात हमारे ईश्वर को हमें अविलंब वापस कर दिया जाए. पारसनाथ पहाड़ हमारे लिए ईश्वर से थोड़ा भी कम नहीं है. मारांगबुरु पर हमला आदिवासियों के अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी पर हमला है. अतः इसे जैन धर्मावलंबियों को सुपुर्द करना हमारे ईश्वर को सुपुर्द करना है. हमारे ईश्वर की हत्या करना है.
देश के सभी पहाड़-पर्वत को आदिवासियों को सौंपा जाये
सालखन का कहना है कि मारांग बुरू अर्थात पारसनाथ पहाड़ ही नहीं बल्कि देश की सभी पहाड़-पर्वतों को आदिवासी समाज को सौंप दिया जाए. सभी पहाड़ पर्वतों में आदिवासियों के देवी-देवता वास करते हैं और आदिवासी भी वास करते हैं. आदिवासी प्रकृति और पर्यावरण को अपना पालनहार और ईश्वर मानते हैं. इसलिए आदिवासियों के देवी देवता और प्रकृति पर्यावरण की रक्षा, जो आदिवासी कर सकते हैं, द्वारा विश्व मानव समुदाय की भी रक्षा संभव है. जबकि बाकी अधिकांश लोगों के लिए पहाड़-पर्वत टिंबर और खनिज पदार्थों का भंडार है और व्यवसायिक कारणों से दोहन और मुनाफे का केंद्र मात्र है.
लुगू बुरु को पर्यटन स्थल घोषित कर हिंदूकरण का प्रयास
झारखंड में जेएमएम की सोरेन सरकार ने जहां मारांग बुरु (पारसनाथ पहाड़) को जैनियों को सौंपकर इसका जैनीकरण करने की कोशिश की है. तो लुगू बुरु को पर्यटन स्थल घोषित कर इसके हिंदूकरण का प्रयास किया है. जो गलत है और इन्हें अविलंब मुक्त कर आदिवासियों को सौंप दिया जाए. दिशोम गुरु शिबू सोरेन के नेतृत्व में जेएमएम पार्टी ने अबतक केवल वोट और नोट की राजनीतिक लाभ के लिए संताल परगना (झारखंड) का ईसाईकरण और इस्लामीकरण कर असली सरना आदिवासियों के साथ लगातार अन्याय, अत्याचार, शोषण कर रहा है. संताल परगना हमारे लिए 22 दिसंबर 1855 को अंग्रेजों द्वारा संघर्ष के उपरांत स्थापित महान भूभाग- मातृभूमि है. इसकी रक्षा अविलंब अनिवार्य है.
आंदोलनरत है आदिवासी सेंगेल अभियान
आदिवासी सेंगेल अभियान, आदिवासी समाज की तरफ से मारांगबुरु को बचाने और सरना धर्म कोड की मान्यता के लिये झारखंड, बंगाल, बिहार, ओड़िशा, असम आदि प्रदेशों के लगभग 50 जिले मुख्यालय में 17 जनवरी, 2023 को एक दिवसीय धरना प्रदर्शन आदि के माध्यम से आपको ज्ञापन- पत्र प्रेषित कर सकारात्मक कार्रवाई हेतु आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता है.
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