Anand Anal
Dhanbad : धनबाद (Dhanbad) केंद्र सरकार और बीसीसीएल झरिया के अग्नि प्रभावित व भू धंसान क्षेत्र में कोयला उत्पादन बढ़ाने पर आमादा है, जबकि पीड़ित लोग एक बार फिर विस्थापन का दंश झेलने के लिए विवश किये जा रहे हैं. हाल ही कोयला सचिव का कोयलांचल दौरा और अब विगत 11 जनवरी को झारखंड सरकार के मुख्य सचिव के साथ कोयला सचिव अमृतलाल मीणा की बैठक के बाद स्पष्ट हो गया है कि सरकार व बीसीसीएल को सिर्फ कोयला निकालने में दिलचस्पी है. सरकार की इस मंशा को भांप कर अग्निप्रभावित लोगों के बीच उबाल आ गया है, जबकि सरकार से आस लगाए झरिया के लोग एक बार फिर खुद को ठगा महसूस करने लगे हैं.
एक वह भी जमाना था, अब एक दौर यह भी
एक जमाना था, जब झरिया का कोयला देश-विदेश में डंका पीट रहा था. कालांतर में खदानों से निकलनेवाला उच्च गुणवत्ता वाला वही कोयला आग बन कर तबाही का संदेश फैलाने लगा. कोयला खदानों की इस आग को बुझाने के लिए भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) ने बालू का सहारा लिया. खदानों में बालू भर कर आग बुझाने की चेष्टा कहां तक कामयाब हुई, नहीं कहा जा सकता. परंतु बालू भराई का ठेका लेनेवाले ठेकेदार, इंजीनियर और बिचौलिये मालामाल जरूर हो गए. आग फैलती रही और फिर झरिया को उजाड़ने की ही मुहिम शुरू हो गई. क्योंकि केंद्र सरकार और बीसीसीएल ज्यादा से ज्यादा कोयला निकालने की जुगत में भिड़ी हुई थी. इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए झरियावासियों को हटाना जरूरी था.
बीसीसीएल की जिम्मेदारी व अशांत लोग
इधर झरिया के लोगों ने भी शहर से नहीं हटने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया. झरियावासियों की एक ही मांग थी कि उचित जगह और सुविधाएं मुहैया कराये बगैर वे कहीं नहीं जाएंगे. कुछ नेताओं और बुद्धिजीवियों का तो यह भी कहना था कि बीसीसीएल अपनी जिम्मेवारी से भागने के लिए यहां के लोगों को ही भगाने के लिए उतावला हो रहा है. उनका कहना था कि आउटसोर्सिंग और कोयले की अवैध तस्करी के कारण झरिया के लोगों के बीच दहशत फैलाई जा रही है. कंपनी व सरकार चाहती है कि भय से लोग झरिया छोड़ कर भाग जाएं तो देश में सबसे उत्तम कोटि का कोयला यहां से निकाला जा सके. हालत यह है कि झरिया की 21 से अधिक जगहों को भू धंसान और अग्नि प्रभावित क्षेत्र घोषित किया जा चुका है.
मास्टर प्लान के कार्यान्वयन पर ज्यादा जोर
हालांकि भू धंसान व अग्नि प्रभावित लोगों को अन्यत्र बसाने के लिए झरिया मास्टर प्लान के क्रियान्वयन को लेकर केंद्र सरकार की चिंता भी बढ़ गई है. मास्टर प्लान के अनुसार अग्नि प्रभावित 595 में से 70 अति खतरनाक क्षेत्र घोषित किये गए हैं. इन 70 जगहों पर 12240 परिवारों को प्राथमिकता के आधार पर बसाने की योजना पर काम होगा. हाल ही कोयला सचिव अमृत लाल मीणा और राज्य के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह के साथ बैठक में इस मामले पर सहमति भी बनी है. आंकड़ों के अनुसार इन 70 जगहों में निवास कर रहे 1900 रैयत, 9800 अतिक्रमणकारी और 540 बीसीसीएल कर्मी शामिल हैं. ये वैसे स्थल हैं, जहां कोयला खनन शुरू नहीं हो सका है. यही केंद्र सरकार और कोयला सचिव की मुख्य चिंता भी है.
पुनर्वासित लोगों के लिए बेड़ी बन गया बेलगड़िया
मगर पुनर्वास के लिए जो भी योजना बनी या फिर जिन योजनाओं को अमल में लाया गया, उनसे प्रभावित लोग ही संतुष्ट नहीं हैं. ऐसे प्रभावित लोगों को बसाने के लिए बेलगड़िया में जो भी क्वार्टर बनाए गए हैं, उनमें सुविधाओं का घोर अभाव है. लोगों का कहना है कि कंपनी व सरकार ने सिर्फ रहने को छत का प्रबंध कर दिया है. क़ॉलोनी में न ढंग की सड़क है, न रोजी-रोटी का कोई साधन है. शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं का तो दूर दूर तक पता नहीं. जो लोग वहां रह रहे हैं, उन्हें रोज ब रोज असुविधाओं से जूझना पड़ता है. हालत यह है कि भूधंसान व अग्नि प्रभावित क्षेत्र में निवास कर रहे लोग बेलगड़िया का नाम सुन कर ही सहम जाते हैं. उनके लिए धंसान व आग के रूप में एक ओर कुआं है तो बेलगड़िया टाउनशिप उन्हें खाई की तरह डरा रहा है.
रंग ला रहा है कोयला सचिव का प्रयास
पिछले दिनों कोयला सचिव ने झरिया के इन भू धंसान व अग्नि प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया था. लोगों ने उन्हें अपना दुखड़ा सुनाया. इसके अलावा बेलगड़िया टाउनशिप नहीं जाने की जिद पर भी लोग अड़े रहे. तर्क वही कि बगैर रोजी-रोटी के निवास कैसा. सुविधाएं ही नहीं तो रहन-सहन का मतलब ही क्या. दूसरी ओर कोयला सचिव जब बेलगड़िया टाउनशिप पहुंचे और वहां निवास कर रहे लोगों का हाल चाल जनना चाहा तो सभी एकबारगी बिफर पड़े. वहां के निवासियों का भी वही रोना. लोगों ने कहा कि उन्हें सिर्फ सिर छिपाने की जगह दे दी गई है. न रोजगार का पता है, न आवागमन की सुविधा है. बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए भी उन्हें कोसों दूर जाना पड़ता है. हालांकि कोयला सचिव ने उनकी समस्याएं दूर करने का आश्वासन दिया. परंतु लोगों को विश्वास भी तो होना चाहिए.
सुविधायुक्त पुनर्वास के लिए बजट ही नहीं
हालत यह है कि पुनर्वास के नाम पर सिर्फ क्वार्टर बनाए जा रहे हैं. शायद उन पुनर्वासित जगहों पर रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य व आवागमन जैसी समस्याओं पर काबू पाने के लिए सरकार के पास कोई बजट ही नहीं है. कोयला सचिव और केंद्र सरकार की चिंता कोयला उत्पादन को बढ़ाना है. विगत 11 जनवरी को रांची में मुख्य सचिव और कोयला सचिव अमृत लाल मीणा के बीच बैठक में कोयला उत्पादन बढ़ाने पर ही जोर दिया गया. विस्थापन को मात्र उत्पादन की राह में बाधा मान कर काम हो रहा है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने विगत 17 दिसंबर को पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में कहा था कि बंद खदानों को विधिवत क्लोजर कराया जाना चाहिए. ऐसा होने से पर्यावरण की सुरक्षा होगी और अवैध खनन पर रोक लगेगी. उस बैठक में मुख्यमंत्री के सुझाव को केंद्र सरकार ने भी सराहा. 11 जनवरी को मुख्य सचिव के साथ बैठक के बाद कोयला सचिव मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी मिले और उन सुझावों पर अमल की राह पर चर्चा भी की है.
दूर होंगी उत्पादन की बाधाएं, अशांति रहेगी बरकरार
इन सारे सुझावों और प्रयासों से एक ही ध्वनि निकलती है कि केंद्र सरकार अग्नि प्रभावित व भू धंसान क्षेत्र से शीघ्रतापूर्वक ज्यादा से ज्यादा कोयला निकालने पर आमादा है. इस उद्देश्य में जो भी बाधाएं हैं, उन्हें दूर करने के सारे उपायों पर शीघ्रता से अमल होना चाहिए. फॉरेस्ट व इन्वायरमेंटल क्लियरेंस व भू अर्जन मामलों को जल्द निपटाने पर जोर दिया जा रहा है. जिलों के डीसी को जमीन संबंधी मामले सुलझाने का निर्देश भी उसी दिशा में जरूरी कदम है. इधर केंद्र सरकार और बीसीसीएल विस्थापन को उत्पादन की राह में बाधा तो मान रही है, मगर उस दिशा में कुछ ज्यादा करने की स्थिति में नहीं है. बेलगड़िया के अलावा अब नये आवास नहीं बनाने का निश्चय, पहले उन्हीं सुविधाविहीन आवासों में लोगों को शिफ्ट करने पर जोर आदि फैसले इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि प्रभावित लोगों के लिए सुविधायुक्त आवास व जगह की तलाश पर सरकार का कोई ध्यान नहीं है. इसके अलावा भू धंसान क्षेत्र से शिफ्ट किये जानेवाले स्थान पर प्रभावित परिवारों के लिए मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए भी बीसीसीएल राज्य सरकार के सहयोग से ही कुछ करने के मूड में है.
उपलब्धियों के बीच चाहिए औद्योगिक शांति
लब्बोलुबाब यह कि केंद्र सरकार और बीसीसीएल का सारा प्रयास सफल हो भी जाए और कोयला का उत्पादन बढ़ भी जाए तो इस उपलब्धि के लिए जो औद्योगिक शांति चाहिए, वह कैसे हासिल होगी. एक तरफ आग और भू धंसान से सहमी हुई बड़ी आबादी, दूसरी तरफ अवैध खनन, माफियागीरी से सताये व रोजी-रोजगार के लिए भटकते लोगों की बड़ी जमात. कोयला निकलेगा, मगर वह हीरा बन कर चमकेगा या फिर अपने कालेपन के साथ पूरे कोयलांचल को अशांति व दुविधा के बीच झूलते रहने पर विवश करता रहेगा, यह अनुमान लगाना अभी मुश्किल है.
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