Mithilesh Kumar
Dhanbad : धनबाद (Dhanbad) घर-घर पानी पहुंचाने की जिम्मेदारी से नगर निगम अब दूर भाग रहा है. निगम के अधिकारी अब कॉमर्शियल ज्यादा हो गए हैं. लोक कल्याणकारी व्यवस्था को तिलांजलि देकर पानी को भी व्यवसाय बना लेनेवाले नगर निगम का वश चले तो लोगों को सांस लेने के लिए हवा भी खरीदनी पड़ सकती है. प्रति लीटर पानी की दर कुछ ऐसी ही कहानी कहती जान पड़ती है. नगर निगम की नई घोषणा से भी यही आभास होता है. पानी का कनेक्शन लेना है तो कम से कम 7 हजार रुपये जमा कीजिए. प्लम्बर, गड्ढा खोदने व पाइप बिछाने का शुल्क अलग. हर माह पानी का शुल्क भी जमा कीजिए और घर में पानी नहीं आए तो पेयजल एवं स्वच्छता विभाग से शिकायत कीजिए. निगम के अधिकारी कहते हैं कि जलापूर्ति करना उनका काम नहीं. वह सिर्फ टैंकर की सुविधा उपलब्ध कराते हैं. इसके लिए टाल फ्री नंबर जारी कर दिया गया है. दिक्कत होने पर फोन कर पानी मांगा जा सकता है. लेकिन यह व्यवस्था भी शहरी क्षेत्र में मुफ्त नहीं है.
पहले भुगतान, फिर कीजिए जल का पान
गर्मी में यदि जल संकट है और निगम के टैंकर से पानी लेना चाहते हैं तो पहले निगम कार्यालय आकर पैसे का भुगतान करना होगा. जलापूर्ति विभाग के प्रभारी उदय कच्छप ने बताया कि अभी मुफ्त में पानी किसी को नहीं दिया जा रहा है. जो लोग पानी के लिए फोन करते हैं, उन्हें निगम आकर रसीद कटाने को कहा जाता है. उसके बाद ही टैंकर से पानी भेजा जाता है. अभी निगम में हर दिन चार, पांच लोग पानी के लिए फोन करते हैं. जो पैसा जमा करता है, उन्हें पानी पहुंचाया जाता है.
टैंकर के पानी की तय है कीमत
टैंकर से पानी लेना हो तो उसकी दर तय कर दी गई है. 2 हजार लीटर पानी के लिए 700 रुपये, 5 हजार लीटर के लिए 1200, 6 हजार लीटर के लिए 1500 तथा 9 हजार लीटर के लिए 2500 रुपया निगम को भुगतान करना होगा.
मात्र एक हजार चापाकलों की मरम्मत के लिए टेंडर
शहरी क्षेत्र में करीब 4 हजार चापाकल हैं. परंतु मात्र 1 हजार चापाकलों की मरम्मत के लिए निगम में टेंडर निकाला गया है, जिसकी अंतिम तिथि 22 मार्च है. 23 को टेंडर खुलेगा तो 4 संवेदकों का चयन किया जाएगा. इसके बाद इन चापाकलों की मरम्मत होगी. शेष चापाकलों से गर्मी में पानी मिलेगा या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है.
सारा जोर आजमाइश सिर्फ आम लोगों पर
शहर में अभी 30 से 35 मिनट हर दिन लोगों को पानी मिल रहा है. अधिकतर घरों में मोटर पंप लगाने के कारण निचले इलाकों या ऊंचाई पर रहने वालों को पानी नहीं मिलता है. निगम के अधिकारी कार्रवाई करने की बात तो कहते हैं, लेकिन बाद में शांत होकर बैठ भी जाते हैं. रेलवे के पास पानी का 9 करोड़ रुपये बकाया है. लेकिन आज तक सिर्फ पत्राचार ही हो रहा है. निगम के अधिकारी बड़े संस्थान के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं. सारा जोर आजमाइश आम लोगों पर होता है.