Dhanbad : कभी प्रचंड धूप और गर्मी में प्यास बुझाने के लिए शहर के हर चौक-चौराहे पर पनशाला खुल जाती थी. स्वयंसेवी संस्थाओं के अलावा दान-पुण्य पर भरोसा रखनेवाले संपन्न लोग भी पनशाला खोल कर गरीबों और गर्मी से झुलसते राहगीरों को राहत पहुंचाते थे. गलियों, सड़कों पर घूमते भिखारी, रिक्शावालों और ठौर-ठिकाने की तलाश में खाक छानते लोगों की प्यास बुझाने के अलावा पनशाला भूले-भटके लोगों के लिए पूछताछ केंद्र का भी काम करती थी. परंतु चिलचिलाती धूप व प्रचंड गर्मी के बावजूद इस वर्ष कहीं ऐसी पनशाला नहीं दिख रही है. धनबाद में प्रचंड गर्मी को देखते हुए आपदा प्रबंधन विभाग ने अलर्ट जारी कर दिया है. दोपहर 12 बजे से अपराह्न 4 बजे तक घरों से नहीं निकलने की ताकीद की गई है. बावजूद लोगों को घर बाहर निकलना भी पड़ रहा है. परंतु शहर में प्यास बुझाने का सर्वसुलभ ठिकाना न होने के कारण बरबस पनशाला की याद आने लगती है.
कुछ वर्ष पहले हर चौक चौराहे पर होती थी पनशाला
इससे पहले गर्मी की दस्तक के साथ धनबाद के हर चौक-चौराहे पर पनशाला दिख जाती थी, जहां गुड़ चने के साथ लोगों को ठंडा पानी उपलब्ध हो जाता था. परंतु अब वैसा नहीं है. कोरोना काल के बाद इस वर्ष प्रचंड गर्मी के बावजूद किसी संस्था या समाजसेवी का दिल नहीं पसीजा, जो शहर के चौक चौराहों में कहीं भी पनशाला खोल दे.
क्या कहते हैं लोग
शहर में पनशाला ना होने के बारे में शहर के कई राहगीरों से बातचीत की गई. सुरेश शर्मा नामक व्यक्ति ने छूटते ही कहा आसपास के लोग कई काम से धनबाद आते हैं. तपती धूप में लोगों की प्यास और ज्यादा बढ़ जाती है. शहर में पनशाला नहीं होने के कारण लोगों को पानी के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. पहले लोगों को तपती धूप में गुड़, चना और पानी एक ही जगह मिल जाता था. अब तो खोजने से भी ऐसी सुविधा नहीं मिलती.
20 रुपये में मिलता है पीने का पानी
राहगीर मीरा देवी कहती हैं कि तोपचांची से बस पकड़ कर वह धनबाद आती है. सिर पर सब्जियों से भरी टोकरी लिये बाजारों में घूम घूम कर बेचती है. परंतु भरी दोपहरी में पीने के लिए पानी नहीं मिलता. 20 रुपये में पानी खरीदना पड़ता है. वह कहती हैं कि पहले पुराना बाजार और बैंक मोड़ क्षेत्र में कई पनशाला हुआ करती थी, जहां मुफ्त में गुड़ और चना के साथ पानी मिलता था. अब मुफ्त की पनशाला तो नहीं है, उल्टे पानी खरीद कर पीना पड़ता है. नाश्ता-चाय की दुकान से पानी मांगो तो कहेगा कुछ खरीदो तो पानी पिलाएंगे.
समाजसेवियों की उदासीनता ने किया निराश
नाम ना छापने की शर्त पर एक समाजसेवी ने दबी जुबान में बताया कि समाजसेवियों की उदासीनता के कारण शहर में कोई पनशाला नहीं खुली. कहा कि समाजसेवियों या बुद्धिजीवियों की स्थिति अब पहले जैसी नहीं रही. कोरोना काल से पहले कई समाजसेवी पनशाला के नाम पर हजारों रुपये खर्च कर लोगों के लिए गुड़ और चना की व्यवस्था करते थे. परंतु लगता है कोरोना का असर पानशाला पर भी पड़ा है.
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