Bismay Alankar
Hazaribagh: हजारीबाग बानादाग रेलवे साइडिंग के ग्रामीणों के आंदोलन को क्या नेताओं ने बीच मंझधार में छोड़ दिया है या बड़े नेता इससे कन्नी काट गए हैं. यह एक बड़ा सवाल है. बता दें कि हजारीबाग का रेलवे साइडिंग जो बानादाग, कुसुम्भा और बांका समेत अन्य गांव के इर्द-गिर्द आता है, पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है. एनटीपीसी के इस रेलवे साइडिंग में त्रिवेणी की कंपनी को ट्रांसपोर्टेशन का काम मिला हुआ है. जिसे उसने पेटी कॉन्ट्रैक्ट के तहत स्थानीय विधायक मनीष जायसवाल से संबंधित एक कंपनी को यह काम दिया है.
प्रदूषण को लेकर काम रोको आंदोलन चलाया था
बताया जाता है कि ग्रामीणों ने ट्रांसपोर्टिंग के दौरान होने वाले प्रदूषण को लेकर काम रोको आंदोलन चलाया था. जिसमें सप्ताह भर साइडिंग का काम ठप पड़ गया था. इसी इसी दौरान आंदोलन को खत्म करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज और अश्रु गैस तक छोड़ने पड़े थे. इसके बाद आंदोलन खत्म हो गया था. आंदोलन खत्म करवाने में कांग्रेस के स्थानीय नेता जय शंकर पाठक और कांग्रेस के जिला अध्यक्ष अवधेश सिंह ने भूमिका निभाई थी. आज इस घटना के दस दिन बीत जाने के बाद इस इलाके के ग्रामीण अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं. अभी तक ना इन पर हुए केस ही हटाए गए हैं और ना ही बाकी चीजों में किसी की बहुत दिलचस्पी ही दिख रही है. केवल ग्रामीणों से एक आवेदन मांगा गया है. जिसमें उन्हें यह बताना है कि उनकी जमीन इस साइडिंग में गई है या प्रदूषण की मार वह झेल रहे हैं. इसका दस्तावेजी प्रमाण प्रखंड विकास पदाधिकारी के पास जमा करना है.
पहली गिरफ्तारी मुन्ना सिंह की हुई थी
ग्रामीणों को यह काम भी केवल प्रशासनिक स्तर पर थमाया हुआ लॉलीपॉप जैसा लग रहा है. क्योंकि इस तरह के कागजात ग्रामीण कई दफा प्रखंड कार्यालय से लेकर उपायुक्त के कार्यालय तक जमा कर चुके हैं. पांच छह साल बीत जाने के बाद भी स्थिति जस की तस है. इसी को लेकर इतना बड़ा आंदोलन हुआ था. बता दें कि इस मामले में सबसे पहली गिरफ्तारी समाजसेवी मुन्ना सिंह की हुई थी. सूत्र बताते हैं कि पुलिस को लगा था कि अगर मुन्ना सिंह अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए ग्रामीणों को आंदोलन छोड़ने पर मना लेते हैं तो पुलिस उन्हें छोड़ देती. लेकिन मुन्ना सिंह ने आंदोलन को मांग पूरे होने तक जारी रखने की बात कही. दिनभर जब पुलिस की बात मुन्ना सिंह नहीं माने तो फिर पुलिस ने उन्हें जेल भेज दिया.
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उदय साव भूमिगत हो गए
मुन्ना सिंह को जेल भेजने के बाद पुलिस ने दबिश बढ़ाया और आंदोलन के नेतृत्वकर्ता उदय साव और प्रियंका कुमारी की गिरफ्तारी के लिए भी प्रयास करने लगी. पुलिस की दबिश के बाद उदय साव और बाकी लोग भूमिगत हो गए. लेकिन ग्रामीणों के जमावड़े के साथ आंदोलन चलता रहा. फिर 10 तारीख को सुबह भारी संख्या में पुलिस की तैनाती हुई और बलपूर्वक इस आंदोलन को खत्म करने की कोशिश होने लगी. ग्रामीणों और पुलिस के बीच गतिरोध जारी ही था कि शाम 4 बजे कांग्रेस के नेता जय शंकर पाठक और जिला अध्यक्ष अवधेश सिंह ग्रामीणों के बीच पहुंचे. उन्हें शांत रहने की अपील की और कहा कि वह इस पूरे मामले में उपायुक्त से बात करेंगे. साथ ही उनकी ऊपर लेवल पर भी बातचीत चल रही है. जिसमें ग्रामीणों की सभी मांगों को अधिकारियों के बीच रखा जाएगा और उन्हें तत्काल हल करने की बात कही जाएगी. उनके इसी आश्वासन पर ग्रामीणों ने सड़क जाम हटा भी दिया और बनादाग रेलवे साइडिंग पर सारा काम पूर्व की भांति प्रारंभ हो गया.
एक हजार से अधिक अज्ञात लोगों पर मामले दर्ज हैं
अब ग्रामीण यह सवाल उठा रहे हैं कि प्रशासनिक आश्वासन मिलने के आज 10 दिन गुजर जाने के बाद भी ना तो अभी तक उनके ऊपर थाने में दर्ज मामले उठाए गए हैं और ना ही कांग्रेस या अन्य पार्टियों की तरफ से गिरफ्तार मुन्ना सिंह की रिहाई के लिए ना तो एक बयान जारी हुआ है और ना ही किसी तरह की कोई कवायद ही की जा रही है. दूसरी तरफ पंचायत चुनाव भी होना है. एक हजार से अधिक अज्ञात लोगों पर मामले दर्ज हैं. ग्रामीणों को यह डर सता रहा है कि अगर कोई इस चुनाव में भाग लेने चाहेगा तो कहीं उसे इस केस में नाम डाल कर परेशानी खड़ी ना कर दे. सूत्र बताते हैं कि बनादाग के इस पूरे मामले में बड़कागांव की विधायक अंबा प्रसाद ने भी हाथ खींच लिया है. अंबा प्रसाद ने हज़ारीबाग़ के सब्जी मार्किट मामले में तो पहल किया और उपायुक्त से बात भी की, लेकिन बानादाग मामले पर कुछ भी नहीं कहा.
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दस दिन में कोई बड़ा नेता नहीं गया
दस दिनों में किसी दल का कोई बड़ा नेता इस इलाके में ग्रामीणों का हाल पूछने नहीं गया है. ऐसे में ग्रामीण अब खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. उदय साहू लगातार कांग्रेस के नेता जय शंकर पाठक और जिला अध्यक्ष से बात कर रहे हैं. लेकिन उधर से भी कुछ ठोस जानकारी नहीं मिल पा रही है. फिलहाल ग्रामीणों ने फिर से एक बार बहुत भरोसा कर अपने कागजात प्रखंड कार्यालय में जमा करवाए हैं. लेकिन जिस तरह से ग्रामीणों को भरोसे में लेकर बड़े नेता अब कन्नी काट गए हैं इससे ग्रामीणों में मायूसी है.
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