Shyam Kishore Chaubey
त्योहारी सीजन चल रहा है. दशहरा बीत गया. कल दिवाली है. फिर काली पूजा, फिर छठ. छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश आदि पांच राज्यों में तो साक्षात महापर्व चल रहा है. वहां चुनाव है. हर जगह चर्चा-परिचर्चा उन राज्यों की ही है. बैठे-बिठाए मोदी, राहुल, अखिलेश, केजरीवाल की क्लास लगाई जा रही है. बुलडोजर बाबा के देस में आईआईटी बीएचयू की एक छात्रा के साथ 02 नवंबर को जो हुआ, वह पटना या रांची में होता तो कहर ढा जाता. बीच चुनाव में मोदी महोदय जनजातीय गौरव दिवस मनाने 15 नवंबर को बिरसा मुंडा के गांव उलिहातू जानेवाले हैं. पता नहीं क्यों आदिवासी छिटके रहते हैं, जबकि उन्होंने एक साधारण परिवार की आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बना दिया और बिरसा जन्म दिवस को जनजातीय गौरव दिवस तय कर महिमामंडित किया और उसी दिन खुद उनके गांव में पधार रहे हैं. उसी दिन झारखंड स्थापना दिवस भी है. देखते-देखते यह राज्य 23 साल का हो गया.
इसी दौर में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन वीमेंस एशियन हॉकी चैंपियनशिप का सफल आयोजन कराकर बाग-बाग हैं. उधर इस राज्य में रोज-रोज हत्या हो रही है. पुलिस बेचारी क्या करे? वह हर किसी की जमातलाशी तो ले नहीं सकती कि किसके पास कट्टा है या पैसे. पैसों पर मौके-बेमौके हाथ फेर ही लेती है. मौका मिलने पर आपराधिक घटनाओं का मौका मुआयना और तफ्तीश भी कर लेती है. पुलिस के फिसड्डीपने से नाराज जो लोग हुकूमत से खफा हैं, उनके लिए सरयू राय ने लाख टके की बात कह दी है कि हेमंत सरकार के दिसंबर पार करने की संभावना कम है. अलग बात है कि माननीय राय जी अब रघुवर दास पर नहीं बोलते. लालू और कोड़ा पर उन्होंने जो कोड़ा बरसाया, सो बरसाया लेकिन उनकी नहीं चली तो रघुवर पर ही. खाएंगे न खाने देंगे और अनुशासन जैसे आप्त वचनों वाली जिस पार्टी में चार साल पहले सरयू थे और उसी में उनकी वापसी की संभावना दिख रही है. उसी ने उनकी न सुनी. कुछ लोग भले ही जश्न मनाएं कि रघुवर की झारखंड से विदाई हो गई, लेकिन क्या उन्होंने जमशेदपुर को टा-टा कर दिया है? उनकी जिस रूप में विदाई हुई, उसके लिए बहुतेरे महामान्य तरसते हैं. वे महामहिम रघुवर दास हो गये हैं.
लोग अब जिधर नजरें कम फेर रहे हैं, उधर भी झांकें जरा. नस्ली हिंसा में साढ़े पांच महीने से मणिपुर जल रहा है, सो जल ही रहा है. वहां के लोगों के लिए कैसा दशहरा और कैसी दिवाली? बड़े भाग में अभी भी कर्फ्यू तारी है और इंटरनेट सेवाएं ठप हैं. छोटे से झारखंड की आबादी के दशांश से कुछ अधिक आबादी वाले उस राज्य में 50 हजार से अधिक लोग बेघर होकर रिलीफ कैंपों में जीवन गुजार रहे हैं. तकरीबन दो सौ की हत्या की जा चुकी है. शिनाख्त के लिए 120 लाशें तरस रही हैं. इंडिया दैट इज भारत को इसी कारण विविधताओं वाला देश कहा जाता है. विविधताओं की एक बानगी भर ऊपर पेश की गई है. कुछेक मामलों में साम्य का कहना ही क्या? मणिपुर में नस्ली हिंसा भड़की ही क्यों? वहां बहुसंख्यक आबादीवाले मैतेइ खुद को एसटी में शामिल कराना चाहते हैं. झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के कुड़मी भी खुद को एसटी सूची में शामिल कराने के लिए आंदोलन करते रहते हैं. महाराष्ट्र में शिवाजी के कुल-गोत्र वाले मराठा कुनबी खुद को आरक्षण का हकदार मानते हुए आंदोलन कर रहे हैं. लेकिन वे मणिपुर के कुकी-मैतेइ की नाईं हमलावर नहीं हैं, बल्कि अपनी मांग की पूर्ति के लिए अनशन कर या किसी और भांति अपनी जान दे रहे हैं.
लोग बेकार ही केंद्र पर तंज कसते हैं. कृपालु सरकार 25 रुपये किलो प्याज और 50 रुपये किलो चना दाल बेच रही है, जबकि पांच राज्यों के ऐन महापर्व के बीच 06 नवंबर से साढ़े सताइस रुपये किलो आटा लांच कर दिया. आप तक ये रियायतें जरूर पहुंची होंगी. 04 नवंबर को दुर्ग की रैली में प्रधानमंत्री जी ने एक बार फिर अगले पांच साल तक देश के 80 करोड़ गरीबों को पीएमजेकेएवाई के तहत पांच किलो अनाज देने का ऐलान कर दिया. ऐसी कई सुविधाएं देकर वे दिल से चाहते हैं कि गरीब भी अमीर बनें, लेकिन ये लोग हैं कि 80 करोड़ के 80 करोड़ बने हुए हैं. वे धर्मो रक्षति रक्षितः पर अमल करना ही नहीं चाहते. सरकार के भरोसे कबतक चलेगा? यह न कहिएगा कि जबतक वोट रहेंगे, तबतक चलेगा.
इस सीजन का आप चाहे जितना आनंद लें, जरा पूछकर देखें छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम के नेताओं से. महापर्व में उनकी मानो जान पर बन आई है. राजगद्दी मिल जाए, फिर चाहे जितने त्योहार मना लें. फिलहाल ईडी-उडी हर जगह कड़ी निगहबानी कर रहा है, लेकिन क्या मजाल कि मध्यप्रदेश में भी उसकी आमद हो! आखिर एक घर डायन भी बख्श देती है. है न!
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.