- मंडी शुल्क का उपभोक्ताओं पर पड़ेगा सीधा असर, 1 से 2 फीसदी महंगी मिलेंगी खाद्य सामग्री
Ranchi : झारखंड को आने वाले दिनों में खाद्य संकट का सामना करना पड़ सकता है. दो फीसदी मंडी शुल्क लगाये जाने के प्रस्ताव के विरोध में राज्य के व्यापारियों ने अन्य राज्यों से खाद्यान्न लाना बंद कर दिया है. व्यापारी मौजूदा स्टॉक बेच रहे हैं. राज्य के सबसे बड़ी मंडी पंडरा बाजार समिति में खाद्यान्नों का आना बंद हो चुका है. इसका सीधा असर आम उपभोक्ताओं पर पड़ेगा. राज्य के व्यापारियों ने सरकार के फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि 15 मई तक मंडी शुल्क लगाने का प्रस्ताव वापस नहीं लिया गया, तो 16 मई से पूरे झारखंड में बाहर से खाद्यान्न मंगाना बंद कर दिया जायेगा.
अन्य राज्यों में भी है मंडी शुल्क का प्रवधान
देश भर की मंडियों के आंकड़े अगर देखें, तो कई राज्यों में व्यवस्थित रूप से मंडियां काम कर रही हैं. व्यापारी मंडियों में जाकर बोली के माध्यम से कृषि उत्पाद की खरीद करते हैं. उन स्थानों पर मंडी शुल्क लगाया जाता है. यह पूरी प्रक्रिया मार्केटिंग बोर्ड की देखरेख में होती है. जिसमें किसानों को अपनी उपज का बेहतर मूल्य मिलता है. साथ ही व्यापारी प्रतियोगिता कर कृषि उत्पाद की खरीद करते हैं.
क्या कहते हैं व्यापारी
पंडरा बाजार समिति के व्यापारियों का कहना है कि देश के अन्य राज्यों में जहां मोटे अनाजों का उत्पादन होता है, वहां व्यवस्थित रूप से मंडी शुल्क लिए जाते हैं. इस राशि से मंडियों में किसानों और व्यैपारियों को कई तरह की सुविधा मुहैया करायी जाती है. लेकिन झारखंड में मौजूद 28 मंडियों में इस तरह की व्यवस्था नहीं है. 28 मंडियों में से 6 मंडियां ही काम कर रही हैं. मंडी शुल्क के माध्यम से व्यापारियों का भयादोहन की मंशा राज्य सरकार की है. इसी कारण राज्य के व्यापारी इसका विरोध कर रहे हैं.
इसे भी पढ़ें –राज्यपाल ने कृषि बाजार टैक्स वाला विधेयक लौटाया, बिल के हिंदी और अंग्रेजी संस्करण में भिन्नता पर आपत्ति जतायी
सरकार के फैसले से आम जन को 100 रुपये का खाद्यान्न 102 रुपये में मिलेगा
झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष धीरज तनेजा कहते हैं- राज्य सरकार ने व्यापारियों, किसानों, उपभोक्ताओं से मशविरा लिये फल और सब्जियों पर 1% व मोटे अनाजों पर 2% मंडी शुल्क लगाने की योजना बनायी है, जिसका सीधा नुकसान उपभोक्ताओं को उठाना पड़ेगा. राज्य में पहले 1% मंडी शुल्क मोटे अनाजों पर निर्धारित था, जिसे 2015 में हटा दिया गया. इस दौरान राज्य में 40 से 50 राइस मिल हुआ करती थी. वहीं 2022 में 175 से अधिक राइस मिल झारखंड में हैं. शुल्क हटाए जाने का लाभ किसानों व व्यापारियों को मिला है. राज्य से चावल निर्यात किए जा रहे हैं. लेकिन सरकार के इस फैसले के चलते फिर से कृषि बाजार पर कुठाराघात होगा. इसके विरोध में झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स आवाज बुलंद कर रहा है. व्यापारियों की जायज मांगों के साथ चेंबर पूरी ताकत के साथ खड़ा है.
कहां कितना मंडी टैक्स लगता है
मंडी टैक्स को लेकर बड़ा भ्रम फैल रहा है. यह सच है कि मंडियों में ट्रेडर्स यानी खरीदारों (सरकारी एवं प्राइवेट) को ही मार्केट फीस/ मंडी चार्ज, ग्रामीण विकास फीस और कमीशन (बिचौलियों के चार्ज) देना पड़ता है. भारत सरकार की एजेंसी भारतीय खाद्य निगम के मुताबिक, धान की खरीद पर उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में अलग-अलग दर से मंडी शुल्क लिये जा रहे हैं. उत्तर प्रदेश में 2.5%, मध्यप्रदेश में 2.2 फ़ीसदी, छत्तीसगढ़ में 2.2, महाराष्ट्र में 1.05 फ़ीसदी और अन्य राज्यों में 32 रुपये सोसाइटी को कमीशन के तौर पर देना होता है. वहीं केरल में मात्र 0.07 फ़ीसदी मंडी टैक्स लिया जाता है. जहां भी मंडी शुल्क लगाया गया है, उन राज्यों में उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है. झारखंड में धान के अलावा ऐसे कृषि उत्पाद मंडी में नहीं पहुंचती. राज्य के व्यापारी दूसरे राज्यों की मंडियों से कृषि उत्पादों को लाकर व्यापार करते हैं. इसलिए मंडी शुल्क आम उपभोक्ताओं की जेब पर सीधा चोट करेगा. कृषि उत्पाद आम उपभोक्ताओं को एक से 2% तक महंगे मिलेंगे.
इसे भी पढ़ें – महंगाई पर बोले सीएम हेमंत,‘अब तो लोगों को भूखे मरने के लिए भी तैयार होना पड़ेगा’