– बेच दी सेना की जमीन, फर्जीवाड़ा कर होल्डिंग नंबर हासिल किया गया
– 1932 के कोलकाता के जिस डीड के आधार पर रजिस्ट्री करायी गयी, वह भी संदेहास्पद
Pravin Kumar
Ranchi : राजधानी रांची के बड़गाईं अंचल की सेना के कब्जे वाली जमीन की खरीद-बिक्री के मामले में धीरे-धीरे कई खुलासे हो रहे हैं. प्रवर्तन निदेशालय की टीम तीन दिनों से मामले की जांच कर रही है. इस मामले में दो सब रजिस्ट्रार से पूछताछ की जा चुकी है. पूछताछ में नए-नए खुलासे भी हो रहे हैं. ईडी की जांच की जद में कई अधिकारी और व्यवसायी भी हैं, जिनसे आने वाले दिनों में पूछताछ होगी. भारतीय सेना के कब्जे वाली शहर के बीचों-बीच 4.55 एकड़ महंगी जमीन की खरीद-बिक्री में अफसर, नेता, व्यवसायी के सिंडिकेट की संलिप्तता के पुख्ता प्रमाण मिल चुके हैं. 90 साल तक इस जमीन की दावेदारी को लेकर कोई सामने नहीं आया था. एमएस प्लॉट संख्या 557 का कुल रकबा 4.46 एकड़ है. इस भूमि पर 90 साल से सेना का कब्जा है. वर्ष 2019 में जमशेदपुर के टेल्को थाना क्षेत्र के 7, रीवर व्यू निवासी जयंत कर्नाड ने खुद को खुद को इस जमीन के रैयत का वारिस बताया था. उन्होंने पूरी 4.46 एकड़ जमीन को टुकड़ों 14 लोगों को बेच दिया था. वहीं, वर्ष 2021 में पश्चिम बंगाल निवासी प्रदीप बागची ने खुद को जमीन का मालिक बताते हुए अफसरों से सांठगांठ कर फर्जी कागजात के आधार पर जगतबंधु टी एस्टेट के निदेशक दिलीप कुमार घोष को जमीन बेच दी. दक्षिण छोटानागपुर के आयुक्त द्वारा करायी गयी जांच में इसका खुलासा हो चुका है. अब ईडी मामले की नए सिरे से जांच कर रही है.
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कमिश्नर के आदेश पर हुई जांच में फर्जीवाड़ा का खुलासा
कमिश्नर के आदेश पर दक्षिण छोटानागपुर प्रमंडल के उपनिदेशक कल्याण ने मामले की जांच कर रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है. रिपोर्ट में कहा गया है कि रांची शहर के बेशकीमती भूखंड पर सेना का कब्जा है. इस भूखंड के वर्ष 1932 में खरीद का दावा किया गया है. इसके बाद कभी भी किसी न्यायालय में सेना के कब्जे के खिलाफ वाद दायर नहीं किया गया. सेना से किराये की मांग भी नहीं की गयी. अचानक क्रेता के पुत्र प्रदीप बागची ने 90 वर्षों के बाद 2021 में रांची आकर उक्त भूखंड की बिक्री (दस्तावेज संख्या 6888, 1 अक्टूबर 2021) जगतबंधु टी एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक दिलीप कुमार घोष से कर दी. कोलकाता में निबंधित दस्तावेज सं. 4369 /1932 को जांच में संदेहास्पद बताया गया.
जांच रिपोर्ट का दावा
जांच रिपोर्ट में दावा किया गया है कि प्रदीप बागची द्वारा 8 अप्रैल 2021 को रांची के उपायुक्त को फर्जी दस्तावेज एवं अवैध तरीके से दाखिल-खारिज (म्यूटेशन) का आवेदन योजना के तहत दिया गया था. अप्रैल में ही फर्जी बिजली बिल और आधार नंबर के जरिए रांची नगर निगम से फर्जीवाड़ा कर होल्डिंग नंबर भी हासिल कर लिया गया. फिर अक्टूबर में जमीन की बिक्री कर देना, संदेह उत्पन्न करता है. वहीं, खरीदार की जानकारी में भूमि सेना के कब्जे में होने के बावजूद खरीदारी करना भी संदेह पैदा करता है. जमीन की खरीद-बिक्री के लिए कोलकाता की एक रजिस्टर्ड डीड (संख्या 4369) को आधार बनाया गया है. रिकॉर्ड के अनुसार, यह रजिस्ट्री वर्ष 1932 में हुई थी लेकिन रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि डीड संदेहास्पद है. रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि जमीन की खरीद- बिक्री कपटपूर्ण तरीके से कर रजिस्ट्री करा ली गयी.
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जयंत कर्नाड ने इन 14 लोगों को बेची थी जमीन
क्रेता का नाम रकबा (डिसमिल में)
ज्ञानेंद्र कुमार सिंह 11.5
हरि शंकर परश्रामपुरी 33.6
प्रमोद कुमार पराशरामपुरिया 47.84
हरि शंकर पराशरामपुरिया 47.84
जानकी देवी 15
माया केजरीवाल 53.71
रजनी देवी 15
सपना भारती 15
सुधांशु कुमार सिंह 15
दीपशिखा धानुका 53.71
राजकिशोर साहू 15
राजकिशोर साहू दो डीड 43 डिसमिल
शांति साव 15
प्रेरणा सोनी 15
कर्नाड से खरीदी जमीन पर उनके नाम दाखिल-खारिज नहीं
खुद को जमीन के रैयत का वारिस बताते हुए जयंत कर्नाड ने 16 डीड के माध्यम से 14 लोगों को कुल 4.46 एकड़ जमीन बेची थी लेकिन खरीदारों के नाम पर जमीन की दाखिल-खारिज नहीं हो सका क्योंकि जमीन पर सेना का कब्जा था. लैंड रिकॉर्ड में जमीन पर सेना का कब्जा ही दर्ज है. जमीन के म्यूटेशन का आवेदन रद्द होने के बाद कर्नाड ने उपायुक्त के पास आवेदन दिया था, जिस पर डीसी कोर्ट में सुनवाई चल रही थी. इस बीच नए वारिस प्रदीप बागची सामने आए और जमीन की बिक्री जगतबंधु टी एस्टेट के दिलीप घोष को कर दी गयी.
कर्नाड ने 4.46 एकड़ जमीन बेची, बागची ने बना दी 4.55 एकड़
जमीन के रिकाॅर्ड के अनुसार, सेना के कब्जे वाले एमएस प्लॉट संख्या 557 का कुल रकबा 4.46 एकड़ है लेकिन कर्नाड द्वारा जमीन बेचे जाने के दो साल बाद प्रदीप बागची ने इस भूखंड का कुल रकबा 4.46 एकड़ से बढ़ाकर 4.55 एकड़ कर दिया. इस रकबे की डीड प्रस्तुत कर जमीन जगतबंधु टी एस्टेट के दिलीप घोष को बेच दी. सब कुछ अफसरों की मिलभगत से ही संभव हो सका.