Soumitra Roy
भारत को किसी की “बुरी नज़र” लगी है. किसकी, ये आप खुद समझें. लेकिन कुछ भी ठीक नहीं हो रहा है. सड़क से लेकर संसद तक कोहराम है. दिल्ली से लेकर मध्यप्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, झारखंड समेत अनेक राज्यों की राजधानियों तक में एक ही सवाल है- आगे क्या होगा? इसका पुख्ता जवाब किसी के पास नहीं है.
सितंबर की शुरुआत महंगाई से हुई है. गैस की कीमत में बड़ी उछाल आयी है. गैस सब्सिडी अब लगभग खत्म हो गया है. पेट्रोल-डीजल में तो पहले से ही आग लगी है. इसलिए आप इस महंगाई की आदत डाल लें. मोदी सरकार को पैसा चाहिए और वह आपसे ही लेगी. आपको ही देना होगा. हंस कर दें, गा करके दें या रो कर. चाहे बीवी के जेवर बिक जाएं.
वैसे, सालाना 1.5 लाख करोड़ के हिसाब से 4 साल में देश की संपत्ति बेचकर 6 लाख करोड़ जुटाने का मोदी सरकार का सपना कभी पूरा नहीं होने वाला है. इसे याद रखें. इसलिए पैसे आपको ही देने पड़ेंगे. लेकिन इस खेल में लाखों नौकरियां खत्म हो जाएंगी. कीमतें आसमान छुएंगी. दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, गरीबों और उच्च मध्यम वर्ग के बीच असमानता चरम पर पहुंच जायेगी.
यह सब सिर्फ 2024 का ही खाका नहीं है. ये उससे भी आगे का है. क्योंकि बीजेपी और आरएसएस की हिन्दू राष्ट्रवादी सरकार अगर 2024 का चुनाव हारती भी है तो नई सरकार को हालात सुधारने में कम से कम 10 साल लगेंगे. इसलिए, आज से ही थोड़े में जीना सीख लें, क्योंकि इस “थोड़े” की परिभाषा भी आगे बदलने वाली है.
इतना सब होने के बाद भी जो लोग यह सोंचते हैं कि मोदी जी ने किया है, तो कुछ सोंचकर ही किया होगा. तो उन्हें अब यह समझ लेना चाहिये कि मोदीजी ने वर्ष 2014 में उसी दिन से सोचना बंद कर दिया था, जब आपने देश की कमान उन्हें थमाई थी.
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.