Gawan (Giridih) : गावां प्रखंड के सांख में आयोजित ग्यारह दिवसीय श्रीश्री 108 हनुमान प्राण प्रतिष्ठा सह महायज्ञ के दूसरे दिन 26 मई को यज्ञ मंडप की परिक्रमा को लेकर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. आचार्य सत्यम पांडेय ने वैदिक मंत्रोच्चारण कर पूजन कराया. रात के समय अयोध्या से आईं कथावाचिका देवी प्रेमा सखी ने गोकर्ण और धुंधकारी की कथा सुनाकर श्रोताओं को भावभिवोर कर दिया. कथा वाचिका ने कहा कि तुंगभद्रा नदी के तट पर आत्मदेव नामक एक व्यक्ति रहता था. उनकी पत्नी का नाम धुंधुली था. वह झगड़ालु प्रवृत्ति की थी. उसे संतान नहीं होने के कारण पति परेशान रहा करते थे. पति को इस बात की चिंता सता रही थी कि संतान नहीं रहने से बुढ़ापा कैसे कटेगा और मरने के बाद पिंडदान कौन करेगा? यही बात सोचते-सोचते वह एक दिन आत्महत्या के इरादे से कुएं के पास पहुंचा. तभी वहां एक ऋषि प्रकट हुए और उनकी व्यथा सुनी. ऋषि ने उन्हें एक फल देकर कहा कि इसे अपनी पत्नी को खिला देना, तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी.
आत्मदेव फल लेकर पत्नी को खिलाने पहुंचे लेकिन पत्नी सोची कि गर्भ ठहरने पर नौ माह तक बंधन में रहना पड़ेगा. इस वजह से फल नहीं खाया. एक दिन धुंधुली की बहन उनके घर आई. धुंधुली ने सारी कहानी बहन को सनाई. बहन बोली मैं गर्भावस्था में हूं, बच्चा होने पर तुम्हें दे दूंगी. बहन की बात सुनकर वह फल गाय को खिला दी. कुछ दिनों बाद बहन ने एक बच्चा को जन्म दिया. वह बच्चा धुधुंली को दे दिया गया. बच्चे का नामकरण धुंधकारी रखा गया. वहीं फल खाने के बाद गाय की गर्भ से जो बच्चा पैदा हुआ वह भी मानव की तरह था. उसका नाम गोकर्ण रखा गया. गोकर्ण और धुंधकारी दोनों को शिक्षा-दीक्षा के लिए गुरुकुल भेजा गया. धुंधकारी नशेड़ी व चोर निकला और एक दिन अपनी मां को ही मार डाला.
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