आदित्य कुमार
Ganwa (Giridih) : गावां प्रखंड के अमतरो पंचायत स्थित सुदूरवर्ती रेहा गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. आजादी के 75 साल बाद भी गांव में किसी पीढ़ी ने पक्की सड़क नहीं देखी है. आदिवासी बहुल रेहा गांव में 40 परिवार रहते हैं, लेकिन इस गांव को इसके हाल पर छोड़ दिया गया है. यह गांव बरमसिया मुख्य पथ से दो किलोमीटर के फासले पर है.
5वीं के बाद पढ़ाई के लिए जाना पढ़ता है 9 KM दूर
बताया जाता है कि गांव में पढ़ाई करने के लिए भी कोई मुक्कमल व्यवस्था नहीं है. एक सरकारी विद्यालय है जहां बच्चे पांचवीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए 8 से 9 किमी दूरी तय कर गावां प्रखंड मुख्यालय आते हैं. कॉलेज की पढ़ाई के लिए भी प्रखंड मुख्यालय की ओर आना पड़ता है.
स्कूल में एक चापानल तक नहीं
गांव में स्थित उत्क्रमित विद्यालय में बच्चों को पानी पीने के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं है. स्कूल में एक भी चापानल नहीं है. कई बार ग्रामीणों ने जनप्रतिनिधि और अधिकारियों को इससे अवगत कराया, लेकिन नतीज़ा सिफर ही रहा. गांव में कुल 4 चापानल है, जिसमें एक खराब है.
मनरेगा का नामो निशान नहीं, हो रहा पलायन
गांव में मनरेगा योजना से भी लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है. लोगों का कहना है कि मनरेगा योजना से गांव में कुआं, तालाब और सड़क का लाभ लेने के लिए कई बार संबंधित विभाग के कर्मियों को आवेदन दिया गया. इसके बावजूद गांव में अब तक मनरेगा का कोई काम नहीं हुआ.
क्या कहते हैं ग्रामीण
ग्रामीण मनोज सोरेन ने कहा कि सड़क नहीं होने से लोगों को हर तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. सबसे ज्यादा दिक्कत बरसात के मौसम में होती है. कच्ची सड़क पूरी तरह से दलदल में तब्दील हो जाती है.
अमित बास्के ने कहा कि जनप्रतिनिधियों ने रेहा गांव के लोगों को बार-बार ठगा है. आज यह गांव इस आधुनिक दौर में भी विकास से पिछड़ा हुआ है. गांव में सिंचाई करने के लिए भी कोई मुख्य साधन नहीं है.
सड़क निर्माण के लिए बड़े फंड की ज़रूरत : मुखिया
अमतरो पंचायत की मुखिया प्रभा देवी ने कहा कि रेहा गांव में सड़क निर्माण के लिए बड़े फंड की आवश्यकता है. उनके पास सड़क निर्माम के लिए पर्याप्त फंड नहीं है. इसके लिए स्थानीय सांसद और विधायक को इस दिशा में पहल करनी चाहिए.
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