Ghatshila (Rajesh Chowbey) : 25 वें रमजान के आखिरी जुमा यानी अलविदा जुमा की नमाज शुक्रवार को घाटशिला के सभी मस्जिदों में अदा की गई. इसमें बहुत से मस्जिद में अरबी में एक नज़्म भी पढ़ी गई ,”अलविदा अलविदा या शहर ए रमजान ” जिसमें हर कोई मंत्रमुग्ध हो गया साथ ही रमजान के जाने का गम भी उसे सताने लगा. उर्दू के उस्ताद डाक्टर कमर अली ने बताया कि इधर कुछ दिनों से बहुत ही शदीद गर्मी पड़ रही है ऐसे में रोजदारों का प्यास से बुरा हाल है. लेकिन सारे मुसलमान यह सोच कर काफी खुश हैं कि जितने ज्यादा उन्हें तकलीफ होगी अल्लाह ताला उन्हें उतना ही ज्यादा सवाब देंगे.
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साथ ही डॉ कमर अली ने कहा कि भूख और प्यास की शिद्दत जब आदमी के अंदर होती है तब उन गरीबों को समझने का मौका मिलता है जो रोजाना तीनों वक्त भरपेट भोजन नहीं कर पाते या कभी अच्छा भोजन नहीं कर पाते. रोजेदार जिंदगी में भी खुशहाल होता है और आखिरत में भी कामयाब होता है. रोजा से अपने देश और समाज की अच्छी तरह से सेवा करने की प्रेरणा मिलती है. रमजान त्याग और बलिदान का प्रतीक है. रमजान में हम सब कुछ अपना न्योछावर कर देना चाहते हैं .उल्लेखनीय है कि इस बार 75 रुपया प्रति व्यक्ति फितरा निकलना था साथ ही रमजान में ही सबसे ज्यादा जकात निकाला जाता है. जकात 2.5 प्रतिशत सालाना होता है. जकात रखे हुए माल पर होता है जो आदमी के आय का एक्स्ट्रा स्रोत है. इसी के कारण गरीबों के घरों में बच्चे बड़े बूढ़े सभी नए कपड़े पहन पाते हैं.
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इसी जकात की वजह से मुरझाए चेहरे खिल उठते हैं और ईद की तैयारी में सभी लोग लग जाते हैं. उल्लेखनीय है कि अलविदा की अरबी की जो नजम है “अलविदा अलविदा या शहर ए रमजान” यह नमाज का जरूरी हिस्सा नहीं है इसे सिर्फ रमजान के आखरी जुमा में पढ़ा जाता है. उन्होंने बताया कि वर्ष 2016 में जापान के वैज्ञानिक योशीनोरी ओसुमी को चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार इसीलिए दिया गया था कि उसने साल में 20 या 25 दिन या 1 महीना उपवास (रोजा) का फायदा बताया था जो सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है. रोजा कैंसर से आदमी को बचाता है.