अभय वर्मा
Giridih : सदर अस्पताल एमआर (मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव) और नामी कंपनियों के एजेंटों का सेफ जोन बन गया है. एक नामी जांच केंद्र के एजेंट ओपीडी में डॉक्टर के पास वाली कुर्सी पर बैठकर ग्राहक की तलाश करते हैं. वे कुर्सी पर इस कदर जमे रहते हैं मानो यहां के कोई अधिकारी ड्यूटी दे रहा हो. बगल से सिविल सर्जन व उपाधीक्षक हर रोज कई बार गुजरते हैं, सब कुछ देखने के बाद भी एजेंट पर रोक नहीं लगाते. एजेंट की तरह एमआर भी डॉक्टर की कुर्सी पर बेरोकटेक आकर बैठते हैं और घंटों डॉक्टर के पास बैठे रहते हैं. एमआर बाहर इंतजार करे तो कोई बात नहीं, लेकिन उनकी एंट्री सीधे ओपीडी में डॉक्टर के पास होती है.
ओपीडी में नियमों की उड़ाई जा रही धज्जियां
ओपीडी में नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है. सुबह 9 बजे से ओपीडी में मरीजों को बारी-बारी से आने-जाने की इजाजत है, पर एमआर की जब इच्छा होती है चेंबर में घुस जाते हैं. स्वास्थ्य विभाग के नियम के अनुसार ओपीडी में डॉक्टरों को केवल मरीजों को देखने की इजाजत है. एमआर से मुलाकात किया जाना नियम विरुद्ध है. इस बात की चिंता न तो डॉक्टर को है और न ही एमआर को. सदर अस्पताल में 90% दवाएं मुफ्त दी जाती है, पर मोटी कमीशन के चक्कर में महंगी कंपनियों की दवाइयां मरीजों को लिखी जाती है.
सीटी स्कैन का इंतजाम परिजन नहीं कर एजेंट तय करते हैं
डॉक्टर के चेंबर में हलचल तब होती है जब कोई गंभीर रूप से घायल मरीज आते हैं. कायदे से सिर में गंभीर चोट हो तो न्यूरो सर्जन की जरूरत पड़ती है. ऐसे मरीज को तत्काल धनबाद रेफर करने की परंपरा रही है, लेकिन सीटी स्कैन से लेकर एक्स-रे कराने का इंतजाम परिजन नहीं कर चैंबर में बैठे एजेंट तय करते हैं. गिरिडीह से लेकर धनबाद तक उनकी सेटिंग है.
पूछने पर पत्रकार से उलझ गए एजेंट
सदर अस्पताल में एक पत्रकार ने कंपनी का बैच लगाकर घूम रहे एक एजेंट से पूछा कि यहां आपका क्या काम है, इतना सुनते ही वे पत्रकार से उलझ गए?
संज्ञान में आया है, होगी कार्रवाई
इस संबंध में पूछे जाने पर सिविल सर्जन डॉ. एसपी मिश्रा ने बताया कि मामला मेरे संज्ञान में नहीं था. अब संज्ञान में आया है. ओपीडी के समय एमआर को आने की इजाजत नहीं है. डॉक्टरों को एमआर को नहीं आने देने का निर्देश दिया गया है. दुबारा ऐसी सूचना मिली तो कार्रवाई होगी.
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