Pravin kumar
Ranchi : झारखंड के सुदूरवर्ती इलाकों में आज भी मोटे अनाज (श्रीअन्न) का उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है. जन वितरण प्रणाली का कवरेज बढ़ने से मोटे अनाजों का उत्पादन राज्य में प्रभावित जरूर हुआ. लेकिन ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ) की खेती कई जिलों में परंपरागत स्वरूप में जनजातीय समुदाय आज भी करते हैं. राज्य में किसानों को मोटे अनाज (श्रीअन्न) की खेती के लिए अब सरकारी सहायता भी मिलेगी. झारखंड सरकार आनेवाले वित्तीय वर्ष में मोटे अनाज (श्रीअन्न) को बढ़ावा देगी. इसके लिए योजना तैयार की गई है. वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट में 50 करोड़ रुपये खर्च का प्रावधान किया गया है. कृषि विभाग के आंकड़े के अनुसार राज्य में करीब 16.7 हजार टन (लगभग 0.17 लाख टन) मड़ुआ (रागी) का उत्पादन होता है.
दुनिया लौट रही है मोटे अनाज की ओर
देश में 60 के दशक में आई हरित क्रांति के आने के बाद गेहूं और चावल पर देश में निर्भरता बढ़ गया. हमने मोटे अनाज को खुद से दूर कर दिया. जिस अनाज को हम साढ़े छह हजार साल से खा रहे थे, उससे हमने मुंह मोड़ लिया और आज पूरी दुनिया उसी मोटे अनाज की तरफ वापस लौट रही है. बता दें कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट इयर (मोटे अनाज का वर्ष) घोषित किया है. 2023 में झारखंड के विभिन्न जिलों में मोटे अनाज (श्रीअन्न) के उत्पादन को दोगुना करना सरकार का लक्ष्य है. इसको बढ़ावा देने की योजना पर कृषि विभाग काम कर रहा है.
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कृषि विभाग की क्या है तैयारी
कृषि विभाग की कार्यशाला में मड़ुआ की रोटी, मड़ुआ का पीठा, छिलका रोटी आदि परोसा जा रहा है. कृषि विभाग मोटे अनाज की उपयोगिता और संभावना पर राज्य से लेकर प्रखंड स्तर पर सेमिनार का आयोजन करेगा. किसानों के लिए सीड अरजमेन्ट, एरिया मैपिंग किया जा रहा है. साथ ही उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को मिले इस पर काम किया जा रहा है. संताल परगना और पलामू प्रमंडल के साथ-साथ गुमला और सिमडेगा जैसे जिले में इसको विशेष रूप से बढ़ावा देने की योजना पर काम किया जा रहा है.
झारखंड में तीन प्रकार के मोटे अनाज की होती है उपज
राज्य में मुख्य रूप से तीन तरह के मोटे अनाज की उपज होती है. साल 2022 में करीब 19 हजार हेक्टेयर में मडुआ की खेती हुई थी. जिसके तहत 0.17 लाख टन मडुआ का उत्पादन हुआ. इसकी उत्पादकता करीब 8.78 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इसके अलावा करीब 1563 हेक्टेयर में ज्वार लगाया गया था. करीब 0.12 लाख टन ज्वार का उत्पादन हुआ. इसकी उत्पादकता 8.17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के करीब है. राज्य में करीब 0.34 एकड़ में बाजरा की खेती होती है.
गैर सरकारी संस्थाएं भी मिलेट्स (श्रीअन्न) को बढ़वा देने के लिए कर रहा है काम
स्विच ऑन फाउंडेशन के दीपक कहते हैं कि झारखंड में मिलेट्स के अनुकूल परिस्थितियां है. खाली पड़ी जमीनों पर इससे अच्छी पैदावार ली जा सकती है. स्विचऑन फाउंडेशन इसके लिए संथाल परगना में किसानों को मोबिलाइज भी किया है. 100 से 300 एकड़ में मडुआ की खेती की तैयारी की गई है. इसके लिए किसानों को प्रशिक्षित भी किया गया है. संस्थान की ओर से 500 किसानों का समूह तैयार किया गया है. किसानों के उपज का 60% हिस्सा उचित बाजार मूल्य पर बेचने की रणनीति बनायी गई है.
क्या कहते हैं कृषि निदेशक चंदन कुमार
कृषि निदेशक चंदन कुमार कहते हैं कि विभाग ने मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए राज्य बजट में 50 करोड़ का प्रावधान किया है. यह पहली बार हुआ है. कृषि निदेशालय की ओर से मिलेट्स का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषणा हो, इस दिशा में विभाग काम कर रहा है. यहां के जनजातीय समुदाय मोटे अनाज की भरपूर खेती करते थे. बाजार नहीं होने के कारण इसको बढ़ावा नहीं मिल सका. अब मोटे अनाज को बाजार की दिक्कत नहीं होगी. इसका सबसे बड़ा फायदा है कि यह पूरी तरह आर्गेनिक फसल है. इसमें कीटनाशक की जरूरत नहीं होती है. यह कम पानी में तैयार हो जाता है. झारखंड में समय-समय पर सूखा पड़ जाता है. इसको देखते हुए झारखंड के लिए यह काफी अनुकूल है.
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