Nilay Singh
सिक्खों के नौवें गुरू, गुरू तेग बहादुर का स्थान विश्व इतिहास में धर्म, मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांतों की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में अद्वितीय है. गुरु तेग बहादुर साहिब, गुरु हरगोबिंद के पांचवे और सबसे छोटे संतान थे, पिता ने उन्हे त्यागमल नाम दिया. वे एक बहादुर योद्धा होने के साथ-साथ महान विद्वान भी थे, करतारपुर में मुगलों के साथ उनके शौर्य को देख कर उनका नाम त्यागमल से तेग बहादुर रखा गया जिसका अर्थ था “तलवार का स्वामी”, लेकिन इस युद्ध के बाद उन्हे वैराग्य हो गया और उन्होंने बाकला में रह कर 26 साल तक साधना की .
इसके बाद उन्हे नौवां गुरू बनाया गया और गुरु तेग़ बहादुर चारों तरफ शांति का संदेश फैलाने लगे. ये वो समय था जब मुगल शासक औरंगजेब के शासन काल में हिंदुओं और सिखों के जबरन धर्मांतरण हो रहे थे और उनके मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, महिलाओं के साथ अमानवीय अत्याचार किया जा रहा था और गुरु इन सबसे बहुत दुखी थे. औरंगजेब की तरफ से अफगान खां कश्मीर का सूबेदार हुआ करता था. औरंगजेब के आदेश के अनुसार उसने भी तलवार के दम पर कश्मीरी पंडितों को मुसलमान बनाना शुरू कर दिया .
कश्मीरी पंडितों ने गुरु तेग बहादुर के बारे में सुन रखा था कि वह लोगों की मदद करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं. तो कश्मीरी पंडितों का समूह गुरु जी से मिलने आनंदपुर साहिब पहुंचा. जब कश्मीरी पंडितों ने गुरु जी को अपनी पीड़ा सुनाई तो गुरु तेग बहादुर ने कहा कि कमजोरों में जान डालने के लिए और इस धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए जरुरी है कि कोई पवित्र व्यक्ति अपना जीवन की क़ुर्बानी दे तभी लोगों में हिम्मत आएगी. गुरु गोविन्द सिंह जिनकी उम्र केवल 9 वर्ष की थी और उस वक्त वे गुरू के साथ तख्त पर बैठे थे, उन्होने कहा कि पिताजी आपसे पवित्र और ज्ञानी व्यक्ति कौन होगा इस कार्य के लिए और शायद तेग़ बहादुर जी भी यही सोच रहे थे, उनके बेटे के विचारो ने उनमे आशा की एक और उम्मीद जगा दी.
गुरु तेग बहादुर ने पंडितों से कहा कि जाकर औरंगजेब से कह दो, अगर तुमने हमारे गुरु का धर्म बदल दिया और अगर उन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया तो हम भी कर लेंगे . इस जवाब को औरंगजेब तक पहुंचा दिया गया और उसने इस बात को स्वीकार कर लिया. इसके बाद गुरु जी अपने 4 खास सेवक भाई मती दास, , भाई सती दास , भाई दयाला और भाई जैता जी के साथ आनंदपुर साहिब से चल पड़े.
गुरु तेग बहादुर साहिब के निडर औरगंजेब के पास आने और लोगों की मदद करने की बात से औरंगजेब विचलित हो उठा, और उसने गुरु तेग बहादुर और उनके साथियों को तुरंत गिरफ्तार कर दिल्ली लाने का फरमान जारी किया. गिरफ्तारी के बाद औरंगजेब के हाकिमों ने गुरु तेग बहादुर को मुसलमान बनाने के लिए कई तरह के लालच दिए और भयानक मौत देने की बात कहकर डराने की कोशिश की, बावजूद इसके गुरु तेग बहादुर साहिब जी के दिमाग में केवल एक ही बात थी कि अपना शीश कलम करके कश्मीरी पंडितों को बचाया जाए और कमजोर लोगों में हिम्मत भरी जाये.
गुरु जी को डराने के लिए पहले उनके सामने भाई मतिदास जी को जिंदा आरे से चीर दिया गया,भाई दयाला को उबलते पानी में डूबो कर मार दिया गया, और आखिर में भाई सती दास जी को ज़िंदा जला दिया गया. इतने जुल्म के बाद भी गुरु जी घबराए नहीं और अंत में गुरु जी को चांदनी चौक में सर कलम कर शहीद कर दिया गया. औरंगजेब का आदेश था कि उनका अंतिम संस्कार न किया जाए. हालांकि सिपाहियों की आंख में धूल झोंककर भाई जैता जी उनका शीश लेकर घोड़े पर सवार होकर आनंदपुर साहिब की ओर चल पड़े. गुरु जी का शीश गायब हुआ देख सिपाहियों ने उनके धड़ के पास पहरा लगा लिया. ऐसे में लक्खी नाम के एक व्यापारी ने गुरु जी के धड़ को उठाया और अपने गांव रकाबगंज ले गया.
वहां ले जाने पर उसने गुरु जी के धड़ को अपने घर में रखकर पूरे घर को आग लगा कर गुरु जी का अंतिम संस्कार किया. जहां पर गुरू जी का शीश काटा गया दिल्ली में आज वहां गुरूद्वारा शीशगंज मौजूद है और जहां उनके धड़ का संस्कार हुआ वहां गुरूद्वारा रकाबगंज मौजूद है. धर्म के लिए अपना बलिदान देने वाले गुरू तेग बहादुर को शत शत नमन.