Hazaribagh: भारत के बजट 2018-19 में गोबर-धन (Galvanizing Organic Bio-Agro Resources Dhan – GOBAR-DHAN) योजना शुरू करने की घोषणा की गई थी. यह योजना चुनावी साल के बजट की घोषणा थी. तब यह कहा गया था कि गोबर-धन योजना के सुचारु संचालन के लिये एक ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म विकसित की जाएगी. यह प्लेटफॉर्म किसानों के लिये गोबर और फसल अवशेषों के उचित दाम सुनिश्चित करने हेतु किसानों को खरीदारों से जोड़ेगा.
इस योजना का मुख्य उद्देश्य गांवों को स्वच्छ बनाना एवं पशुओं और अन्य प्रकार के जैविक अपशिष्ट से अतिरिक्त आय तथा ऊर्जा उत्पन्न करना है. झारखंड में इस योजना की शुरुआत वर्ल्ड टॉयलेट डे को यानी 19 नवंबर 2018 को हजारीबाग के एक गांव नवादा से की गई थी. इसे राज्य स्तरीय कार्यशाला का नाम दिया गया था. इस कार्यशाला में तत्कालीन पेयजल स्वच्छता मंत्री चंद्र प्रकाश चौधरी समेत कई आला अधिकारी वहां पहुंचे थे. इस योजना करते हुए सबसे पहला बायोगैस संयंत्र यहां एक किसान को दिया गया था.
लगातार.इन की पड़ताल
लगातार डॉट इन की टीम ने जब इस योजना की पड़ताल शुरू की तो पता चला कि 2 वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद आज तक किसी को इस योजना से कोई दूसरा बायोगैस संयंत्र नहीं मिला है. इस योजना में आगे कोई कार्य नहीं हुआ. जिस किसान को यह बायो संयंत्र मिला है उसे यह आश्वासन मिला था कि शुरुआती लागत खुद से वहन करने के बाद पूरा पैसा मिलेगा. यह आश्वासन नवादा के मुखिया सलाउद्दीन ने इस किसान को दिया था.
आज 2 वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद इस किसान को पैसे का भुगतान नहीं हुआ है. थोड़ी और पड़ताल हुई तो पता चला कि केंद्र सरकार ने इस योजना की शुरुआत तो कर दी लेकिन लेकिन बजट अलाटमेंट तब नहीं किया गया था. योजना में 75% राशि केंद्र सरकार को देनी थी और 25% राशि राज्य सरकार को वहन करना था. लेकिन केंद्र सरकार ने कभी इस योजना के तहत पैसा दिया ही नहीं जिससे पूरी योजना ही खटाई में पड़ गई और इस पूरे योजना का एकमात्र गवाह हजारीबाग का यह इकलौता बायोगैस संयंत्र बच गया है.
केवल एक समय की दाल पकती है
लाभुक की पत्नी सीमा देवी कहती हैं कि इसमें पूरी गैस नहीं बनती और अगर भोजन की बात करें तो केवल चाय या एक समय का दाल ही इसमें पकाया जा सकता है. अब हम लोग परेशान हैं कि क्या करें पैसा भी लग गया और यह ठीक से काम ही नहीं कर रहा है.
तत्कालीन उपायुक्त रवि शंकर शुक्ला के अपने प्रयास से यह योजना केवल हजारीबाग में शुरू तो पाई लेकिन केंद्र के इस योजना से हाथ खींच लेने के कारण वित्तीय भुगतान नहीं हो सका. एकलौता बायोगैस संयंत्र हजारीबाग के इस किसान के लिए केवल एक टीस बनकर रह गया है.
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