Hazaribagh : हजारीबाग जैन महिला मिलन की ओर से इंद्रलोक आईलेक्स में जैन धर्म दर्शन से संबंधित वीर गोम्मटेशा का दिग्दर्शन दिखाया गया. इस धार्मिक चलचित्र में जैन दर्शन ईश्वर के अस्तित्व और धर्म की मान्यता के बारे में बड़े ही तार्किक दृष्टिकोण को रखते हुए पूरा चलचित्र दिखाया गया uw. पिक्चर का प्रारंभ महामंत्र णमोकार के पाठ की ओर से प्रारंभ किया गया. बड़े ही उत्साह और उल्लास से जैन समाज के लोगों ने इस मूवी का प्रदर्शन किया व अनुशासित ढंग से देखा. महिलाएं पीली साड़ी व पुरुष श्वेत वस्त्र में अपनी सहभागिता दी. पिक्चर का मुख्य उद्देश्य आज के नौजवान वर्ग को धर्म की महिमा और धर्म के प्रति आस्था जगाने का प्रयास था. लोगों को यह समझाने की कोशिश की गई कि वर्तमान में हमारे गुरु साधु संत जिस प्रक्रिया से अपना जीवन यापन करते हैं, उनके प्रति श्रद्धा, विश्वास, समर्पण, त्याग, तप और साधना यह एक दिन का प्रयास नहीं है, बल्कि वर्षों का धर्म के प्रति समर्पण का है.
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संथारा व सल्लेखना एक प्रमुख धार्मिक अनुष्ठान
पिक्चर में यह दिखाया गया है कि कैसे एक नास्तिक व्यक्ति समय परिस्थिति के अनुसार आस्तिक हो जाता है और फिर नास्तिक से आस्तिक में कैसे बदल जाता है. इस फिल्म के जरिए धर्म के मर्म को समझाने का भी प्रयास किया गया. भारतीय दर्शन में सल्लेखना और संथारा का बड़ा ही महत्व है. जैन समाज में संथारा व सल्लेखना एक प्रमुख धार्मिक अनुष्ठान है. मृत्यु यहां पर महोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिसमें यह दिखाने का भी प्रयास किया गया है कि कैसे धीरे-धीरे भोजन जल अन्न का त्याग करते हुए उत्तर दिशा की ओर मुख करते हुए जीवन का त्याग किया जाता है. संयम मोक्ष प्राप्ति का साधन है, इसका वर्णन बड़े सुंदर ढंग से संपादित किया गया. जैन समाज के मीडिया प्रभारी विजय जैन लुहाड़िया ने बताया की साधु-संतों की अंतिम इच्छा सल्लेखना व संथारा को कैसे न्यायपूर्ण देह का त्याग किया जाता है.
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लोगों को देखना चाहिए यह फिल्म
लोगों ने इस चलचित्र को देखने के बाद इसके डॉयरेक्टर व निर्देशक शैलेंद्र जैन व शशांक जैन की पटकथा एवं निर्देशन को बड़े ही मुक्त कंठ से प्रशंसा की और कहा कि इस पिक्चर को आज के युवा पीढ़ी को जरूर देखना चाहिए. जैन महिला मिलन की अध्यक्षा प्रेम लता लुहाड़िया, सचिव संतोष अजमेरा, संयोजिका आशा विनायका व सुशीला सेठी व प्रेमा टोंग्या सहयोगी के रूप में रुई सेठी, गुंजन सेठी और सभी कार्यकर्ता के कार्यों की पूरे समाज के लोगों ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की.