Hazaribagh : जिले के टाटीझरिया प्रखंड से महज 4 किलोमीटर पर स्थित मुरुमातु गांव एक इंतज़ार में है कि सरकार कभी उनके लिए शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करेगी. झारखंड अलग हुए 20 साल हो जाने के बाद भी लोग नदी के किनारे बहते पानी के सोते से पानी पीने को मजबूर हैं. बुनियादी सुविधा में पेयजल पहला स्थान रखता है. जब पेयजल के लिए भी गांव के लोगों को जद्दोजहद करना पड़े तो समझा जा सकता है कि गांव की परिस्थिति विकट है. तीन पीढ़ियां से इस गांव की महिलाएं पीने का पानी लेने के लिए दूर नदी जाती हैं और चुआं से इन महिलाओं को पानी निकालने में ही आधी जिंदगी निकाल देती हैं.
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गांव प्रधानमंत्री आदर्श गांव के रूप में चयनित है
इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि यह गांव प्रधानमंत्री आदर्श गांव के रूप में चयनित है फिर भी आज तक पेयजल की व्यवस्था नहीं हो पाई, ग्रामीणों ने स्थानीय मुखिया से लेकर सांसद, विधायक तक से गुहार लगाई, पर किसी ने भी इस गांव में एक बोरिंग भी नहीं कराया. उनका यह भी कहना है कि हमारे गांव से महज 2 किलोमीटर पर प्रखंड मुख्यालय है, वहां भी अर्जी दी गई, पर किसी ने भी हमारी बातों को नहीं सुना. ऐसे में हम लोग बेबस होकर नदी का पानी ही वर्षों से पीते आ रहे हैं. बरसात के मौसम में नदी विकराल हो जाती है, फिर भी पीने के लिए तो पानी चाहिए ही. इसलिए ग्रामीण महिलाएं जान जोखिम में डालकर नदी से पानी भर लाती हैं.
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नदी से पानी लाती है महिलाएं
कुछ दिन पहले शादी करके आई ग्रामीण महिला बताती हैं कि हमारे मायके में नल से पानी आता है. हम लोग कभी-भी पानी लाने के लिए घर से बाहर नहीं निकले. लेकिन ससुराल आकर मुझे पानी नदी से लाना पड़ रहा है. हम चाहते हैं कि जल्द से जल्द यहां पर बोरिंग किया जाए, पीने के पानी की व्यवस्था की जाए, नहीं तो हमारी आने वाली पीढ़ी भी नदी से ही पानी लाने को विवश हो जायेगी.
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