Amarnath Pathak
Hazaribagh: आम बोलचाल की भाषा में हमलोग रत्तीभर शब्दों का खूब इस्तेामल करते हैं. लेकिन कम ही लोगों को पता होगा कि यह रती दुर्लभ बीज करजनी को कहा जाता है. यह बीज अब विलुप्ति के कगार पर है. जैव विविधता पर शोध करने वाले डॉ. मृत्युंजय शर्मा को हजारीबाग के बड़कागांव के जंगल में करजनी के बीज और कुछ फल मिले हैं. उन्होंने बताया कि पहले यह झारखंड के जंगलों में बहुतायत पाए जाते थे. गिरिडीह और कोडरमा के जंगलों और नदी तट पर करजनी देखे जाते थे. लेकिन धीरे-धीरे यह जंगली बीज विलुप्ति के कगार पर पहुंच गए.
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अब यदा-कदा ही करजनी देखने को मिलते हैं. इसका एक भाग लाल और दूसरा हिस्सा काला दिखाई देता है. यह फल हल्का विषैला होता है. इसका फल सोना आभूषण मापने के काम आता है. वह भी रत्तीभर माप में इसी फल का उपयोग किया जाता है. इसकी खासियत यह है कि इसके सभी बीज और फल के वजन समान यानि रत्तीभर ही होते हैं. सोने के वजन के अलावा कीमती पत्थर को भी तौलने के लिए आज भी व्यवसायी रत्ती (करजनी) का इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने बताया कि घरेलू मान्यता के अनुसार बच्चों को नजर से बचाने के लिए रूढ़िवादी विचारधारा के लोग इसका इस्तेमाल जंतर-मंतर में करते हैं. साथ ही घरेलू उपचार में मोतियाबिंद को दूर करने में लोग इसका उपयोग करते हैं. हालांकि चिकित्सा विभाग की ओर से इसकी किसी प्रकार की पुष्टि नहीं की जाती है.
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