Hazaribagh: सरकारी नौकरियों में जाने के लिए विद्यार्थियों को प्रतियोगिता परीक्षा में बैठना पड़ता है. इसके लिए वैकेंसी निकाली जाती है. विद्यार्थी मेहनत करते हैं और परीक्षा भी देते हैं, लेकिन परिणाम आने से पहले ही रद्द हो जाती है. यह एक बार नहीं कई बार होता है. जाहिर है इससे विद्यार्थियों का मनोबल टूट जाता है. फिर अगली परीक्षा के इंतजार में उम्र ही निकल जाती है. वहीं एक परीक्षा अगर सही तरीके से आयोजित होती है, तो न सिर्फ विद्यार्थियों की उम्मीद पूरी होती है, बल्कि उनका हौसला भी बढ़ता है. लेकिन पिछले कुछ समय से परीक्षा रद्द होने से कई विद्यार्थी प्रतियोगिता से ही बाहर हो गये हैं. लगातार मीडिया की टीम ने जिले के अभ्यर्थियों से बात की और उनकी प्रतिक्रिया जानी.
प्रतीक्षा में ही गुजर गये 22 साल : प्रमोद प्रसाद
दीपूगढ़ा निवासी प्रमोद प्रसाद कहते हैं कि अभी झारखंड प्रयोगशाला सहायक प्रतियोगिता परीक्षा 2022 का विज्ञापन 29 जुलाई को निकाला गया है. इसमें न्यूनतम उम्र सीमा 01.01.2022 रखा गया है. यह उचित नहीं है. चूंकि झारखंड अलग होने के बाद पहली बार यहां के स्कूलों में प्रयोगशाला सहायक की बहाली हो रही है. अभ्यर्थियों ने 22 साल की प्रतीक्षा की और जब बहाली निकली, तो परीक्षा में बैठने की उम्र ही खत्म हो गई. ऐसे में अभ्यर्थियों के प्रति सरकार को न्याय बरतने की जरूरत थी. हजारों अभ्यर्थी इसमें आवेदन नहीं कर पाएंगे.
सरकारी नौकरी की उम्र पार हो रही है : प्रियंका मिश्रा
ओकनी की प्रियंका मिश्रा कहती हैं कि दो वर्ष पहले से बीएड की डिग्री लेकर बैठी हूं, लेकिन झारखंड में शिक्षक बहाली की कोई वैकेंसी ही नहीं है. सरकारी नौकरी के लिए उम्र पार हो रही है. सरकार को चाहिए कि ऐसे अभ्यर्थियों को पहले मौका दे. लेकिन यहां कोई सुननेवाला नहीं. यहां तो सिर्फ घोषणा और आश्वासनों की झड़ी है. वैकेंसी आते-आते उम्र निकल गई, तो नौकरी की आस धरी की धरी रह जाएगी. डिग्री में जो राशि खर्च हुई, वह भी बेकार जाएगी.
वैकेंसी रद्द होने से टूटता है मनोबल : राहुल गुरु
शिवदयालनगर के युवा राहुल गुरु कहते हैं कि सरकार को युवाओं का दर्द समझने की जरूरत है. वैकेंसी रद्द होने से मनोबल टूट जाता है. बड़ी आस लगाकर अभ्यर्थी तैयारी करते हैं और वैकेंसी आने पर खुशी मिलती है. लेकिन एक झटके में विज्ञापन रद्द कर देने से परीक्षा की तैयारी कर रहे युवाओं का आत्मविश्वास भी डगमगा जाता है. साथ ही सरकारी नौकरी के प्रति भरोसा भी बिखरने लगता है. अभी हाल ही में जेएसएससी सीजीएल की परीक्षा रद्द होने से उनका मनोबल भी टूटा है.
नौकरी का विज्ञापन विवाद में ही फंसा रहा : दशरथ कुमार
बड़कागांव निवासी दशरथ कुमार कहते हैं सरकार की गलत नीतियों की वजह से सही समय पर प्रतियोगिता परीक्षाएं नहीं हो पाती हैं. अगर परीक्षाएं हुईं भी, तो इतना विवाद बढ़ जाता है कि मामला कोर्ट में ही उलझकर रह जाता है. इधर अभ्यर्थियों की उम्र सीमा पार कर जाती है. अभ्यर्थी ठगे हुए महसूस करते हैं. हाईस्कूल शिक्षक बहाली में बेहतर अंक रहते हुए भी उनका चयन सिर्फ इसलिए नहीं हो पाया कि सरकार की नियोजन नीति ही गलत थी. मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. अभ्यर्थी नौकरी पाने के बाद भी सुरक्षित नहीं हैं कि पता नहीं कब वह वैकेंसी ही रद्द हो जाए.
युवाओं के सामने रोजगार का संकट : संदीप सिन्हा
नुरा निवासी संदीप सिन्हा कहते हैं कि नौजवानों के पक्ष में वर्तमान हालात ठीक नहीं हैं. केंद्र हो या राज्य सरकार, युवाओं के सामने रोजगार को लेकर संकट की स्थिति है. एक तो वैकेंसी निकलती नहीं और निकली भी, तो उन जैसे युवाओं की उम्र ही पार कर जाती है. जिस परीक्षा में वह शामिल हुए, कहीं न कहीं वह नियुक्ति ही जंजाल में फंस गई. उन्होंने कई ऐसी परीक्षाएं दीं, जिसकी जांच सीबीआई कर रही है या फिर कोर्ट में मामला लंबित है. इधर उनकी उम्र सीमा सरकारी नौकरी के लिए पार होने वाली है. अब ऐसी स्थिति में विद्यार्थी किधर जाएंगे. इसे देखने वाला कोई नहीं है. जबकि इस पर सरकार को गंभीर होना चाहिए.
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