Hazaribagh : राज्य में एक तरफ दुमका में मलूटी में मंदिरों का गांव है तो दूसरी ओर हजारीबाग में भी टेंपल टाउन है. यह टेंपल टाउन इचाक है. प्राचीन मंदिरों और पौराणिक मूर्तियों की वजह से इचाक की पहचान बढ़ रही है. हजारीबाग शहर से 10 किलोमीटर दूर इचाक टेंपल ऑफ द टाउन के नाम से विख्यात है. इसकी प्रसिद्धि न सिर्फ देशभर में, बल्कि सरहद पार तक पहुंच चुकी है. तभी तो यहां नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी लाइनोइड शिकागो के आर्ट हिस्टोरियन रॉबर्ट लिन रोथ का आगमन हो चुका है.
मंदिर में अद्भुत नक्काशी और कलाकृतियां
रॉबर्ट लिन के यहां आए ज्यादा दिन नहीं हुए हैं. लेकिन उनका मंदिरों का भ्रमण जारी है. इसी वर्ष दो फरवरी को रॉबर्ट पद्मश्री से नवाजे जा चुके विश्वप्रसिद्ध पर्यावरणविद् बुलू इमाम के पुत्र जस्टिन इमाम और पीएचडी डेक्कन कॉलेज पुणे के शोधार्थी हिमांशु शेखर के साथ कई मंदिरों को देखे. उन्होंने इचाक के सैकड़ों मंदिरों सहित विख्यात बंशीधर मंदिर, बड़ा अखाड़ा, भगवती मठ और भैरव मठ के अलावा कई मंदिरों एवं मूर्तियों का अवलोकन किया. साथ ही उसकी अद्भुत नक्काशी और कलाकृतियां देख रोमांचित हुए. बता दें कि इचाक प्रखंड में सौ से अधिक पौराणिक मंदिर, सुंदर तालाब और बाग-बगीचे हैं, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. इचाक के मंदिरों की पहचान कुछ अलग है. यह इतिहास के पन्नों में दर्ज है. शिकागो से आयी टीम के लोगों ने बताया कि रॉबर्ट लिन रोथ ने इचाक के मंदिरों और तालाबों से संबंधित 32 पेज की किताब लिखी है. इसमें इचाक के सैकड़ों पौराणिक मंदिरों और मूर्तियों का उल्लेख है.
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इचाक के पौराणिक मंदिरों की पहचान विदेशों में भी
हजारीबाग के पाला सेना राजा के शासनकाल (18-19वीं शताब्दी से भी पहले) के प्राचीन मंदिर के अवशेषों कई स्थानों पर बिखरे पड़े हैं. इचाक के पौराणिक मंदिरों और मूर्तियों की पहचान अब सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी देखने को मिल रही है. इचाक प्रखंड स्थित भैरव समेत कई मंदिरों की नक्काशी में मुस्लिम कारीगरों का प्रभाव दिखता है. यह जानकारी देते हुए मेगालिथ शोधकर्ता शुभाशीष दास कहते हैं कि इचाक के कुरहा जानेवाली राह में कई मुस्लिम धर्मावलंबी बसे हुए हैं. वहां आसपास मस्जिदों का भी निर्माण हुआ है. ऐसे में औरंगजेब-2 के शासनकाल में वहां मंदिरों की नक्काशी की संभावना जताई जाती है.
100 वर्ष पुराना है जैन मंदिर
इचाक बाजार में वर्षों पुराना जैन धर्मावलंबियों का जैन मंदिर है. यह लगभग 100 वर्ष पुराना है. यहां नियमित पूजा पाठ होती है. दिगंबर जैन पंचायत के अध्यक्ष धीरेंद्र सेठी, महामंत्री पवन जैन अजमेरा और मीडिया प्रभारी विजय लुहाड़िया बताते हैं कि यहां जैन समाज से जुड़े लोग अक्सर पूजा-अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं. इचाक के ऐतिहासिक मठ-मंदिर, तालाब और बाग-बगीचे के परिसरों की सूरत बदल रही है. गूंज के अलावा एक अन्य संस्था यहां के मठ-मंदिरों, तालाबों और बाग-बगीचों को संवारने में जुटी है. इचाक प्रखंड के दर्जनों ऐतिहासिक स्थल का जीर्णोद्धार किया जा रहा है. जल्द ही बुढ़िया माता मंदिर, छोटा अखाड़ा, सूर्य मंदिर तालाब और रानीपोखर समेत अन्य धार्मिक स्थलों की सूरत बदली हुई दिखाई देगी. इस पर तेजी से काम किया जा रहा है. जाहिर है जब यह पूरी तरह से तैयार हो जाएगा तब लोगों की भीड़ बढ़ जाएगी.
सूर्य मंदिर तालाब में अर्घ्य अर्पण के प्रति गहरी है आस्था
लोक आस्था व सूर्य उपासना का महापर्व छठ में इचाक की परासी पंचायत के धनगरपाला स्थित सूर्य मंदिर तालाब में अर्घ्य देने का अलग महत्व है. स्व. भैरवलाल कपरदार के पुत्र और परासी के मुखिया अशोक कपरदार और सेवानिवृत्त शिक्षक वन विहारी नारायण सिंह कहते हैं कि यहां के सूर्य मंदिर का निर्माण रामगढ़ के राजा सिंहदेव और बागदेव ने सन् 1810 में जन भावना को ध्यान में रखकर कराया था. बताया कि बाग, बगीचा और तालाब से घिरे इस मंदिर की ऊंचाई करीब 70 फीट है. लोगों का मानना है कि उदीयमान भगवान भास्कर के प्रथम किरण के पड़ते ही मंदिर के गुम्बज से एक विशेष प्रकार की छटा निकलती है. इसका दर्शन करनेवाले हर भक्त की मन्नतें पूर्ण होती हैं. कहा कि यही वजह है महापर्व छठ में उदीयमान सूर्य को अर्घ्य लेने के लिए जन आस्था का सैलाब उमड़ पड़ता है. मंदिर के पीछे दो कमरों से होकर पदमा किला तक सुरंग बना है. मान्यता है कि पदमा राज घराने की महारानी छठ के मौके पर अपनी सखियों के साथ इसी सुरंग से होकर पदमा से इचाक अस्ताचलगामी और उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने सूर्य मंदिर से होकर तालाब तक पहुंचती थीं. इसे देखने के लिए इचाक के सभी गांवों की प्रजा का सैलाब उमड़ पड़ता था.
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भारत में है मंदिर संग तालाब की पौराणिक संस्कृति
मेगालिथ शोधकर्ता और भारतीय इतिहास के जानकार शुभाशीष दास कहते हैं कि भारत में मंदिर संग तालाब की पौराणिक संस्कृति है. यह दृश्य बंगाल से तमिलनाडू तक देखने को मिलता है. यही वजह है कि इचाक में सौ से अधिक मंदिर हैं, तो इतने ही तालाब. दरअसल अपने देश में स्नान के बाद ही ध्यान की परंपरा रही है. श्रद्धालु पहले तालाब में स्नान करते हैं. फिर मठ-मंदिरों में ध्यान लगाते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं.