NewDelhi : भाजपा नेता डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी की संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद (Socialism) और धर्मनिरपेक्षता (Secularism) शब्दों को हटाने की मांग वाली याचिका पर 23 सितंबर को सुनवाई होगी. बता दें कि यह याचिका 2 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में विचार के लिए आयी थी. खबर आयी है कि जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने डॉ स्वामी की याचिका को इसी तरह की याचिका के साथ पोस्ट किया है, जो 23 सितंबर को भारत के CJI की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध की गयी है.
सुप्रीम कोर्ट संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ को हटाने की मांग वाली सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर 23 सितंबर को सुनवाई करेगा https://t.co/oiK4SkSks5
— Subramanian Swamy (@Swamy39) September 2, 2022
इसे भी पढ़ें : कस्टोडियल डेथ के मामले में गुजरात नंबर वन, महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर : NCRB की रिपोर्ट
डॉ बी आर अम्बेडकर ने इन शब्दों को शामिल करने से इनकार कर दिया था
जान लें कि इस मामले में दूसरे याचिकाकर्ता एडवोकेट सत्य सभरवाल हैं. याचिका में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय में 1976 में 42वें संविधान संशोधन के माध्यम से प्रस्तावना में समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता शब्दों को जोड़ने की वैधता को चुनौती दी गयी थी. इस मामले में तर्क दिया गया है कि इस तरह शब्दों को जोड़ना अनुच्छेद 368 के तहत संसद की संशोधन शक्ति से परे है.
याचिकाकर्ताओं के अनुसार संविधान निर्माताओं का इरादा कभी भी लोकतांत्रिक शासन में समाजवादी या धर्मनिरपेक्ष अवधारणाओं को पेश करने का नहीं था. कहा गया है कि डॉ बी आर अम्बेडकर ने इन शब्दों को शामिल करने से इनकार कर दिया था. क्योंकि संविधान नागरिकों के चयन के अधिकार को छीनकर कुछ राजनीतिक विचारधाराओं पर जोर नहीं दे सकता.
इसे भी पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 4 दिनों में 1293 मामले निपटाये, इनमें 440 ट्रांसफर केस
संसद इसे बदल नहीं सकती है
बताया गया कि केशवानंद भारती मामले में प्रस्तावना को संविधान की मूल संरचना का एक हिस्सा घोषित किया गया है और इसलिए, संसद इसे बदल नहीं सकती है. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29ए(5), जिसके लिए एक राजनीतिक दल को पंजीकरण के लिए समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के प्रति निष्ठा रखने की आवश्यकता है, क्योंकि यह संविधान के विपरीत है.