Shailesh Singh
Kiriburu : सारंडा एक्शन प्लान का धरातल पर नहीं उतरना, वर्ष-2000 के बाद सारंडा में वन विभाग द्वारा विशेष वर्किंग प्लान बनाकर सारंडा वासियों को रोजगार से नहीं जोड़ना, जंगल को बचाने हेतु डीएसपी सारंडा नामक पद का सृजन नहीं किया जाना, सारंडा की अधिकतर सीमा ओड़िशा से लगे होने आदि अनेक वजह से सारंडा में लकड़ी तस्करों का साम्राज्य स्थापित हुआ. सिर्फ खानापूर्ति के नाम पर कुछ पेट्रोलिंग और छापेमारी से सारंडा जंगल को नहीं बचाया जा सकता है. उल्लेखनीय है कि सीमित संसाधन एंव मैन पावर के साथ पिछले कुछ महीनों में वन विभाग की टीम ने सारंडा एवं कोल्हान के जंगलों में सक्रिय लकड़ी माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई करते हुए कुछ स्थानों से भारी मात्रा में कीमती लकड़ी व वाहनों को जब्त अवश्य किया है, इसके बावजूद लकड़ी तस्करी व जंगल की कटाई रूकने का नाम नहीं ले रही है.
जराईकेला क्षेत्र के हर गांव में आड़िशा के लकड़ी माफियाओं ने रखा है एजेंट
सारंडा स्थित जराईकेला क्षेत्र का तुलसीधानी, झाड़बेडा़, दीघा, समठा, रेडा़, मकरंडा, तिरीलपोसी, बीटकिलसोय, नुआगांव, भनगांव, करमपदा, सैडल, टाटीबा आदि गांव जो ओड़िशा सीमा से सटे हैं, यह लकड़ी तस्करों का मुख्य केन्द्र है, जहां से बिसरा, चांदिपोस एंव बड़बिल आदि क्षेत्र के दर्जनों बडे़ लकड़ी माफिया उक्त प्रत्येक गांव में अपना एजेंट रख कीमती लकड़ियों की कटाई, चिराई एंव ढुलाई कराकर न सिर्फ उन गांवों के ग्रामीणों को रोजगार देने का काम किया बल्कि स्वयं मोटी कमाई करते हुए वाहनों से भारी मात्रा में लकड़ी की तस्करी कर ओड़िशा के विभिन्न शहरों के अलावे झारखंड के रांची आदि शहरों में भेजते हैं. सूत्रों के अनुसार झाड़बेडा़ के कई व्यक्ति माफियाओं के मुख्य एजेंट हैं, जिसके माध्यम से उक्त गांव क्षेत्र से लकड़ी तस्करी कर सीमावर्ती ओड़िशा के झाड़बेडा़, चेंगझारण के मुख्य स्टॉक यार्ड में स्टॉक किया जाता है, जहां से बिसरा के माफिया अन्यत्र सप्लाई करते हैं. सारंडा के बडे़ लकड़ी तस्करों जिस पर वन विभाग द्वारा नामजद प्राथमिकी दर्ज की गई है, उसे आज तक गिरफ्तार नहीं किया गया और ना ही न्यायालय के आदेश पर उसकी संपत्ति कुर्क की गई, जिससे माफियाओं में वन विभाग और कानून का कोई भय व्याप्त नहीं है.
सारंडा के युवाओं को रोजगार से नहीं जोड़ना बड़ी वजह
सारंडा एक्शन प्लान के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च हुए एंव बडी़-बडी़ बातें र्हुइं लेकिन ग्रामीणों को विकास का कोई लाभ और रोजगार नहीं मिला. ग्रामीण शुद्ध पेयजल, चिकित्सा, शिक्षा, सिचाई, यातायात सुविधा के लिये आज भी तरस रहे हैं. इंदिरा आवास व बीपीएल सुविधा का लाभ भी अनेक ग्रामीणों को नहीं मिला. वन विभाग का वर्ष 2000 या इससे पूर्व से बंद कई वर्किंग प्लान के कार्यों की वजह से सैकड़ों ग्रामीण बेरोजगार हुए. जल छाजन आदि के कार्य भी जेसीबी से कराये जाने की वजह से ग्रामीण रोजगार से वंचित हुए एंव पेट पालने के लिये माफियाओं से हाथ मिला जंगल की कटाई में लग गये. वन विभाग अथवा सरकार को इन ग्रामीणों को वन आधारित रोजगार या विकास कार्यों में लेबर की भागीदारी बढा़ कम से कम 200 दिन का रोजगार उपलब्ध कराने की जरूरत है.
वनाधिकार पट्टा का लोभ दे काटे जा रहे जंगल
वन विभाग के उच्च अधिकारी अनुसार वनाधिकार का पट्टा का लोभ दिलाकर सारंडा के विभिन्न गांवों के ग्रामीणों को जंगल काटने हेतु सारंडा के कुछ प्रभावशाली आदिवासी नेताओं द्वारा उकसाया जा रहा है जिसके बाबत वन विभाग सारी जानकारी रखने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं किया जाना भी अनेक सवाल खडा़ करता है. सारंडा के सैकड़ों एकड़ जंगल को वनाधिकार का पट्टा हेतु काटा जा चुका है.
वनविभाग को हथियारबंद पुलिस टीम की जरूरत
सारंडा जंगल को बचाना है तो डीएसपी सारंडा के नाम से पुलिस का पद सृजन करना होगा ताकि उक्त डीएसपी डीएफओ व अन्य वन पदाधिकारी के साथ मिलकर अपने हथियारबंद टीम के साथ जरूरी जगहों पर माफियाओं के खिलाफ निडरता से छापेमारी कर सके. आज वन विभाग का स्थिति यह है कि वह सारंडा के किसी गांव में छापेमारी हेतु जाते हैं तो वह लोगों के घरों की तलाशी नहीं ले पाते क्योंकि पूरा गांव पारंपरिक हथियार के साथ संगठित होकर आ जाता है. इसका उदाहरण भनगांव के अलावे झाड़बेडा़ व तुलसीघानी का गांव है. वन विभाग को हथियारबंद स्पेशल पुलिस टीम की जरूरत है जो हमेशा इसी कार्य के लिए हो. ताकि किसी भी समय निडरता से कार्यवाही कर सके. वन विभाग द्वारा नियुक्त वन मित्र व वन रक्षा समिति के सदस्यों को माफिया या प्रत्येक गांवों में माफिया द्वारा रखे गये एजेंट धमकाते हैं कि लकड़ी तस्करी की सूचना दी तो जान से मार दिया जायेगा. ऐसे लोग अपनी जान के डर से वन विभाग को सूचना नहीं दे पाते क्योंकि उन्हें अन्य गांव क्षेत्र के हाट-बाजारों में भी जाना होता है जहां उनपर हमला हो सकता है.