Nitesh Ojha
Ranchi : झारखंड में राज्यसभा की दो सीटों में से एक पर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपना प्रत्याशी उतार दिया है. ऐसा कर जेएमएम ने प्रदेश की राजनीति और गठबंधन सरकार में अपनी भूमिका बता दी है. जेएमएम ने बता दिया कि गठबंधन सरकार में बड़े भाई की भूमिका में रहने के साथ वह अपने कार्यकर्ताओं के हित में कोई समझौता नहीं करेगा.
ऐसा नहीं है कि जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी का गठबंधन कोई पहली बार हुआ हो और ऐसा भी नहीं है कि गठबंधन सरकार को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कभी समझौता ना किया हो. जुलाई 2013 -दिसंबर 2014 तक जब तीनों पार्टियों के सहयोग से प्रदेश में सरकार थी, तो 5 विधायकों वाली आरजेडी ने सरकार से समर्थन करने का दबाव डाल अपने प्रत्याशी प्रेम चंद्र गुप्ता को राज्यसभा भेजने में सफलता पायी थी. लेकिन आज 17 विधायकों वाली कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में इतना साहस नहीं दिखता. पढ़ें – कांग्रेस की JMM को नसीहत, ना 30 और ना 17 से चल सकती है झारखंड में गठबंधन सरकार
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2013-2014 में गठबंधन सरकार में कांग्रेस ने महत्वपूर्व भूमिका अदा की थी
जुलाई 2013 में जब प्रदेश में जेएमएम – कांग्रेस – आरजेडी सरकार बनी थी, तो उसमें कांग्रेसी नेताओं की अहम भूमिका थी. कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश नेतृत्व, सरकार में प्रभावशाली मंत्री रहे दिवगंत नेता राजेंद्र प्रसाद सिंह ने सरकार को अच्छी तरह चलाने की भूमिका अदा की थी. उस समय सरकार में जेएमएम के 18, कांग्रेस के 14 और आरजेडी के 5 विधायक सहित निर्दलीय विधायक – चमरा लिंडा, विदेश सिंह सहित लेफ्ट पार्टियों का भी समर्थन हासिल था. वहीं, कांग्रेस आज भी सरकार चलाने में काफी महत्ती भूमिका अदा कर रही है.
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2014 में कांग्रेस ने गठबंधन धर्म का पालन किया
जून – जुलाई 2014 में प्रदेश में राज्यसभा के दो सीटों के लिए चुनाव होना था. तब गठबंधन सरकार ने आरजेडी के प्रेम चंद्र गुप्ता को अपना प्रत्याशी बनाया. 5 विधायकों वाली आरजेडी प्रत्याशी के जीत की संभावना नहीं के बराबर थी. फिर भी आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव ने सरकार पर दबाव डाला. कांग्रेस पार्टी चाहती तो वह भी 14 विधायकों के बल पर अपना प्रत्याशी उतारती. पर ऐसा नहीं कर गठबंधन धर्म का पालन किया और ना केवल हेमंत सोरेन को मनाया, बल्कि आरजेडी को समर्थन भी दिया. जिसके बाद जेएमएम और कांग्रेस के समर्थन से आरजेडी प्रत्याशी प्रेम चंद्र गुप्ता की जीत सुनिश्चित हुई थी.
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2014 की तरह प्रदेश कांग्रेस नेताओं में इतना साहस नहीं
यह बात इसलिए सामने आयी है कि आज कांग्रेस पार्टी हेमंत सरकार में बैकफुट पर है. कॉमन मिनिमम प्रोग्राम, बोर्ड-निगम बंटवारे में कांग्रेस सफल नहीं हो पायी है. और अब जब कांग्रेस के राज्यसभा में प्रत्याशी उतारे जाने के दावे पर जेएमएम ने ग्रहण लगा दिया है, तो विधायक सोशल मीडिया पर भड़ास निकालने लगे. आज कांग्रेसी यह बोलने से परहेज नहीं कर रहे हैं कि 2014 की तरह आज प्रदेश कांग्रेस के पास वैसा कोई नेता नहीं है जो मुख्यमंत्री पर प्रेशर पॉलिटिक्स कर सके.
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