Rammurti Pathak
Dhanbad : धनबाद को काला हीरा की नगरी कह कर महिमामंडित किया जाता रहा है. परंतु यहां उसी हीरे को गले का हार बनाने के लिए वर्चस्व की जंग भी छिड़ी रहती है. यह जंग कभी प्रतिद्वंदियों को परास्त करने के लिए तो कभी घरानों की आपसी लड़ाई में भी तब्दील होती रहती है. एक जमाने में सिंह मेंशन की तूती बोलती थी. अब वह मेंशन दो घरानों में बंट चुका है. एक ही थैली के चट्टे-बट्टे परिवार के लोग गुटों में विभाजित हो गए हैं. मेंशन को रघुकुल से चुनौती मिल रही है तो दूसरी तरफ मजदूरों के मसीहा के रूप में विख्यात सूर्यदेव सिंह का परिवार सिंह मेंशन की प्रतिष्ठा व वर्चस्व को कायम रखने के लिए सब कुछ न्योछावर करने को तैयार बैठा है.
पहले बहा खून, अब परास्त करने को बहा रहे पसीना
इधर वासेपुर में डॉन फहीम का परिवार भी बिखर कर आपसी टकराव में खूनी खेल खेलता जा रहा है. मामा फहीम को कभी उसके इशारों पर कुछ भी कर गुजरने को तैयार भांजा प्रिंस खान अब चुनौती दे रहा है. यह चुनौती कभी जुबान से तो कभी बंदूक की गोलियों के रूप में किसी न किसी को छलनी कर रही है. एक शब्द में कहा जाए तो धनबाद इन दिनों ऐसे जंग ए मैदान के रूप में तब्दील हो गया है, जहां एक तरफ मामा-भांजा एक दूसरे को नेस्तनाबूद करने को निकल पड़े हैं तो दूसरी तरफ सिंह मेंशन व रघुकुल का घराना रोज टकराव के कोई न बहाने ढूंढ कर अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए मरने-मारने पर उतारू है. पहले खून बहा, अब एक दूसरे को परास्त करने के लिए पसीना बहा रहे हैं. एक तरफ भाइयों की लड़ाई, तो दूसरी तरफ मामा और भांजे की जंग. शासन-प्रशासन अमन-चैन कायम ऱखने में जुटा है तो आम लोग दहशत में जी रहे हैं.
वासेपुर में कभी बोलती थी फहीम की तूती
वासेपुर के लोगों ने एक ऐसा भी जमाना देखा है, जब फहीम खान के आगे बड़े-बड़ों की बोलती बंद हो जाती थी. अपने आगे सिर ऊंचा कर बोलनेवालों का सिर कलम करने की ताकत रखने वाला फहीम खान पहले गैंगस्टर और फिर अचानक इलाके का डॉन बन बैठा. डॉन फहीम के कुनबे में परिवार के सदस्य भी जुड़ते चले गए. उस कुनबे में भांजा प्रिंस खान नायक बन कर उभरा.
देखते ही देखते जानी दुश्मन बन बैठा मामा-भांजा
मिलजुल कर अपना साम्राज्य चलाने वाला मामा फहीम व भांजा कब एक दूसरे का जानी दुश्मन बन बैठा, यह कोई नहीं जान सका. कहा जाता है कि वासेपुर और नया बाजार के गिरोहों के बीच गैंगवार 1983 में तब शुरू हुआ, जब फहीम के पिता शफी खान को बरवाअड्डा पेट्रोल पंप पर गोली मार दी गई. बदला लेने के लिए 1984 में बैंक मोड़ इलाके के राजहंस हवेली में असगर और अंजार को दिनदहाड़े गोली मार दी गई थी. प्रतिशोध की भावना बढ़ती गई और 1986 में फहीम के बड़े भाई शमीम खान पर धनबाद कोर्ट में तब बम फेंका गया था, जब उसे न्यायालय के समक्ष पेश करना था. वह मौके पर ही मारा गया. 1988 में फ़ज़लू हक और 1989 में मोहम्मद सुल्तान को शमीम की हत्या में लिप्त जान कर गोली मार दी गई थी. दोनों साबिर गिरोह के बताये गए थे.
लंबा इतिहास रहा है हिंसक संघर्ष का
फहीम के एक और भाई छोटन खान की 1993 में धनबाद के रांगाटांड़ इलाके में पत्थरों से मार कर हत्या कर दी गई थी. 1998 में पहाड़ी कॉलोनी के एक मजार पर साबिर खान के करीबी मो नजीर की हत्या कर दी गई. 2001 में फहीम की मां और मौसी नजमा व शहनाज खातून को डायमंड क्रॉसिंग रेल की पटरी पर गोली मार दी गई. फिर 2003 में भूली रोड पर साबिर गिरोह के जफर अली की हत्या कर दी गई थी. इस गैंगवार के पीड़ितों की सूची में वाहिद आलम, डब्बू और मनोज (2009), मोहम्मद इरफान (2011), सोनू खान (2012), चिंटू खान (2013) भी शामिल कर लिये गए.
नहीं रुका हिंसा का दौर
24 जुलाई 2014 में फहीम को एक बड़ा झटका तब लगा, जब उनके बहनोई टुन्नू खान की गोली मारकर हत्या कर दी गई. पप्पू पाचक की 2017, शहजादा खान की 21 फरवरी और लाला खान की 12 मई, 2021 को हत्या कर दी गई. लाला प्रिंस का खासमखास था. बदले में प्रिंस ने 24 नवम्बर को 2021 को फहीम के चहेते नन्हे खान की हत्या करा दी. उसके बाद से ही प्रिंस फरार है. यहीं से मामा और भांजे की खूनी जंग में नया अध्याय जुड़ चुका है. वजह है विरासत की वर्चस्व.
फहीम के साम्राज्य की कमान इकबाल के हाथ
बता दें कि सगीर हत्याकांड में फहीम खान को उम्रकैद की सजा हो चुकी है. वह जमशेदपुर की घाघीडीह जेल में सजा काट रहा है. उसने अपने साम्राज्य पूरी कमान पुत्र इकबाल को सौंप दी है. उसके बाद 1 मई 2021 को वासेपुर में दिनदहाड़े गोलीबारी हुई. गोली इकबाल व उसके करीबी ढोलू को लगी. ढोलू की मौत हो चुकी है, जबकि इकबाल का दुर्गापुर में इलाज चल रहा है. फहीम खान और साबिर आलम के बीच गैंगवार अब मामा भांजे के खूनी खेल में तब्दील हो चुका है.
मेंशन और रघुकुल में भी अदावत
सिंह मेंशन और रघुकुल किसी जमाने में एकजुट था. बाद के दिनों में भाइयों की तकरार ने संबंधों को तार-तार कर दिया. सभी अलग-अलग हो गए. यूनियन और कारोबार को लेकर सिंह मेंशन और रघुकुल के बीच अक्सर टकराव और विवाद होता रहा है. दिवंगत सूर्यदेव सिंह और रामाधीर सिंह का परिवार एक साथ हो गया, जो सिंह मेंशन के नाम से जाना जाता है. राजन सिंह और बच्चा सिंह मेंशन से अलग एक साथ रहने लगे, जिसे आज रघुकुल के नाम से जाना जाता है. परंतु संपत्ति के विवाद में दोनों घरानों के बीच दूरियां बढ़ती गईं. नीरज सिंह दिवंगत राजन सिंह के पुत्र थे, जबकि संजीव सिंह दिवंगत सूर्यदेव सिंह के पुत्र हैं. संजय सिंह हत्याकांड में भले ही कोर्ट ने सूर्यदेव सिंह के भाई रामाधीर सिंह को बरी कर दिया, लेकिन रंजय और नीरज हत्याकांड के बाद वही आग एक बार फिर दोनों घरानों के बीच धधक रही है. पूर्व विधायक संजीव सिंह पूर्व डिप्टी मेयर नीरज सिंह की हत्या के आरोप में धनबाद जेल में बंद हैं. बता दें कि 29 जनवरी 2017 को सरायढेला चाणक्य नगर मोड़ पर संजीव सिंह के करीबी रंजय सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई. उसके बाद 23 मार्च 2017 को रघुकुल के नीरज सिंह की हत्या कर दी गई. दोनों परिवारों के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के साथ कोयले के कारोबार में वर्चस्व को लेकर भी कई बार हिंसक झड़प हो चुकी है. दोनों ही तरफ के समर्थक घायल होते रहे हैं, तो कुछ की मौत भी हुई है.
धनबाद की पुलिस इस जंग से है तंग
दो घरानों के बीच जंग में गोली चलती है, तो पुलिस के होश उड़ जाते हैं. वासेपुर का इलाका बैंक मोड़ थाना के अंतर्गत है, जबकि मेंशन और रघुकुल की लड़ाई ज्यादा झरिया में होती है. इस लड़ाई में झरिया की पुलिस परेशान रहती है.