Satya Sharan Mishra
Ranchi : झारखंड का वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य एक बार फिर देश-दुनिया में सुर्खियां बटोर रहा है. सरकार गिराने की साजिश का परत दर परत खुलासा हो रहा है. विधायक खरीद-बिक्री के आरोपों की जांच चल रही है. सरकार गिराने के लिए जोड़-तोड़ और खरीद-फरोख्त झारखंड के लिए कोई नयी बात नहीं है. साल 2000 में बाबूलाल मरांडी की सरकार के समय से अबतक बनी सभी सरकारों (रघुवर दास के कार्यकाल को छोड़कर) में ऐसे साजिशें होती रही हैं. समर्थन वापस लेकर सरकार गिराने का सबसे सबसे बड़ा खेल 2005 में शुरू हुआ था, जब कांग्रेस ने जोड़तोड़ की सरकार बनाने का इतिहास रच दिया. कांग्रेस, जेएमएम, आरजेडी, आजसू और निर्दलीयों को लेकर निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा को मुख्यमंत्री बना दिया.
कांग्रेस विधायकों में दिख रही 2005-06 के निर्दलीयों जैसी महत्वाकांक्षा
इन दिनों जैसे कांग्रेस विधायकों की महत्वाकांक्षा हिलोरें मार रही हैं, वैसा ही उस वक्त भी हुआ था. सुदेश महतो, चंद्रप्रकाश चौधरी, एनोस एक्का, हरिनारायण राय, कमलेश सिंह और मधु कोड़ा सरकार से नाराज थे. इसी बीच हाट गम्हरिया सड़क पर सदन में मुंडा और कोड़ा में तीखी बहस हुई. इसके बाद कोड़ा, हरिनारायण राय, एनोस, कमलेश समेत सभी विधायक गायब होने लगे. बीजेपी और कांग्रेस विधायकों को पकड़-पकड़ कर एक जगह जमा करने लगे. बीजेपी ने अपने विधायकों को जयपुर के रिसोर्ट में छिपाया. उधर कांग्रेस और विपक्ष के दूसरे विधायकों को दिल्ली के बाद साउथ इंडिया में अंडरग्राउंड किया गया. इसी दौरान कांग्रेस जयपुर से बीजेपी के विधायकों को भी ले उड़ी. 10 दिन तक चले पॉलिटिकल ड्रामे के बाद आखिरकार कोड़ा, हरिनारायण, एनोस और कमलेश ने मंत्री पद छोड़कर सरकार से समर्थन वापस ले लिया और अर्जुन मुंडा की सरकार गिर गयी.
इसे भी पढ़ें- इरफान और अकेला को प्रदेश कांग्रेस ने दी क्लीन चिट!, आलमगीर ने कहा- BJP नेताओं से मुलाकात महज इत्तेफाक, रिपोर्ट दिल्ली भेजेंगे
जेवीएम के 6 विधायक तोड़कर रघुवर ने शांति से 5 साल चलायी सत्ता
2014 में तात्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने जेवीएम के विधायकों को तोड़ दिया था. रघुवर सरकार के पास आजसू को मिलाकर 42 विधायक थे. इसके बावजूद जेवीएम के 6 विधायक इसलिए तोड़े गये, क्योंकि बीजेपी आजसू को काफी नजदीक से जानती है. न जाने कब सुदेश महतो का मन बदल जाये और वे सरकार से समर्थन वापस ले लें. इसलिए अगर सरकार को सेफ करना है तो पूर्ण बहुमत जरूरी है. तब बीजेपी की नजर जेवीएम से जीते 6 विधायकों की तरफ गयी. चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे ये विधायक नये थे. वे विधायक तो बन गये, लेकिन अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर चिंतित थे. उन विधायकों की चिंता को दूर करने की कोशिश बीजेपी की ओर से की गयी. मंत्री पद और कई लुभावने ऑफर दिये गये. रणधीर सिंह और अमर बाउरी को मंत्री के पद पर बैठाया गया. बात बन गयी और बीजेपी के पास 48 विधायक हो गये.
इसे भी पढ़ें- जगन्नाथ महतो को स्कूली शिक्षा, साक्षरता और उत्पाद एवं निषेध और हफीजुल को मिला निबंधन विभाग
25 सीटों वाली बीजेपी के अंदर क्यों नहीं पैदा हो सकती महत्वाकांक्षा
2019 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी, कांग्रेस, जेएमएम और आजसू ने भी दूसरी पार्टियों के नेताओं को तोड़ा. चुनाव में यूपीए गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिल गया, लेकिन बीजेपी जेएमएम के बाद दूसरी बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. जब 2005 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 9 सीटें लाने वाली कांग्रेस पार्टी ने जब उस वक्त राज्य की राजनीतिक दिशा तय कर दी. निर्दलीय को मुख्यमंत्री के पद बैठा दिया. सरकार के कंट्रोल करने का पावर अपने हाथ में रखा, तो इस विधानसभा चुनाव में 25 सीटें जीतने वाली बीजेपी के अंदर ऐसी महत्वाकांक्षा क्यों नहीं पैदा हो सकती है?