Jamshedpur : वर्षों से बंद पड़ी केबुल कंपनी के पुनरुद्धार मामले में लगातार प्रयासरत विधायक सरयू राय ने बुधवार को इस मामले में मुख्य सचिव सुखदेव सिंह से मुलाकात की. विधायक ने मुख्य सचिव को कंपनी के अतीत से लेकर वर्तमान हालात तक की जानकारी दी. साथ ही एनसीएलटी में सरकार के हस्तक्षेप करने का लिखित आधार सौंपा. विधायक सरयू राय ने बताया कि उनकी मुख्य सचिव से 40 मिनट तक वार्ता हुई. मुख्य सचिव ने कंपनी के पुनरुद्धार को लेकर उनकी ओर से सुझाए गए बिन्दुओं पर गंभीरता दिखाई और कहा कि वे जल्द इस मामले में कानूनी सलाह लेकर जरूरी कदम उठाएंगे. सरयू राय ने मुख्य सचिव से जल्द इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए कहा, ताकि केबुल कंपनी को नीलामी से बचाया जा सके. केबुल कर्मियों के हितों का संरक्षण किया जा सके. वार्ता के दौरान विधायक सरयू राय ने कंपनी के मामले में मुख्य सचिव के पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त से मांगे गए प्रतिवेदन और उपायुक्त के प्रतिवेदन की जानकारी दी. इसमें उपायुक्त ने उक्त बीमार कम्पनी के पुनरूद्धार, उसके श्रमिकों के हितों की रक्षा और कल्याण को नीतिगत मामला बताते हुए सरकार के स्तर से कार्रवाई की बात कही है. विधायक ने कहा कि एनसीएलटी की कोलकाता बेंच ने 7 फरवरी 2020 को इंकैब के दिवालिया होने का आदेश दे दिया. उक्त आदेश के खिलाफ इंकैब वर्कर्स यूनियन की ओर से एनसीएलएटी (NCLAT) नई दिल्ली में अपील दायर की गई. उसमें एनसीएलएटी ने इंकैब को दिवालिया घोषित करने के एनसीएलटी के आदेश को निरस्त कर दिया और 16 जून 2021 को एक नया रिजोल्युशन प्रोफेशनल बहाल कर दिया. फिलहाल एनसीएलटी केबुल वर्कर्स एसोसिएशन के मुकदमे की नए सिरे से सुनवाई कर रहा है. इस बीच नए रिजोल्युशन प्रोफेशनल ने कम्पनी को पुनर्जीवित करने के लिए एक एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट प्रकाशित किया है, जिसके अनुरूप प्रस्ताव देने की अवधि 16 जुलाई 2021 तक बढ़ा दी है. इससे इंकैब को चलाने के लिए नए सिरे से सक्षम प्रमोटर का चयन हो सके. ऐसा नहीं होने की स्थिति में कम्पनी नीलामी पर चढ़ा दी जाएगी.
1990-95 तक मुनाफा में थी केबुल कंपनी
विधायक सरयू राय ने बताया कि निजी क्षेत्र की कंपनी इंकैब 1990-95 तक मुनाफा में चल रही थी. उस समय इसकी रेटिंग ‘टाटा स्टील’ से बेहतर थी. परन्तु एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत इसे बीमार बना दिया गया. बायफर की ओर से बीमार घोषित होने के बाद भी इसकी संपति की लूट लगातार जारी है. यहां के श्रमिक लंबे समय से चल रही मुकदमेबाजी का शिकार हुए हैं. उनका वेतन, पीएफ, ग्रेच्युटी आदि बाकी है. उल्लेखनीय है कि इंकैब की परिसम्पति में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों की भी हिस्सेदारी है. कम्पनी एक्ट के तहत विगत 21 वर्षों से जो कारगुजारियां चल रही हैं, उससे इंकैब श्रमिकों का हक मारा जा रहा है.