Prakash K Ray
उस झूठे फ़ोटो का विज्ञापन छापने के लिए बड़े अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस द्वारा माफ़ीनामा देने का मतलब यह है कि अब विज्ञापन देनेवाले, विज्ञापन के ठेके वालों और अख़बारों का समीकरण बदल रहा है. यानी अख़बार ख़ुद विज्ञापन एजेंसी हो रहे हैं और उनके यहां कम पढ़े लिखे और कम वेतन पर काम करनेवाले सब एडिटर, डिज़ाइनर और मार्केटिंग/ब्रांडिंग का काम देखनेवाले दबाव में विज्ञापन बनाने का काम भी कर रहे हैं. यह केवल ग़लती या शोषण या हवस या बेचारगी का मामला नहीं हैं, यह मीडिया वर्कस्पेस और मालिकों-संपादकों के भयावह नैतिक पतन का उदाहरण है. इसमें मूर्खता और धूर्तता का भयंकर घालमेल है. पत्रकारिता घामड़ों का नंगा नाच बन चुकी है, जहां सत्ता, कॉरपोरेट, पत्रकार आदि अपने कपड़े उतारते-उतारते अपने बदकार बदन की नुमाईश कर रहे हैं. गुटखा और शिलाजीत के विज्ञापन पहले से बता रहे हैं कि यह वह ऑर्जी है, जहां सब वीभत्स है.
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इंडियन एक्सप्रेस ‘भी’ एक अखबार है , प्रभु ! कब तक मन मसोस कर चुप रहता ? जब- सब वैतरणी पार कर रहे हैं, तो उसने भी डुबकी मार दी. यह गंगा नहान पहली बार नहीं हुआ है, पीछे भी होता रहा है. लेकिन ‘करौना की छैयां – छैयां’ किसी ने देखा नहीं. और जिसने देखा उसने मुंह घुमा लिया. पूरे कुएं में भांग पड़ी है. कौन सी नई बात है. इस बार कुछ ज्यादा ही विभत्स हो गया. सबने देख लिया. जिसने नहीं देखा, उसने सबसे ज्यादा देखा.
इंडियन एक्सप्रेस में एक खबर (?) छपी. ( खबर और विज्ञापन में ‘बाल’ भर का फर्क होता है, विज्ञापन को चालाकी में डुबो कर चेप दीजिये – खबर बन जायगी). यहां भद्द पिट गयी. केवल अखबार का नहीं, प्रशासनिक अमले का भी नहीं, पूरी कायनात ही उघार हो गयी. लिख दिया गया – ‘यह दलाल युग है.’ गोलमाल.
तो जान लीजिए – उत्तर प्रदेश में अगले साल चुनाव है. उत्तर प्रदेश में ‘ब्रह्मचारी’ सरकार है. लेकिन सोहर तो गाना ही है. नवैयत है. सत्ता संचालन में कारकून, अमले, सिपाही, कोतवाल, मुलाजिम सरकार बहादुर का मुंह देखते रहते हैं. जिल्ले सुब्हानी ने ‘सु ‘ कहा और अमला जा पहुंचा सुरहुर पुर. साहब ने कहा ‘हमने क्या किया’ ? अमला रफ़ुगरी का करतब दिखाना शुरू कर देता है.
– हुजूरे आला ! ये आप का है.
– क्या है ? ये तो आइफेल टॉवर है.
– नहीं हुजूर! यह आपके हुकुम से तामीर हुआ बिजली का खंभा है. यह लीटर के हिसाब से बिजली देता है. लिक्विड फॉर्म में गांव के लोग बाल्टी में भरकर बिजली ले जायेंगे.
– कब से ?
– बस ,अच्छे दिन आने ही वाले हैं.
– एक यह भी है सर !
– यह तो हावड़ा ब्रिज है.
– नहीं सर, यह कौशाम्बी में बनी पुलिया है. पुल पुलिया मंत्री ने अपनी देखरेख में बनवाया है.
– लेकिन लॉ एंड ऑर्डर में जो बदलाव हुआ है, उसका कुछ है ?
– सब है हुजूरे आला ! यह है.
– यह ? मोटा थुलथुला पुलिसवाला. इसका पेट देखो, यह कितना लॉ एंड आर्डर दुरुस्त करेगा?
– नहीं सर ! इसका जो पेट बाहर निकला है, यह आवाज है.
– आवाज ?
– इसे बंदूक चलाना नहीं आता लेकिन मुंह से ऐसा ठांय, ठांय की आवाज निकालता है कि मुसोलनी की फट जाय.
– क्या चुतियापा करते हो ! ठीक है एक-एक कर छपवाओ.
इंडियन एक्सप्रेस ने छापा. योगी जी निहायत खूबसूरत नफीस फ्लाईओवर पर खड़े हैं. इसे यूपी का विकास बताया जा रहा है.
अखबार सफाई दे रहा है. पत्रकारिता में एक एडोटोरियल होता है. एक एडवरटोरियल होता है. अखबार जितनी सफाई दे रहा है, उतना ही उलझता जा रहा है. एडवरटोरियल होता है किसी विज्ञापन पर टिप्पणी करना. अगर अखबार ने अपनी वाजिब टिप्पणी ही कर दी होती कम से कम अपनी इज्जत बचा लेते और सरकार की नालायकी को नौकशाही पर धकेल कर सरकार भी किसी तरह बच लेती. ममता बनर्जी के बंगाल का फ्लाईओवर उत्तर प्रदेश में आ गया. इससे बड़ा क्या विकास होगा ?
– प्रधानमंत्री इस कांड (?) की खोज खबर नहीं लेंगे ?
– बिल्कुल नहीं
– क्यों ?
– गुजरात के मुख्यमंत्री थे मोदी जी. गुजरात में एक तरफ मुसलमानों का कत्लेआम हुआ पड़ा था. दूसरी तरफ विज्ञापन छपा बुर्का पहने लड़कियां कंप्यूटर क्लास कर रही हैं. कहा गया यह गुजरात है. फोटो निकली सिबली कॉलेज आजमगढ़, उत्तर प्रदेश की.
सब फ्रॉड है.
डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.