Faisal Anurag
किसानों और भारतीय जनता पार्टी की सरकारों के बीच टकराव चरम पर है. हरियाणा,पंजाब और पूर्वी उत्तर प्रदेश में तो भाजपा नेताओं का गांवों में प्रवेश लगभग ठप हो गया है. पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर में किसानों ने महापंचायत का आयोजन किया है. इस महापंचायत में दस राज्यों किसानों के भाग लेने की संभावना है. किसानों के संयुक्त मोर्चे ने कहा है यह दुनिया में किसानों के सबसे बड़े जुटान का गवाह बनने जा रहा है. योगेंद्र यादव ने ट्वीट कर दावा किया है कि दुनिया किसानों के सबसे बड़े जुटान को देखेगी. इस महापंचायत से संयुक्त किसान मोर्चा के मिशन उत्तर प्रदेश की शुरुआत होगी.
किसानों की यह शक्ति प्रदर्शन उत्तर प्रदेश और पंजाब विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए हो रहा है. संयुकत मोर्चा ने प्रेस बयान में कहा है इस पंचायत में लाखों किसानों के जुटने की उम्मीद है. यूपी, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के अलावा कर्नाटक,तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों से भी किसानों के समूह आने शुरू हो गए हैं. गाजीपुर बार्डर पर तमिलनाडु और केरल के अलावा दूसरे राज्यों से भी किसानों के गुट पहुंचे हैं. भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत ने कहा कि पांच सितंबर की पंचायत को किसान और मजदूर अपने सम्मान से जोड़कर देख रहे हैं. इस महापंचायत में श्रर्मिक संगठनों ओर मध्यवर्ग के लोगों को भी आंमंत्रित किया गया है. किसान नेता राकेश टिकैत किसान आंदोलन के शुरू होने के बाद से पहली बार अपने पैतृक क्षेत्र मुजफ्फरनगर के आयोजन में हिस्स लेने जा रहे हैं हैं. टिकैत ने दिल्ली में एलान किया था कि जब तक कानून वापस नहीं होंगे, किसान घरों को वापस नहीं जाएंगे.
इस महाजुटान को देखते हुए बुलंदशहर के डीएम ने प्रशासन को आगाह किया है और तीन वरिष्ठ अधिकारियों को इस के लिए तैनात किया है. यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को भी किसान चेतावनी देने जा रहे हें. आदित्यनाथ ने कृषि कानूनों का बढ़चढ़ कर समथ्रन किया है.पश्चिमी उत्तर प्रदेश,पंजाब और हरियाण में भाजपा और उसके साझेदार नेताओं के गांवों में प्रवेश को किसानों ने प्रतिबंधित कर दिया है. इन नेताओं के गांव प्रवेश पर भारी विरोध का समाना करना पड़ रहा है. केंद्रीय मंत्री सोम प्रकाश को पंजाब के होशियापुर प्रवेश पर किसानों के भारी विरोध का समना करना पड़ा. संयुक्त किसान मोर्चा ने दावा किया है पंजाब के होशियारपुर में कल केंद्रीय राज्य मंत्री सोम प्रकाश का स्थानीय किसानों ने काले झंडे दिखाकर विरोध किया. अकाली दल नेताओं सुखबीर सिंह बादल और अन्य के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शन पहले ही व्यापक रूप ले चुके हैं. इसी तरह के हरियाणा में भी हालात बने हुए हैं. पिछले दिनों किसानों पर हुए बर्बर लाठी चार्ज के बाद तो दुष्यंत चौटाला और भाजपा नेताओं के विरोध तेज हो गए हैं.
22 जनवरी के बाद से किसानों के साथ केंद्र सरकार ने बातचीत बंद कर दी है. किसानों के आंदोलन को मुख्यधारा मीडिया ने भी नजरअंदाज कर दिया है. बावजूद किसानों ने संवाद और समाचारों के व्यापक प्रचार—प्रसरा का अपना तरीका निकाल लिया है. जिस बड़े पैमानों पर महापंचायतों में किसानों की भागीदारी हो रही है, उससे जाहिर होता है कि किसान आने वाले चुनाव में बड़ी भूमिका निभाएगें. किसान नेताओं ने पंजाब के नेताओं से कहा है कि वे अभी चुनाव की गतिविधियों तेज नहीं करें. पंजाब में तो भाजपा के साथ दोस्ती की कीमत अकाली दल को भी चुकानी पड़ रही है जिसने पहले तो कृषि विधेयकों का समर्थन किया और बाद में एनडीए से अलग हो गये. इससे जाहिर है कि किसान नेता उन दलों को भी बख्शने के मूड में नहीं हैं, जिन्होंने भी कृषि कानूनों का समर्थन एक पल के लिए भी किया है.
इस बीच तमिलनाडु सरकार ने तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ विधानसभा से प्रस्ताव पारित किया है. तमिल किसानों के दबाव के कारण ही यह संभव हुआ है. मुजफ्फरनगर का महाजुटान का एक मकसद तो यह भी है कि किसान आंदोलन के अखिल भारतीय तेवर को दिखाया जाए. भारत के इतिहास में किसानों ने आंदोलन के माध्यम से यह साबित किया है कि उनके आंदोलन में कितनी गहरायी है और लक्ष्य तक टिके रहने का हौसला भी.