Surjit Singh
झारखंड सरकार को लेकर रांची से लेकर दिल्ली तक के राजनीतिक गलियारे में एक सवाल चर्चा में है. वह यह कि क्या हेमंत सोरेन की सरकार संकटों में घिर चुकी है! सत्ता परिवर्तन होने वाला है. सत्ता पक्ष के नजरिये से देखें, तो ऐसी बातों को अफवाह भी मान सकते हैं. पर अगर ऐसा है तो इसकी क्या वजहें हो सकती हैं! जो तथ्य सामने हैं, जो दिख रहा है, कम से कम वह तो अच्छे संकेत नहीं दे रहे. हालात स्पष्ट रूप से संकट में होने की चुगली करता नजर आ रहा है. वैसे तो इस हालात की अनेकों वजहें गिनाये-बताये जा सकते हैं, पर 7 वजहें महत्वपूर्ण हैं, जिसे जानना जरूरी है. इसे भी पढ़ेंः एक तो नीम (सीएम की सलाहकार मंडली), ऊपर से करेला (डीसी रांची)
पहली वजहः पत्थर खदान मामले में PIL
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्थर खदान आवंटित करने के मामले में हाईकोर्ट में PIL दाखिल किया गया है. सुनवाई के दौरान सरकार यह मान चुकी है कि गलती हुई है. आवंटन को रद्द करके गलती को सुधार लिया गया है. हाई कोर्ट ने संभवतः पहली बार किसी मुख्यमंत्री को नाम से नोटिस जारी किया है. इस बीच विपक्षी दलों की शिकायत पर राज्यपाल ने भी रिपोर्ट तैयार करायी. दैनिक भास्कर ने खबर दी कि निर्वाचन आयोग ने मुख्य सचिव सुखदेव सिंह से पूरे मामले पर रिपोर्ट मांगी है. विशेषज्ञों के मुताबिक, यह मामला संवैधानिक पद पर रहते हुए लाभ के पद पर होने के साथ-साथ पद का दुरुपयोग करने का भी है. अगर ऐसा है तो हेमंत सोरेन की सदस्यता पर खतरा मंडरा रहा है.
दूसरी वजह: 34वें नेशनल गेम में जांच के आदेश
हेमंत सरकार के संकट में घिरे होने के चर्चा के पीछे जो बड़ी वजह बतायी जा रही है, वह 34वां नेशनल गेम है. हाईकोर्ट ने इसमें हुए घोटाले की जांच सीबीआई से कराने का आदेश दिया है. इसमें हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन के अलावा राज्य के कई बड़े ब्यूरोक्रेट्स जांच के दायरे में आयेंगे. इससे सरकार के सामने अजीब स्थिति उत्पन्न हो गई है. हाईकोर्ट का यह ऑब्जर्वेशन कि घोटाला करने वाले और इसे दबाने-छिपाने वाले आज सरकार के उच्च पदों पर हैं, जिन्होंने सरकार को असहज किया है.
तीसरी वजहः पार्टी विधायकों व नेताओं की नाराजगी
एक सलाहकार की वजह से पार्टी के विधायकों व पूर्व विधायकों की मुख्यमंत्री से दूरी बढ़ती चली गई. अधिकांश विधायक नाराज चल रहे हैं. नाराज विधायकों का कहना है कि हेमंत सोरेन भी मूल रूप से विधायक ही हैं. इसलिए किसी भी विधायक और मुख्यमंत्री के बीच किसी का होना असहज करने वाला होता है. वॉकी-टॉकी लिये सलाहकार मुख्यमंत्री से मिलने आने वाले विधायकों व नेताओं को घंटों इंतजार कराते हैं और जब मुलाकात होती है तो दो मिनट बाद सलाहकार खुद आ जाते हैं. वो मिलने वालों को या तो समय खत्म होने की बात करते हैं या फिर वहीं बैठ जाते हैं. यह असहज करने वाली स्थिति है.
चौथी वजहः 1932 खतियान का मामला
इस विवादास्पद मामले को छेड़ना सरकार के लिये महंगा साबित हो रहा है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 1932 खतियान को लेकर जारी विवाद को खत्म करने के लिये भले ही विधानसभा में बयान दिया. लेकिन उनकी पार्टी के ही कद्दावर नेता जगरनाथ महतो उनके बयान के खिलाफ जाते दिख रहे हैं. यह एक तरह से सिर्फ मुख्यमंत्री ही नहीं पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष को चुनौती देने जैसा है. जाहिर है, जगरनाथ महतो अकेले दम पर यह सब नहीं कर रहे होंगे. पार्टी के भीतर से ही कुछ लोगों का उन्हें समर्थन मिल रहा होगा. इस मुद्दे पर यही स्थिति विधायक लोबिन हेंब्रम की है. लंबे समय से पार्टी और सोरेन परिवार का वफादार रहने वाले लोबिन हेंब्रम के सुर बगावती है. सरकार के खिलाफ रैली तक कर दी. अब पूरे राज्य का दौरा कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि पार्टी के भीतर के कई लोग इनका समर्थन कर रहे हैं. इसे भी पढ़ेंः कौन बचा रहा है चार्जशीटेड IAS रांची डीसी छवि रंजन को! 8 माह पहले हुई थी कार्रवाई की अनुशंसा
पाचवीं वजहः रांची डीसी छवि रंजन
रांची के डीसी छवि रंजन हैं. वह लकड़ी चोरी के मामले में चार्जशीटेड हैं. फिर भी उन्हें डीसी बनाया गया. किसने बनवाया, क्यों बनवाया, यह समझना कोई मुश्किल काम नहीं है. अरबों रूपये मूल्य के भूखंडों पर नियमविरुद्ध फैसला देकर उन्होंने खुद को तो फंसाने का काम किया ही, सरकार की छवि भी खराब की. ऊपर से उन्होंने कुछ ऐसे काम कर दिये, जिससे एक बड़ा तबका नाराज हो गया है. इसमें नामी वकील, सिविल सोसाइटी के लोग व अन्य लोग शामिल हैं.
छठी वजहः मीडिया मैनेजमेंट – जीरो बटा सन्नाटा
हेमंत सरकार का मीडिया मैनेजमेंट ना के बराबर है. मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार अभिषेक प्रसाद उर्फ पिंटू हैं. इस पद को ज्वाइन करने के बाद शायद ही उन्हें किसी अखबार या चैनल के दफ्तर में देखा गया हो. किसी पत्रकार या संपादक से बात करके सरकार की नीतियों की जानकारी देने की बात तो दूर, इनसे बात करना भी मुश्किल है. हां, किन्हीं कारणों से पिछले माह विधानसभा सत्र के दौरान इन्होंने पत्रकारों से बात करके कुछ अनुनय-विनय जरूर किया था.
अभिषेक पिंटू के बाद मीडिया मैनेजमेंट की जिम्मेदारी आती है सूचना एवं जन संपर्क विभाग के निदेशक राजीव लोचन बख्शी की. यह फॉरेस्ट सर्विस के अधिकारी हैं. लंबे समय से इस पद पर कई बार इनकी पोस्टिंग हुई, कई बार हटाये गये, और फिर पोस्टिंग हुई. यह क्या बोलते हैं, सामने वाला क्या और कितना सुन पायेगा और क्या समझेगा, यही बताना मुश्किल है. इनका काम सिर्फ मीडिया का विज्ञापन रोकना या जारी करना है. सरकार की छवि सुधारने के लिये ये सिर्फ एक काम जानते हैं, वह है सड़कों पर लगे होर्डिंग पर करोड़ों रुपये खर्च करके बैनर टंगवाना. नये तरह का एड बनवाना, डिजिटल या वीडियो के लिये विज्ञापन बनवाना, इन सबसे इन्हें मतलब नहीं. देश के दूसरे राज्यों का पीआरडी क्या कर रहा है, उससे कुछ सीखने की उम्मीद भी करना बेमानी है.
एक टीम सोशल मीडिया की भी है. इसका काम सिर्फ अखबारों में यह खबर छपवाना है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के ट्विटर पर कितने फॉलोअर हैं. इन्हें लगता है कि ऐसी खबरों से मुख्यमंत्री खुश होंगे. ये सही सोचते हैं. लेकिन मुख्यमंत्री का खुश होना और इनके स्तर से प्राचारित की गयी बातों से पब्लिक का खुश होना अलग-अलग बात है. ठीक से पता करियेगा तो इसके कर्ता-धर्ता सरकार के विभिन्न विभागों में भी जबरदस्त हस्तक्षेप रखते हैं. मतलब जिस काम के लिये ये हैं, उससे अधिक दिलचस्पी दूसरे कामों में है. इसपर विस्तृत बात फिर कभी.
सातवीं वजहः ए स्क्वायर और पी स्क्वायर
झारखंड की ब्यूरोक्रेसी में तीन नाम खूब लिये जाते हैं. एक सीएम के मीडिया सलाहकार अभिषेक कुमार पिंटू की है. इनके नाम का लिया जाना, समझ में आता है. सरकारी पद पर हैं और सीएम के करीबी हैं. लेकिन दो और नाम है. अमि.. और प्रे.. का. इन्हें ए स्क्वायर और पी स्क्वायर के रूप में समझ सकते हैं. इनके नाम भी कम नहीं लिये जाते हैं. जबरदस्त शोर है इनके नाम का. सचिवालय के सड़क, खाद्यान, खनन, बिजली, समाज कल्याण, नगर विकास विभाग से लेकर जिलों के डीसी-एसपी, माइनिंग से लेकर हर जगह. बिहार के रहने वाले पी स्क्वायर दो रघुवर राज में भी एक दबंग महिला आइएएस के लिये काम करने को लेकर चर्चित रह चुके हैं. इन दोनों के कारण राज्य के तमाम सर्किल में अजीब सी स्थिति है. बहुत सारे लोगों (नेता, विधायक, ब्यूरोक्रेट्स आदि) की सरकार से नाराजगी की एक बड़ी वजह ये दोनों भी हैं.