Jamshedpur (Dharmendra Kumar) : सीबीएसई और सीआईसीएसई बोर्ड में अप्रैल माह से नया सेशन शुरु होता है. जिसका सीधा असर अभिभावकों पर पड़ता है. मार्च एवं अप्रैल माह में अभिभावकों की जेब ढ़ीली हो जाती है. सरकार के निर्देश के कारण निजी स्कूल प्रबंधन द्वारा रीएडमिशन के नाम को बदल कर एकस्ट्रा करिकुलम एवं अन्य मद के नाम पर अभिभावकों से हजारों रुपए वसूले जाते है. वहीं स्कूल की फीस में इस वर्ष 10 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी गई है. अभिभावकों को मजबूरी में अपने बच्चों की बेहतरी के लिए निजी स्कूलों की मनमानी सहना पड़ता है. इसके साथ ही नए सेशन में अभिभावकों को कॉपी और किताब की बढ़ी हुई कीमतों का भी सामना करना पड़ता है. प्राप्त जानकारी के अनुसार निजी स्कूल केवल कॉपी एवं किताब से प्रतिवर्ष करोड़ो रुपए की कमाई करते है. इस साल स्कूल प्रबंधन ने किताबों की कीमत करीब 20-25 प्रतिशत वृद्धि कर दी है. निजी बुक प्रकाशकों के साथ मिलकर ये स्कूल कमाई कर रहे हैं. किताबों की बढ़ी कीमत के साथ स्कूलों ने फीस भी 10 फीसदी वृद्धि हुई है. इससे अभिभावकों को दोहरी मार पड़ रही है.
70 करोड़ रुपये का है कॉपी-किताब का कारोबार
छठी से आठवीं कक्षा के कॉपी- किताब का पांच से सात हजार रुपये लिये जा रहे हैं. केरला पब्लिक स्कूल, कदमा में आठवीं कक्षा की किताबों के लिए अभिभावकों से इस वर्ष 6715 रुपये लिया जा रहा है, जबकि इसी कक्षा की किताबों के लिए पिछले साल 5345 रुपये लिये गये थे. वहीं लोयोला स्कूल में इस साल छठी कक्षा की किताबों के लिए 7,000 रुपये लिया गया, जबकि पिछले साल इसी कक्षा की किताबों के लिए 5950 रुपये लिये गये थे. इतना ही नहीं इन स्कूलों की ओर से दी जाने वाली 50 पन्नों की किताब की कीमत 460 रुपये है. शहर के ज्यादातर निजी स्कूलों की यही स्थिति है. जमशेदपुर में सीबीएसइ व सीआइएससीई बोर्ड के करीब 70 स्कूल हैं. इसमें एक स्कूल में औसतन 2000 बच्चे और एक बच्चे से न्यूनतम लगभग 5000 रुपये किताब-कॉपी के नाम पर लिये जा रहे हैं. इस तरह से शहर में कॉपी-किताब का लगभग 70 करोड़ रुपये का कारोबार है.
हर साल बदल दी जाती हैं किताबें
निजी स्कूल प्रबंधकों और निजी प्रकाशकों के बीच गहरी सांठगांठ के कारण प्रत्येक वर्ष कुछ चैप्टर में बदलाव कर दिया जाता है. जिसके कारण अभिभावकों को नयी किताबें खरीदनी पड़ती है. सरकार द्वारा स्पष्ट निर्देश दिए गए है कि सभी सरकारी अथवा निजी स्कूल द्वारा एनसीइआरटी की किताब के माध्यम से बच्चों को शिक्षा दी जाए. लेकिन निजी स्कूल प्रबंधन एनसीइआरटी के बजाय निजी प्रकाशकों को बढ़ावा देते हैं. इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षा से लेकर यूपीएससी जैसी प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षाओं में एनसीइआरटी की किताबें पढ़ने की सलाह दी जाती हैं. लेकिन निजी स्कूलों में स्थिति इसके उलट है. एनसीइआरटी की किताबों से लगभग न के बराबर पढ़ाई होती है. अभिभावकों पर निजी प्रकाशकों की किताब खरादने का दबाव बनाया जाता है. सीबीएसई स्कूलों में पढ़ाई एनसीइआरटी के पाठ्यक्रम के अनुरूप होती है, लेकिन किताबें निजी प्रकाशकों की चलायी जाती हैं. अगर स्कूल बच्चों को एनसीइआरटी की किताब खरीदने को कहते भी हैं, तो भी निजी प्रकाशक की किताब अलग से खरीदने के लिए कहा जाता है. वहीं सीआइसीएसई स्कूलों में सभी किताबें निजी प्रकाशकों की चलती है.
निजी स्कूल धन उगाही का माध्यम बना

अभिभावक दीपक कुमार का कहना है कि निजी अंग्रेजी स्कूल विशुद्ध रुप से धन उगाही का माध्यम बन गए है. बच्चों की हर जरूरत के सामान अभिभावकों को स्कूल द्वारा निर्धारित दूकान से लेना मजबूरी है. जबकि वहीं सामान बाजार में कम कीमत पर उपलब्ध है. उक्त निर्धारित दुकान में बाजार भाव से 10 से 20 प्रतिशत अधिक कीमत में सामान मिलता है, अभिभावकों पर स्कूल प्रबंधन का दबाव रहता है कि वहीं खरीदना है. यही बात स्कूल ड्रेस के संबंध में भी लागू होता है. उच्चतम न्यायालय द्वारा सभी निजी स्कूलों को अने पाठ्यक्रम में एनसीआरटीई के पुस्तकों को लागू करने का आदेश दिया गया था, लेकिन उच्चतम न्यायालय के आदेश को भी निजी स्कूल प्रबंधन द्वारा ठेंगा दिखाकर प्राइवेट प्रकाशकों की पुस्तक को पाठ्यक्रम में शामिल कर पढ़ाई कराया जाता है. एनसीआरटीई के मुकाबले निजी प्रकाशकों की किताबों की कीमतें बहुत अधिक होती है. जिसके कारण अभिभावकों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ जाता है. लेकिन सुनवाई कहीं नहीं होती.