Jamshedpur : पूर्व सांसद सह आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर कहा है कि झारखंड में नगर निकाय चुनाव संविधान और आदिवासी हितों के खिलाफ है. झारखंड राज्य निर्वाचन आयोग की अधिसूचना संख्या 03 – संख्या 175/2012 (2558) दिनांक 17.11.2022 का नगर निकाय संबंधी चुनाव अधिसूचना संविधान की भाग 9A के अनुच्छेद 243 ZC ( नगर पालिका) और भाग 10 के अनुच्छेद 244 (अनुसूचित क्षेत्रों और जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन) का उल्लंघन करता है. अतः इसको झारखंड हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है. आदिवासी सेंगेल अभियान जल्द ही इसपर सार्थक पहल कर संविधान और आदिवासी हितों की रक्षार्थ कोशिश करेगा. परंतु फिलहाल आदिवासी समाज की ओर से एकजुट होकर इसका विरोध जायज और जरूरी है.
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दस प्रदेशों में लागू है पेशा पंचायत कानून
संविधान के अनुच्छेद 243 M (1) के तहत अनुसूचित या शेड्यूल एरिया में पंचायत चुनाव वर्जित है. चूकि भारत के संसद ने भूरिया कमेटी की अनुशंसा-1995 पर अनुच्छेद 243 M 4 (b) के तहत संशोधन प्रस्ताव पारित कर दिया है तो पेसा पंचायत कानून- 1996 अब भारत के 10 प्रदेशों में लागू है. परंतु इसी तर्ज पर अनुसूचित क्षेत्रों में भी अनुच्छेद 243 ZC (1) के तहत नगर निकाय चुनाव वर्जित है. जबतक संसद में अनुच्छेद 243 ZC (3) का पालन करते हुए इसका संशोधन नहीं कर लेती है. अबतक पंचायत कानून की तरह नगर निकाय विस्तार का कानून संसद में पारित नहीं हुआ है. अतएव यह संविधान और आदिवासी हितों के खिलाफ है. गलत है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है
यहां गौर करने की बात यह है कि जब भी भारत के पार्लियामेंट में अनुसूचित क्षेत्रों में नगर निकाय चुनाव संबंधी संशोधन प्रस्ताव पारित किया जाएगा तो अनुसूचित क्षेत्रों में पेसा पंचायत कानून की तरह सभी नगर निकाय अध्यक्ष का पद आदिवासी के लिए आरक्षित होना तय है. अतः रांची नगर निगम चुनाव में वर्तमान एक गैर अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के लिए अध्यक्ष का पद आरक्षित करनेवाला चुनावी अधिसूचना कानून के खिलाफ है. सुप्रीम कोर्ट के 12.1.2010 के फैसला के खिलाफ है. क्योंकि अनुच्छेद 244 के तहत “अनुसूचित क्षेत्रों और जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन” का लक्ष्य है- आदिवासी समाज की सुरक्षा एवं संवर्धन करते हुए शांति और सुशासन को बहाल करना.
32 सालों के बाद शुरू हुआ पंचायत चुनाव
पेसा पंचायत कानून- 1996 के तहत धारा 4G में ” एकल पद आदिवासी आरक्षण ” के खिलाफ सभी कुरमी-महतो नेताओं ने झारखंड हाईकोर्ट में “धनंजय महतो एवं अन्य वर्सेस भारत सरकार एवं अन्य” का मुकदमा दायर किया था. मुकदमे में झारखंड हाईकोर्ट ने पेसा कानून 1996 को 2 सितंबर 2005 को असंवैधानिक करार दिया था. परंतु 4 सितंबर 2005 को संत जोसेफ क्लब, पुरुलिया रोड, रांची में आदिवासी समाज के प्रबुद्ध लोगों की एक विशेष बैठक में तय किया गया कि हाईकोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना एवं जमीन पर आंदोलन को खड़ा किया जाए. अंततः ” आदिवासी अधिकार मोर्चा ” का गठन किया गया, पूर्व सांसद सालखन मुर्मू को उसका मुख्य संयोजक एवं डॉ निर्मल मिंज, डॉक्टर करमा उरांव, बंधु तिर्की और चमरा लिंडा को संयोजक नियुक्त किया गया. 7 सितंबर 2005 को झारखंड बंद का आह्वान किया गया. जिसमें दो आदिवासी मारे गए. परंतु बहुत जद्दोजहद के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी 2010 को पेसा कानून 1996 के पक्ष में एकल पद आदिवासी आरक्षण के साथ अपना फैसला सुनाया और अंततः 32 वर्षों के बाद झारखंड में 2010 के अंत में पेसा कानून के तहत पंचायत चुनाव को किया जा सका है.
ग्राम सभाओं को पावर और पैसा सही ढंग से नहीं मिला
पेसा कानून 1996 के लिए सुखद समाचार है कि मध्य प्रदेश की सरकार ने राष्ट्रीय जनजाति गौरव दिवस- 15 नवंबर 2022 को पेसा कानून की नियमावली की अधिसूचना जारी कर दिया है. जबकि झारखंड सहित अन्य राज्यों में यह नियमावली निर्मित और लागू नहीं है. अंतत नियमावली की अनुपस्थिति में पेसा कानून-1996 के तहत ग्राम सभाओं को पावर और पैसा सही ढंग से अबतक नहीं मिल सके हैं. पंचायत के जनप्रतिनिधि पंगु बने हुए हैं.
षडयंत्र का हिस्सा बन चुके हैं कुरमी-महतो
कुरमी-महतो समाज, आदिवासी बनने और बनाने के षड्यंत्र का हिस्सा बन चुके हैं. परंतु दुर्भाग्य इन्होंने आदिवासी हितों की रक्षार्थ पेसा पंचायत कानून 1996 की रक्षा की जगह उसका विरोध किया था. झारखंड हाई कोर्ट में विरोध मुकदमा भी दायर किया था. उसी प्रकार आदिवासी बनने की कवायद के बावजूद सीएनटी / एसपीटी कानून में हुए गलत संशोधनों के खिलाफ 1996-97 में उन्होंने कोई आवाज बुलंद नहीं किया था. तब भी केवल सालखन मुर्मू के नेतृत्व में आदिवासी सेंगेल अभियान और डॉक्टर करमा उरांव के नेतृत्व में सीएनटी / एसपीटी कानून बचाओ संघर्ष समिति की ओर से ही जमीन पर आंदोलन किए गए थे. अब देखना यह है कि संविधान और आदिवासी हितों की रक्षार्थ शेड्यूल एरिया में गैर आदिवासी को नगर निगम अध्यक्ष बनाने के खिलाफ कुरमी-महतो मौन रहेंगे या असली आदिवासियों के साथ आवाज बुलंद करेंगे ?
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