Jamshedpur(Dharmendra Kumar) : रसायनिक उर्वरक बनाने वाली कंपनी इफको द्वारा मंगलवार को रविंद्र भवन में श्री लाल शुक्ल सम्मान समारोह का आयोजन किया गया. इस अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर वरिष्ठ साहित्यकार मनमोहन पाठक उपस्थित थे. मौके पर मनमोहन पाठक ने कहा कि हीरे की पहचान जौहरी ही कर सकता है. साहित्य जगत के हीरे कथाकार जयनंदन की पहचान श्रीलाल शुक्ल सम्मान समारोह की चयन समिति द्वारा किया जाना यह सिद्ध करता है. उन्होंने शोषित,पीड़ित,किसानो और कर्मचारी वर्ग के परेशानियों को अपनी कहानी एवं उपन्यास के माध्यम से समाज के समक्ष जोरदार तरीके से रखा है जो बड़ा ही साहसिक कार्य है. इस सम्मान के लिए उन्होंने जयनंदन को ढेरों बधाई दी. पाठक ने कहा कि कर्मचारियों व मजदूरों को हमेशा सम्मान दे.अस्वस्था के कारण मनमोहन पाठक ने ज्यादा बोल पाने में असमर्थता जाहिर की. स्वागत भाषण इफ्को के संयुक्त प्रबंध निदेशक राकेश कपूर ने दिया. उन्होंने इफ्को के उत्पाद के संबंध में विस्तार से बताया. साथ ही श्रीलाल शुक्ल साहित्य सम्मान पर भी प्रकाश डाला.
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जयनंदन का सम्मान गांव,किसान मजदूरों का सम्मान है – रविंद्र त्रिपाठी
इस अवसर पर श्रीलाल शुक्ल साहित्य सम्मान चयन समिति के सदस्य एवं कथाकार चिंतक रविंद्र त्रिपाठी ने कहा कि चयन समिति द्वारा कई चरण में चर्चा एवं विचार विमर्श के बाद इस सम्मान के लिए जयनंदन के नाम पर सभी सदस्यों की सहमति बनी.उन्होंने कहा कि कथाकार जयनंदन का सम्मान दरअसल गांव,किसान मजदूर शोषित पीड़ितों का सम्मान है.जयनंदन के लेखन में समाज में शोषितों पीड़ितों की परेशानीयां,गांव,किसानी की झलक मिलती है.
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श्रीलाल साहित्य सम्मान प्राप्त करना सौभाग्य की बात – जयनंदन
इस अवसर पर अपन् विटार रखते हुए कथाकार जयनंदन ने कहा कि मैं साहित्यकार बनना नहीं चाहता था. लेकिन हालात और परिस्थितियों ने मुझे लिखने पर मजबूर किया. मैं अपने अनुभवों को कागज पर उकेरता गया वो लोगों को पसंद आया इस तरह मेरी साहित्य यात्रा शुरु हुई. एक सीमांत गरीब किसान परिवार में जन्म लेने का दंश भी झेलना पड़ा. किसानी, मजदूरी, भूख गरीबी को बहुत सिद्दत से महसूस किया हूं. किस्मत ने करवट बदली और किसानी मजदूरी से टाटा स्टील काखाने में लोहा गलाने, छिलने और आकार देने वाला मजदूर बना दिया. फर्क सिर्फ इतना था कि यहां पेटभर भोजन और सर उठाकर जीने का अवसर मिला. उन्होंने कहा कि यह सम्मान मेरे पूरे खानदान के लिए बहुत बड़ी बात है. इस समारोह में उपस्थित लोगों का जयनंदंन ने आभार प्रकट किया.
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शॉल स्मृति चिन्ह और 11 लाख का चेक प्रदान किया गया
श्रीलाल शुक्ल सम्मान समारोह में अतिथियों द्वारा कथाकार जयनंदन को मुख्य अतिथि मनमोहन पाठक ने शॉल ओढ़ाकर, स्मृति चिन्ह और 11 लाख रुपये का चेक प्रदान किया. इससे पूर्व चयन समिति के सदस्य डॉ. जयप्रकाश कर्दम द्वारा प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया.
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2011 सो शुरू हुआ श्रीलाल शुक्ल सम्मान
ज्ञात हो कि इफको निदेशक मंडल के अनुमोदन से वर्ष 2011 में शुरू किए गए इस सम्मान से अब तक विद्यासागर नौटियाल, शेखर जोशी, संजीव, मिथिलेश्वर, अष्टभुजा शुक्ल, कमलाकांत त्रिपाठी, रामदेव धुरंधर, रामधारी सिंह दिवाकर, महेश कटारे, रणेन्द्र एवं शिवमूर्ति को सम्मानित किया गया है. इस सम्मान के अंतर्गत सम्मानित साहित्यकार को एक प्रतीक चिह्न, प्रशस्ति पत्र और ग्यारह लाख रुपये का चेक प्रदान किया जाता है. इसके चयन समिति के सदस्य अध्यक्ष चित्रा मुद्गल, मधुसूदन आनंद कथाकार- संपादक-जयप्रकाश कर्दम कथाकार चिंतक, रवीन्द्र त्रिपाठी लेखक फिल्म समीक्षक, मुरली मनोहर प्रसाद सिंह आलोचक, डॉ. दिनेश कुमार शुक्ल कवि एवं हिन्दी सलाहकार, इफको ,संयोजक: नलिन विकास वरिष्ठ प्रबंधक (हिन्दी), इफको भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रकोष्ठ शामिल है.
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कथाकार जयनंदन- संक्षिप्त परिचय
साहित्यकार,कथाकार जयनंदन का जन्म 26 फरवरी 1956 को नवादा (बिहार) के मिलकी गांव में हुआ था. जो टाटा स्टील से सेवानिवृत्त होने के पश्चात जमशेदपुर में निवास करते हुए अपनी साहित्यिक गतिविधियों के माध्यम से हिंदी साहित्य संपदा के भंडार को समृद्ध करने में संलग्न हैं. मुख्य रूप से प्रकाशित कृतियों में उपन्यास- ‘श्रम एव जयते, ”ऐसी नगरिया में केहि विधि रहना, ‘सल्तनत को सुनो गांव वालो शामिल है। कहानी संग्रह- ‘सन्नाटा भंग,”विश्व बाजार का ऊंट,’ एक अकेले गान्ही जी, ”कस्तूरी पहचानो वत्स,’दाल नहीं गलेगी अब, ”घर फूंक तमाशा, ‘सूखते स्रोत, ”गुहार गांव की सिसकियां, भितरघात, मेरी प्रिय कथाएं, मेरी प्रिय कहानियां, सेराज बैंड बाजा. नाटक- नेपथ्य का मदारी, हमला तथा हुक्मउदूली. वैचारिक लेखों का संग्रह- मंथन के चौराहे , जीवनी- राष्ट्र निर्माण के तीन टाटा सपूत चर्चित है.
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कहानियों के टीवी रूपांतरण चैनलों पर प्रसारित भी हुए है
देश की प्राय: सभी श्रेष्ठ और चर्चित पत्रिकाओं में लगभग सौ कहानियां प्रकाशित हो चुकी है. कुछ कहानियां का फ्रेंच, स्पैनिश, अंग्रेजी, जर्मन, तेलुगु, मलयालम, गुजराती, उर्दू, नेपाली आदि भाषाओं में अनुवाद भी किया गया है. कुछ कहानियों के टीवी रूपांतरण टेलीविजन के विभिन्न चैनलों पर प्रसारित भी हुए है. नाटकों का आकाशवाणी से प्रसारण और विभिन्न संस्थाओं द्वारा विभिन्न शहरों में मंचन भी किया जा चुका है.
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आनंद सागर स्मृति कथाक्रम सम्मान (लखनऊ) भी मिल चुका है
इस सम्मान से पहले 1984 में डॉ शिवकुमार नारायण स्मृति पुरस्कार, 1990 में बिहार सरकार राजभाषा विभाग द्वारा नवलेखन पुरस्कार, 1992 में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा युवा पीढ़ी प्रकाशन योजना के तहत सर्वश्रेष्ठ चयन के आधार पर उपन्यास ‘श्रम एव जयते’ का चयन और प्रकाशन, कृष्ण प्रताप स्मृति कहानी प्रतियोगिता (वर्तमान साहित्य), कथा भाषा प्रतियोगिता तथा कादम्बिनी अ. भा. कहानी प्रतियोगिता में कई बार कई कहानियां पुरस्कृत की जा चुकी है. 1993 में सिंहभूम जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन सम्मान, 1995 में जगतबंधु सेवा सदन पुस्तकालय सम्मान, 2001 में पूर्णिया पाठक मंच सम्मान, 2002 में 21वां राधाकृष्ण पुरस्कार। (रांची एक्सप्रेस द्वारा), 2005 का विजय वर्मा कथा सम्मान (मुंबई), 2009 में बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान (आरा), 2010 में झारखंड साहित्य सेवी सम्मान (झारखंड सरकार, राँची), 2010 में स्वदेश स्मृति सम्मान (तुलसी भवन, जमशेदपुर), 2013 में आनंद सागर स्मृति कथाक्रम सम्मान (लखनऊ) भी मिल चुका है.
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