Jamshedpur (Ashok kumar) : टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष वीजी गोपाल की हत्या 14 अक्तूबर 1993 को स्कूटर पर सवार बदमाशों ने दिन-दहाड़े गोली मारकर कर दी थी. घटना के बाद जमशेदपुर दहल गया था. इसके विरोध में भाजपा के पूर्व विधायक दीनानाथ पांडेय ने तब जोरदार आंदोलन किया था. आंदोलन में आम लोग भी शरीक हुये थे और खूब राजनीति भी हुई थी. तब एसपी परवेज हयात हुआ करते थे. इनके बाद ही डॉ. अजय कुमार को जमशेदपुर का नया एसपी बनाया गया था. अजय कुमार के प्रभार संभालने के पहले अपराधी वीर सिंह बोदरा, संजय ओझा और गरमनाला गिरोह का साहेब सिंह मुठभेड़ में मारा गया था. इस बीच टाटा स्टील के अधिकारी टीपी सिंह और ठाकुर जी पाठक की भी हत्या कर दी गयी थी. अधिकारियों की हत्या के बाद भाजपा की ओर से तब एसपी के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया गया था. इस बीच ही वीजी गोपाल की हत्या हो गयी थी. इस दौरान टाटा स्टील के प्रबंध निदेशक डॉ. जेजे ईरानी ने अपराध पर नियंत्रण के लिये अविभाजीत बिहार के सीएम लालू प्रसाद यादव से नया एसपी देने का आग्रह किया था.
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डॉ. अजय के कार्यकाल में मुठभेड़ में मारे गये थे कई अपराधी
डॉ. अजय कुमार ने 1994 में जमशेदपुर एसपी का प्रभार संभाला था. एसपी ने प्रभार संभालने के बाद सोनारी और मानगो बस स्टैंड में मुठभेड़ के दौरान अखिलेश सिंह गिरोह के सात गुर्गों को मार गिराया था. मुठभेड़ में मारे जाने वालों में नरेंद्र बहादुर सिंह, श्रवण कुमार, इशा, रंजन आहूजा और विमल लोहार शामिल है. जिस तरह से अपराधियों के खिलाफ अजय कुमार ने मुहिम छेड़ दिया था उससे अपराधी शहर छोड़कर भाग निकले थे या अंडरग्राउंड हो गये थे. डॉ. अजय कुमार की कार्यशैली से लोग गद-गद थे. तब उनकी चर्चा चौक-चौराहें पर भी खूब होती थी.
कुछ का शव तक बरामद नहीं हुआ
एसपी अजय कुमार के कार्यकाल में कुछ ऐसे अपराधी मुठभेड़ में मारे गये थे जिनका शव तक बरामद नहीं हुआ था. इसमें से आदित्यपुर का रहने वाला गरमनाला गिरोह का नरेंद्र बहादुर सिंह भी शामिल है. उनके कार्याकल में ही परसुडीह के तिलगढ़ में वीर सिंह बोदरा, सुंदरनगर में ओमियो उर्फ ओमी और सुंदरनगर में राजेश पगला को मुठभेड़ में मार गिराया गया था. बोकारो का चर्चित अपराधी भोला सिंह भी जमशेदपुर में ही मारा गया था. तब गुंजन मछुआ बचकर भागने में सफल रहा था, लेकिन दो साल के बाद उसकी बीमारी से मौत हो गयी थी.
बेहतर पुलिसिंग से अपराधियों में था खौफ
डॉ. अजय कुमार 1994 से 1996 तक जमशेदपुर में एसपी थे. इस बीच उनके बेहतर पुलिसिंग से अपराधियों में खौफ था. उनके भय से अपराधी या तो शहर छोड़कर भाग चुके थे या जेल के भीतर रहना ही खुद को सुरक्षित समझते थे. 1996 में ही उन्होंने आइपीएस की नौकरी छोड़ दी और टाटा समूह से जुड़ गये थे. यह नौकरी भी उन्हें रास नहीं आयी और राजनीति की राह पकड़ ली. अपने कार्यशैली के बूते ही लोगों ने उन्हें 2011 में जमशेदपुर का सांसद बनाया था.
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