LagatarDesk : पश्चिमी सिंहभूम के चक्रधरपुर प्रखंड के शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध मां भगवती केरा मंदिर में हर साल चैत्र महीने में विशेष पूजा होती है. इस बार विशेष पूजा 29 मार्च से शुरू हो गई है. यह विशेष पूजा 14 अप्रैल तक होगी. 29 मार्च को विधि-विधान से पूजा-अनुष्ठान के साथ शुभ घट होता है, जो 17 दिनों तक चलता है. इसके बाद 10 अप्रैल को धूमधाम से जात्रा घट मनाया जाता है. जात्रा घट के दिन रात में दाहिनी डूबा से कलश में पानी राजदरबार लाया जाता है.
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इसके बाद श्रद्धालु मां के सामने आध्या पड़ते हैं. फिर राज पुरोहित वैदिक मंत्रोचारण के पास पूजा कराते हैं. पूजा संपन्न होने के पश्चात शांति जल छिटा जाता है. इसके बाद कलश को मां भगवती केरा मंदिर में स्थापित किया जाता है. बता दें कि दाहिनी डूबा की खासियत यह है कि गर्मी के दिन में भी दो फीट गड्ढा करने पर इससे पानी निकलता है.
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कालिका घट के दिन दहकते अंगारों पर चलते व कांटों पर लेटते हैं भोक्ता
जात्रा घट के दूसरे दिन (11 अप्रैल) वृंदावन यात्रा निकलती है. इसमें दो लड़के वृंदावन से दो चटिया चटनी (चिड़िया) लेकर राजदरबार आते हैं. इसके बाद इनकी पूजा की जाती है और फिर उड़ा दिया जाता है. तीसरे दिन (12 अप्रैल) को राजदरबार में छउ नाच होता है. चौथे दिन (13 अप्रैल) केरा मंदिर में जलाभिषेक होता है. लाखों की संख्या में आये श्रद्धालु मां भगवती के साथ स्थापित काशी विश्वनाथ की शिवलिंग में जलाभिषेक करते हैं.
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इसी दिन रात में मंदिर परिसर में छऊ नृत्य का आयोजन किया जाता है. पांचवें दिन (14 अप्रैल) को अहले सुबह चार बजे कालिका घट यात्रा निकाली जाती है. दाहिनी डूबा से घटवाली (मां का स्वरूप लेकर) कलश में पानी भरकर मंदिर आते हैं. फिर भोक्ता (श्रद्धालु) दहकते अंगारों पर चलते हैं और कांटों पर लेटते हैं. इसके बाद पूजा का समापन हो जाता है.
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मां भगवती के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता : कुंवर दीपक
मां भगवती मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष कुंवर दीपक कुमार सिंहदेव ने बताया कि केरा मंदिर परिसर में 13 और 14 अप्रैल को केरा मेला लगता है. इस मेला में ओडिशा, झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ और बंगाल से घट पूजा देखने आते हैं. दीपक सिंहदेव ने बताया कि यह एक सिद्धपीठ मंदिर है. यहां आकर अगर कोई सच्चे मन से कुछ मांगता है तो उसकी मनोकामना पूरी होती है. मां भगवती के दरबार से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता.
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उन्होंने बताया कि मां भगवती केरा मंदिर का इतिहास करीब 300-400 साल पुराना है. यहां भारत से नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग मां के दर्शन करने आते हैं. कहा कि ऐतिहासिक केरा मंदिर धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है. कुंवर दीपक ने सभी से जात्रा घट में शामिल होने की अपील की है.
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जानें जात्रा घट के पीछे की रोचक कहानी
जानें क्या होता है जात्रा घट? क्यों इस दिन लोग निर्जला उपवास रखते है? क्यों लोग अध्या पड़ते हैं? क्यों मां साक्षात अपने रौद्र रूप में पुराना गढ़ (केरा राज दरबार) आती हैं. कुंवर दीपक ने बताया कि करीब 300 साल पहले भवानीपुर (केरा मंदिर) में एक परिवार हुआ करता था. काफी कोशिशों के बाद भी इस परिवार में बच्चा नहीं हो रहा था. ऐसी मान्यता है कि इस परिवार की महिला मां केरा को बहुत मानती थी. हर रोज मंदिर में पूजा- अर्चना करती थी. चैत्र पर्व के दौरान महिला ने मां के लिए निर्जला उपवास रखा.
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साथ ही मानसिक रखा कि अगर उसको संतान की प्राप्ति होगी तो वो हर साल निर्जला उपवास रखेगी. मां ने अपने भक्त की पुकार सुन ली. अगले ही साल उस महिला मे एक बच्चे ने जन्म दिया. ये परिवार कोई और नहीं, बल्कि खुद राजा साहेब लोकनाथ सिंहदेव का था. मां के आशीर्वाद से इस परिवार में 8 बच्चों ने जन्म लिया. धीरे-धीरे यह बात लोगों को पता चली. इसके बाद से जात्रा घट में श्रद्धालु निर्जला उपवास और अध्या देने लगे. तब से लेकर आज तक चैत्र के दौरान धूमधाम से जात्रा घट मनाया जाने लगा.