Saurav Singh
Ranchi : राज्य में झारखंड पुलिस का फर्जीवाड़ा लगातार उजागर हो रहा है. राज्य में जहां एक तरफ पुलिस जनता की रक्षा करने की बात कहती है वहीं दूसरी ओर पुलिस कुछ मामले में अपनी झूठी वाहवाही लूटने के लिए साजिश कर निर्दोषों को जेल भेज रही है. राज्य में पुलिस के गलत अनुसंधान के कारण नौ लोगों को छह साल निर्दोष होकर भी जेल में रहना पड़ा. राज्य में इस तरह के कई मामले सामने आये हैं, जिस वजह से पुलिस अपनी ही कार्यप्रणाली को लेकर सवालों से घिर गयी है. जानिए ऐसे मामले जिनमें पुलिस ने साजिश कर नौ निर्दोष लोगों को जेल भेज दिया था.
इसे भी पढ़ें – योग टीचर राफिया नाज BJP में शामिल, 15 समर्थकों ने भी थामा बीजेपी का दामन
मानव तस्करी के आरोप में 6 महीने तक जेल में रही महिला
22 जून 2017 रेल पुलिस ने अपनी जांच में जिस महिला को मानव तस्करी का दोषी पाया था. उस महिला को रेलवे न्यायालय ने क्लीन चिट दे दिया है. रेलवे न्यायालय ने यह पाया कि महिला पर लगाया गया मानव तस्करी का आरोप झूठा है. महिला सिमडेगा जिले की रहनेवाली है जिसका नाम जिलानी लुगुन है. जिलानी लुगुन मानव तस्करी करने के आरोप में गिरफ्तार की गयी थी. महिला को छह महीने तक जेल में रहना पड़ा था. जिलानी लुगुन पर जिस बच्ची की तस्करी करने का आरोप लगाया गया था, उस बच्ची द्वारा धारा 164 के तहत कोर्ट में जिलानी लुगुन के पक्ष में बयान दे दिया गया था. जिसके बाद कोर्ट ने जिलानी लुगुन को क्लीन चिट दे दिया था.
इसे भी पढ़े- नौकर पर दस लाख के गहने चोरी का आरोप, कर रहा इंकार
इंतजार अली को एक अधिकारी की प्रोन्नति के लिए फंसाया गया था
तकरीबन साढ़े छह साल पहले यानी बीते 20 अगस्त 2015 को रांची की हिंदपीढ़ी के चिकित्सक इंतजार अली को झूठे केस में फंसाया गया था. ये पूरी साजिश एक अधिकारी की प्रोन्नति के लिए रची गयी थी. इस राज का खुलासा गिरफ्तार दीपू खान ने किया. जो पुलिस का मुखबिर था. दीपू ने बताया था कि सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक अधिकारी को प्रोन्नति दिलाने के लिए विस्फोटक बरामदगी की साजिश रची गई थी. दीपू खान ने ही पुलिस को विस्फोटक की सूचना दी थी. दीपू खान पश्चिम बंगाल के रानीगंज का रहने वाला था. वह हिंदपीढ़ी इलाके में जमीन के धंधे से जुड़ा था. उसने पुलिस को बताया था कि उसने खुद ही विस्फोटक प्लांट किया था. यह एक अधिकारी को प्रोन्नति दिलाने के उद्देश्य से किया गया था.
विस्फोटक ऐसे स्थान पर रखना था, जहां कोई मुस्लिम व्यक्ति बैठा हो. वह इंतजार अली को नहीं जानता था. उसने केवल इतना जाना कि वह मुस्लिम है. इसलिए उसे फंसाने के लिए उसने वहीं पर विस्फोटक का बैग रख दिया था. इससे बरामदगी के बाद संबंधित अधिकारी की प्रोन्नति की संभावना प्रबल हो सकती थी. इसलिए यह साजिश रची गई थी. इस मामले में इंतजार अली को 56 दिनों तक जेल में भी रहना पड़ा था. बाद में उनकी रिहाई 16 अक्तूबर 2015 को रांची के बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा से हुई थी.
गांजा बरामदी के बाद पुलिस ने थपथपाई थी अपनी पीठ
25 अगस्त, 2019 को धनबाद के निरसा में पुलिस ने एक सेवरले गाड़ी से 39.300 किलो गांजा बरामद किया था. इस मामले में धनबाद पुलिस ने ईसीएल कर्मी चिरंजित घोष को गांजा तस्करी का किंगपिन बताते हुए आरोपी बनाया था. धनबाद पुलिस ने इस मामले में चिरंजीत को गिरफ्तार कर जेल भी भेज दिया था. चिरंजीत के जेल भेजे जाने के बाद उसकी पत्नी ने तत्कालीन डीजीपी केएन चौबे समेत राज्य पुलिस के अन्य अधिकारियों से मुलाकात कर इंसाफ की गुहार लगाई थी. तब मुख्यालय स्तर से मामले की जांच कराए जाने के बाद यह साबित हुआ था कि चिरंजीत को गलत तरीके से फंसा कर जेल भेजा गया था. पुलिस की पोल खुलने के बाद कोर्ट में तथ्यों की भूल बताते हुए चिरंजीत को 25 दिन बाद रिहा कराया था.
इसे भी पढ़े- नाबालिग बच्ची से बार-बार दुष्कर्म, गर्भपात भी कराया
निर्दोष होने के बाद भी पांच साल जेल में रहा जीतन मरांडी
गिरिडीह पुलिस ने जीतन मरांडी को नक्सली बताकर गिरफ्तार किया. आरोप लगाया गया कि वह 26 अक्टूबर 2007 को हुए चिलखारी नरसंहार का मास्टरमाइंड है. इस मामले में पुलिस ने जिन छह लोगों को चश्मदीद बताकर अदालत में 164 के तहत बयान दिलाया था, हाई कोर्ट ने उनकी गवाही को स्वीकार नहीं किया. पुलिस अनुसंधान का सबसे कमजोर पक्ष यह था कि प्राथमिकी दर्ज कराने वाले नुनूलाल मरांडी के सरकारी अंगरक्षक पूरन किस्कू ने अदालत में किसी भी नामजद आरोपी को नहीं पहचाना. पुलिस एक भी स्थानीय गवाह पेश नहीं कर सकी. जो आधा दर्जन गवाह थे, वे घटना स्थल से करीब तीस से चालीस किमी. दूर के थे.
चश्मदीद नुनूलाल की गवाही नहीं होना भी मुकदमें का कमजोर पक्ष रहा. पुलिस ने अपनी एक भूल को छिपाने के लिए जो गलती की, वह मुकदमें पर भारी पड़ी. हार्डकोर नक्सली जीतन मरांडी के नाम पर भूलवश दूसरे जीतन मरांडी जो झारखंड एवेन के सचिव थे. पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. बाद में जब असली जीतन मरांडी पकड़ाया, तो उसे भी जेल भेज दिया गया. पुलिस चार्जशीट में दो जीतन मरांडी की संलिप्तता बताई गई. जबकि चश्मदीद गवाहों ने एक ही जीतन मरांडी की संलिप्तता की बात अदालत को बतायी. इन तमाम सवालों को आरोपी के वकीलों ने हाई कोर्ट में उठाया जिसका कोई काट अभियोजन पक्ष के पास नहीं था. जिसे देखते हुए अदालत ने पांच साल बाद जीतन मरांडी को बरी किया.
इसे भी पढ़े- डेन्ड्राइट के नशे में धुत युवक ने ऑटो में बैठी महिला का मारा पॉकेट, हुआ गिरफ्तार
निर्दोष होकर भी पांच महीने जेल में रहे तीन युवक
रांची के चुटिया थाने की पुलिस ने जिस प्रीति नामक लड़की के फर्जी अपहरण व हत्या के बाद जला देने की झूठी कहानी गढ़कर तीन निर्दोष छात्रों को जेल भेजा था.इस केस में पुलिस ने प्रीति के अपहरण के बाद हत्या कर जलाने का मामला दर्ज किया और धुर्वा के तीन युवक अजित कुमार, अमरजीत कुमार व अभिमन्यु उर्फ मोनू को जेल भेज दिया. इसी दौरान अपने प्रेमी के साथ फरार हुई प्रीति करीब चार महीने बाद 14 जून 2014 को जिंदा वापस लौटी थी. जिसके बाद पांच महीने बाद तीनों युवक जेल से रिहा हुआ था.
इसे भी पढ़े- कानपुर : Corona का खौफ, डॉक्टर ने बेटे-बेटी और पत्नी को मौत के घाट उतारा, डायरी में लिखा, कोविड हम सबको मार देगा
शराब तस्करी के आरोप में 25 दिनों तक रखा था जेल में
रांची के तत्कालीन हटिया डीएसपी विनोद रवानी पर शराब माफिया के साथ मिलकर हटिया के रहने वाले दो निर्दोष व्यक्तियों को झूठे मामले में फंसा कर जेल भेजने का आरोप है. मामला 31 सितंबर 2018 का है. इस बात का जब खुलासा हुआ तो आनन-फानन में जांच करवाकर दोनों निर्दोष युवकों को जेल से बाहर निकाला गया. फर्जी शराब कांड में शामिल तीन थाना प्रभारी जिसमें धुर्वा डोरंडा और तुपुदाना के प्रभारी शामिल थे, उन्हें तुरंत लाइन हाजिर कर दिया गया. लेकिन हटिया के तत्कालीन डीएसपी पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी. जबकि पीड़ित परिवार वालों के अनुसार और पुलिस की रिपोर्ट में फर्जी शराब कांड की पूरी साजिश रचने का मास्टरमाइंड हटिया डीएसपी को ही बताया गया है.
इसे भी पढ़े- गढ़वा : जंगली हाथियों का कहर जारी, कई घरों को क्षतिग्रस्त किया, चट कर गये 6 क्विंटल धान