Ahmedabad : दूसरों की राय को स्वीकार करने और सहिष्णु(टॉलरेंट) होने का मतलब यह नहीं है कि किसी को अभद्र भाषा(हेट स्पीच) भी स्वीकार करनी चाहिए. गुजरात की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में शनिवार को आयोजित दीक्षांत समारोह में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने विचार रख रहे थे. अपने भाषण के क्रम में जस्टिस ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि हम जो बहुत से काम करते हैं, उसका केवल दीर्घकालिक प्रभाव होगा. हमें रोजमर्रा की परेशानियों के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए.
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आप जो कहते हैं, मैं उसे अस्वीकार करता हूं, लेकिन….
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने फ्रांसीसी दार्शनिक, इतिहासकर, लेखक वॉल्टेयर के प्रसिद्ध शब्द दोहराये कि आप जो कहते हैं, मैं उसे अस्वीकार करता हूं, लेकिन मैं इसे कहने के आपके अधिकार की रक्षा करूंगा… को हमारे अस्तित्व में शामिल किया जाना चाहिए. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा,गलतियां करना, दूसरों की राय को स्वीकार करना और सहिष्णु होना किसी भी तरह से अंधी अनुरूपता का अनुवाद नहीं करता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अभद्र भाषा के खिलाफ खड़ा न हुआ जाये.
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इस समय ब्रेकिंग न्यूज की हवा है
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, छात्रों ने बहुमत के राजनीतिक, सामाजिक और नैतिक संघर्षों के बढ़ते शोर और भ्रम के बीच बाहरी दुनिया में कदम रखा है, उन्हें अपने अपने विवेक और न्यायसंगत कारणों’ के मार्ग से निर्देशित किया जाना चाहिए. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, दूसरी ओर हवा इस समय की ब्रेकिंग न्यूज है, जो नयी सोशल मीडिया सनसनी है. कहा कि प्रचार की पतली परत जो हमें घेर लेती है. यह एक उपयोगी व्याकुलता हो सकती है, लेकिन हमारा असली काम वर्तमान पर काबू पाने या इसे बदलने में है.
न्याय सामाजिक-आर्थिक रूप से मजबूत वर्गों तक सीमित नहीं रहना चाहिए
बता दें कि कुछ दिन पहले डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि न्याय सामाजिक-आर्थिक रूप से मजबूत वर्गों तक सीमित नहीं रहना चाहिए. सरकार का कर्तव्य एक न्यायोचित और समतावादी सामाजिक व्यवस्था सुनिश्चित करना है. कहा था कि भारत जैसे विशाल देश में जहां जातिगत आधार पर असमानता मौजूद है, वहां प्रौद्योगिकी तक पहुंच का दायरा बढ़ा कर डिजिटल विभाजन को धीरे-धीरे कम किया जा सकता है.