Ranchi : हेमंत सोरेन कैबिनेट में पास 1932 की खतियान आधारित स्थानीय नीति का कांग्रेस पार्टी ने खुलकर समर्थन किया है. पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सह लोहरदगा के विधायक रहे सुखदेव भगत ने 1932 की खतियान आधारित स्थानीय नीति को एक संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दा बताया है. उन्होंने कहा है कि यह झारखंड की पहचान और अस्मिता से जुड़ा मुद्दा है. रांची प्रेस क्लब में गुरुवार को आयोजित प्रेस वार्ता में सुखदेव भगत ने कहा, स्थानीय नीति परिभाषित नहीं होने के कारण राज्य गठन के मूल उद्देश्य का क्षरण होता जा रहा है. जिस प्रकार भाषाई आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग ने ओड़िया बोलने वालों के लिए ओड़िशा, पंजाबी के लिए पंजाब, बंगाली के लिए पश्चिम बंगाल, मराठी के लिए महाराष्ट्र का निर्माण किया. अपनी पहचान और अस्मिता के लिए मद्रास को चेन्नई, बंबई को मुंबई, मुगलसराय को दीनदयाल नगर में परिवर्तित किया. उसी तरह 1932 का खतियान झारखंडियों की अस्मिता की पहचान है, तो इसे क्यों नहीं लागू किया जा सकता.
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पांचवीं अनुसूची में भी आदिवासियों के हित की बात
1932 के खतियान को संवैधानिक प्रावधान के प्रतिकूल बताने वालों पर भी कांग्रेसी नेता ने निशाना साधा. उन्होंने कहा, संविधान के स्थायी उपबंध ‘पांचवीं अनुसूची’ में अनुसूचित क्षेत्र के आदिवासियों की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक भाषा के संरक्षण का प्रावधान है. लोकतंत्र में विचारों में भिन्नता हो सकती है, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि 1932 की खतियान आधारित स्थानीय नीति झारखंड के लोगों की पहचान है. देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा है कि कोई भी भारतीय हर राज्य का स्थायी निवासी नहीं हो सकता.
झारखंड में विस्थापन की समस्या आज भी जस की तस बनी हुई है
सुखदेव भगत ने कहा, देश के विकास में हर तरह की मदद पहुंचाने वाला झारखंड आज भी विस्थापन की समस्या से जूझ रहा है. भाजपा- आजसू की पिछली सरकार ने 21.01 लाख एकड़ (21,01,471) जमीन लैंड बैंक के नाम पर चिन्हित की, जो विस्थापन की प्रक्रिया को ही आगे बढ़ाते रही. 1932 की खतियान आधारित स्थानीय नीति को लाकर ही झारखंडियों की जमीन और उसकी अस्मिता को बचाया जा सकता है.
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