Kiriburu : आदिवासी कल्याण केंद्र मेघाहातुबुरु के तत्वावधान में कोल गुरु लाको बोदरा की 102 वीं जयंती संस्थान के अध्यक्ष सिद्धेश्वर बिरुवा के नेतृत्व में मनाया गया. इस अवसर पर बच्चों व समाज के बुद्धिजीवियों द्वारा उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण किया गया तथा केक भी काटा गया. संस्था ने समाज के तमाम लोगों से अपील की कि वह वाड़ंग क्षिति लिपि को जन-जन तक पहुंचाएं. इस दौरान पालो सोय, सुषमा पुरती, जोंगा बुडीऊली, शशी सिंकू, सीता बनरा, सुनिती सुन्डी, गायत्री हेम्ब्रोम, शांति देवि, सुमित्रा सिंकू, असाई चाम्पिया, सुर्यमुनी पूर्ति, रोयाराम चाम्पिया, चोकरो सिंकू, दुल्लु हेस्सा, जटा शंकर सोय, जगदीश बिरूवा, नाजिर सिंकू, चन्द्रावती कलुन्डीया, आर के सिंकू , सनातन बिरूली, बीरबल गुड़िया, रश्मि हेस्सा आदि उपस्थित थे.
लाको बोदरा ने 1940 में की वाड़ंग क्षिति लिपि की खोज
“हो” भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार पंडित गुरुकुल लाको बोदरा ने आदिवासी समाज के उत्थान के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया. “हो” भाषा भारत में झारखंड, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के आदिवासी क्षेत्रों में बहुतायत में बोली जाती है. पंडित लाको बोदरा ने ही वर्ष 1940 में वाड़ंग क्षिति नामक लिपि की खोज की और उसे जन-जन में प्रचलित किया. लाको बोदरा की बांग्ला, ओड़िया, उर्दू, हिंदी और अंग्रेजी भाषा पर भी अच्छी पकड़ थी. लाको बोदरा एक बेहतरीन फुटबॉल खिलाड़ी और शानदार बांसुरी वादक भी थे. लाको बोदरा का जन्म 19 सितंबर 1919 को हुआ था जबकि उनका निधन 29 जून 1986 को हुआ. वे झींकपानी स्थित आदि संस्कृति एवं विज्ञान शोध संस्थान के संस्थापक भी रहे.