Kiriburu : सारंडा वन क्षेत्र में दर्जनों समस्याएं है, जिसका निराकरण किया जाना नितांत आवश्यक है. सारंडा के अंदर बेरोजगारी है. इसे दूर करने के साथ-साथ पर्यावरण को बचाने के लिए भी चुनौतीपूर्ण कार्य किया जाना चाहिए. सारंडा वन क्षेत्र में खदानें खुलने से ग्रामीण क्षेत्रों में बहने वाली नदी नालों का अस्तित्व समाप्ति के कगार पर है. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने साक्षात्कार के दौरान ये बाते कही. उन्होंने बताया कि वर्तमान सरकार को सारंडा पर ध्यान देने की जरूरत है. सारंडा वन क्षेत्र के अंदर रहने वाले ग्रामीणों की जीविका का आधार वन्य पदार्थ और खदान है. इस परिस्थिति में जो भी कंपनी वन क्षेत्र में आता है वह बाहर के ही लोगों को प्राथमिकता के साथ नियुक्त करता है. परिणाम स्वरूप गरीब आदिवासियों के लिए रोजगार समाप्त होता जा रहा है.
इसे भी पढ़ें :चाकुलिया : प्रचंड गर्मी पंचायत चुनाव के उम्मीदवारों के लिए बनी परेशानी का सबब
बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर है
फिलहाल अभी सारंडा क्षेत्र में खदानों के बंद हो जाने से बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर है. कुछ खदानें चल भी रही है परंतु टेक्नीशियन व कुशलता के नाम पर यहां के लोगों को नहीं लिया जाता है. सारंडा के ग्रामीणों तक पढ़ाई व तकनीकी ज्ञान नहीं पहुंच रहा है. परिणाम स्वरूप ज्ञान के अभाव में गरीब आदिवासी रोजगार प्राप्त करने से वंचित रह जाते है. अक्सर लोगों में कंपनी प्रबंधन के द्वारा सीएसआर की बात की जाती है, लेकिन क्षेत्र में ना तो पेयजल की समस्या का निराकरण हुआ है और ना ही शिक्षा की संरचना व विकास के लिए फंड दिया गया. ऐसा लगता है कि जमीनी स्तर पर एक प्रतिशत भी काम गुवा के आस-पास सारंडा में नहीं किया गया.
इसे भी पढ़ें :चाईबासा : रोमांचक मुकाबले में एमएल रूंगटा प्लस टू विद्यालय ने डीपीएस इंटर कॉलेज को एक रन से हराया
फंड से दूसरे जिलों में काम हो रहा है
उन्होंने कहा कि अक्सर देखा जा रहा है कि औद्योगिक संस्थान सारंडा वन क्षेत्र में चलता है और सीएसआर के फंड से दूसरे जिलों में काम हो रहा है. जहां कहीं भी फैक्ट्री व माइंस चल रही है वहां के ग्रामीणों को हर तरह की सुविधा मिलनी चाहिए. स्वास्थ्य की बात करें तो सारंडा इस दृष्टिकोण से आज भी पिछड़ा हुआ है. ग्रामीण क्षेत्र की सड़कें खदानों के कारण गड्ढों में तब्दील हो चुकी है.