Kiriburu (Shailesh Singh): हम पहले भी मजदूर थे, अब भी मजदूर हैं. हम वनोत्पाद बेच व अन्य मजदूरी कर दो पैसा कमा लेते थे, लेकिन अब स्कूल में मास्टर जी के लिये मुफ्त में मजदूरी करनी पड़ रही है. यह दर्द है पश्चिम सिंहभूम जिला अन्तर्गत सारंडा का अत्यंत नक्सल प्रभावित गांव दिकुपोंगा स्थित उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय के बच्चों का.
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विद्यालय में शिक्षक नहीं, कक्षा में बच्चे कुल सात
इस विद्यालय में 30 जुलाई की सुबह जब लगातार न्यूज का संवाददाता पहुंचा तो पाया कि विद्यालय में शिक्षक नहीं हैं. विद्यालय में पढ़ने आई गांव की दो मासूम बच्चियां पास से लकड़ी लाकर मध्याहन भोजन का खाना चूल्हा पर पका रही हैं. इनमें एक बच्ची चावल बनाती तो दूसरी सब्जी काटती नजर आई. विद्यालय में कुल सात बच्चे थे जो इधर-उधर खेलकर समय पार कर रहे थे. शायद ये बच्चे मध्याहन भोजन के लिये ही विद्यालय आए हों.
शिक्षक को इस स्थिति पर कोई शर्म नहीं
कुछ देर बाद मोटरसाइकल से विद्यालय में नियुक्त पारा शिक्षक जोगेन माझी पहुंचे. उन्होंने लगातार न्यूज के सवालों का जबाब देते हुए बिना कोई संकोच व शर्म के कहा कि अगर बच्ची खाना नहीं बनाएगी तो बच्चे खाना कैसे खाएंगे. उनसे जब विलंब से स्कूल आने का कारण पूछा गया तो वह बोलें कि खाना बनाने वाली रसोईया रांकी बहंदा को खोजने गए थे. जबकि बच्चों ने बताया की वह प्रतिदिन खाना बनाती है तथा शिक्षक पढा़ते नहीं हैं. इस पर शिक्षक जोगेन माझी ने बताया कि वह अकेले हैं. हमें कभी किताब लाने, राशन लाने, बीआरसी एवं सीआरसी की बैठक के अलावे अन्य अकस्मात बैठक हेतु मनोहरपुर जाना पड़ता है. ऐसे में हम क्या करें.
मात्र दो दिन अंडा मिलता है, फल कभी नहीं मिलता
इस विद्यालय में वर्ग पांच तक की पढा़ई होती है. नामांकित बच्चों की संख्या 50 है. आज उपस्थित बच्चों की संख्या 7 थी. बच्चों को शनिवार के खाना में खिचड़ी अथवा चावल मिलना था, लेकिन आज मास्टर जी बच्चों पर मेहरबान थे. वे आज बच्चों से चावल, अंडा एवं सब्जी बनवा रहे थे. इस दरियादिली की तहकीकात करने पर पता चला कि शनिवार को छोटानागरा में सप्ताहिक हाट-बाजार लगता है. इस दिन बच्चों की उपस्थिति काफी कम रहती है. ऐसे दिन जब बच्चे कम होते हैं तो मास्टर जी अंडा बनवाते हैं. बच्चों को सप्ताह में तीन दिन अंडा के अलावे खाने में फल आदि भी देना होता है. लेकिन मात्र दो दिन अंडा मिलता है, फल कभी नहीं मिलता है.
सारंडा के सुदूरवर्ती गांवों की शिक्षा व्यवस्था में कब होगा सुधार
सबसे आश्चर्य की बात यह रही कि जब लगातार के संवाददाता इस स्कूल से दूसरे स्कूल की ओर रवाना हुये तो मास्टर जी भी मोटरसाइकल स्टार्ट कर बच्चों को स्कूल में अकेला छोड़ चलते बने. बडा़ सवाल यह है कि बच्चों की शिक्षा हेतु तमाम प्रकार के पैसा खर्च करने के बावजूद बच्चों को उचित शिक्षा क्यों नहीं मिल पा रही है. आखिर कब सारंडा के सुदूरवर्ती गांवों के ऐसे विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था में सुधार होगी.