- यूनिवर्सिटी में 68.71 लाख रुपये जीएसटी घोटाला का मामला
Jamshedpur (Anand Mishra) : कोल्हान यूनिवर्सिटी में जीएसटी घोटाले में राजभवन के आदेश पर यूनिवर्सिटी की ओर से एफआईआर दर्ज कराये जाने के बाद आरोपी अधिकारियों के भी पक्ष आने लगे हैं. हालांकि यह मामला विश्वविद्यालय को कर्मचारियों की आपूर्ति करने वाली एजेंसी के साथ किये गये एकरारनामे के विपरीत जीएसटी का भुगतान किये जाने का है. एजेंसी के बजाय विश्वविद्यालय की ओर से जीएसटी का भुगतान किया गया है, जो 68 लाख 71 हजार रुपये है.
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क्या है मामला
आपूर्तिकर्ता सुपर स्टार एजेंसी के साथ एकरारनामे में यह तय हुआ था कि जीएसटी का भुगतान एजेंसी की ओर से किया जायेगा. इसके विपरीत विश्वविद्यालय की ओर से जीएसटी का भुगतान किया गया है. एजेंसी की ओर से विश्वविद्यालय समेत 10 कॉलेजों के लिए कर्मचारियों की आपूर्ति की जा रही है. इन कर्मचारियों के तीन वर्ष 2019 से 2022 तक के पारिश्रमिक के एवज में विश्वविद्यालय की ओर से 68 लाख 71 हजार रुपये जीएसटी का भुगतान किया गया है.
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तत्कालीन प्रभारी कुलपति ने ही दिया था एफआईआर का निर्देश
यह मामला प्रकाश में आने के बाद तत्कालीन प्रभारी कुलपति सह प्रमंडलीय आयुक्त मनोज कुमार के निर्देश पर एक कर्मचारी को निलंबित कर दिया गया था. मामले की जांच के बाद उन्होंने संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर करने का निर्देश दिया था. बावजूद कार्रवाई नहीं की गयी. अंततः राजभवन की ओर से इस मामले में संज्ञान लेते हुए आदेश दिया गया, तब पिछले दिनों विश्वविद्यालय की ओर से एफआईआर दर्ज कराया गया है.
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छह के खिलाफ एफआईआर
इस मामले में विश्वविद्यालय की ओर से चार अधिकारियों समेत कुल छह लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करायी गयी है. इनमें पूर्व व पदमुक्त किये जा चुके वित्त सलाहकार रमेश वर्मा, पूर्व वित्त पदाधिकारी डॉ पीके पानी, पूर्व कुलसचिव डॉ जयंत शेखर, मौजूदा सीसीडीसी डॉ मनोज महापात्रा, कर्मचारी पार्थ चक्रवर्ती एवं एक सेवानिवृत्त कर्मचारी शामिल हैं.
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कौन है जिम्मेदार
इस मामले में आरोपी बनाये गये विश्वविद्यालय के पूर्व वित्त पदाधिकारी डॉ पीके पानी ने बताया कि वे हों या वित्त सलाहकार उन्हें अंधेरे में रख कर यह वित्तीय गड़बड़ी की गयी है. चूंकि एजेंसी के साथ किया विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच क्या समझौता हुआ था, इसकी जानकारी उन्हें न थी और न अब है. क्योंकि समझौते के क्रम में वित्त सलाहकार या वित्त अधिकारी की की भूमिका नहीं होती है. इसके अलावा संबंधित फाइल उनके पास नहीं होती है. उसके कस्टोडियन सीसीडीसी होते हैं. वर्क ऑर्डर के आधार पर जो बिल दिया जाता है, वित्त पदाधिकारी द्वारा उसी की गणना की जाती है. इस तरह डॉ पानी के अनुसार उनका संकेत सीसीडीसी की ओर है.
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विभागीय स्तर से भी होगी कार्रवाई
विश्वविद्यालय के मौजूदा कुलसचिव डॉ राजेंद्र भारती ने बताया कि इस मामले में एफआईआर दर्ज कराया गया है. राजभवन के आदेश पर यह कार्रवाई की गयी है. इसके साथ ही मामले में आरोपी छह लोगों के खिलाफ विभागीय स्तर से भी कार्रवाई की जायेगी.