Latehar : जिले में महुआडांड़ प्रखंड के ग्वालखांड़ गांव में अबतक पक्की सड़क नहीं बन पायी है. आज भी इस गांव के लोग मरीजों को चारपाई पर लेकर पांच किलोमीटर पैदल चल कर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाने को मजबूर है. भारत की आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी ग्वालखांड़ गांव में मूलभूत विकास भी नहीं हो पाया है. कोई भी प्रतिनिधि इस गांव के विकास के लिए काम नहीं कर रहे है.
रेंगाई पंचायत के पारही गांव से ग्वालखाड़ तक तकरीबन पांच किलोमीटर तक कोई पथ नहीं है. पहाड़ मे बसे इस गांव के आदिवासियों की जिंदगी पहाड़ पर बने पगडंडियों के सहारे चलती है. ग्वालखांड़ गांव में आदिम जनजाति कोरवा और किसान समुदाय के लोग निवास करते हैं. गांव की आबादी तकरीबन तीन सौ हैं. कोरवा समुदाय के 25 और किसान परिवार के तकरीबन 30 घर है.
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गांव में अधिकांश बच्चों का जन्म घर में ही होता है
स्वास्थ्य सहिया प्यारी नगेसिया ने बताया कि इस गांव में अधिकांश बच्चों का जन्म घर में ही होता है. सड़क नहीं होने के वजह से मरीज अस्पताल तक समय पर नही पहुंच पाते हैं. उन्होने बताया कि पिछले वर्ष गांव की एक गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा उठी थी और उसकी तबीयत काफी खराब हो गयी थी. उसे समय पर अस्पताल पहुंचाना जरूरी था. बाद मे उसे खाट मे लिटाकर चार लोग कंधे मे ढोकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गये थे. लेकिन रास्ते में ही बच्चे का जन्म हो गया. बच्चा तो सुरक्षित बच गया. लेकिन समय पर इलाज नही मिलने से महिला की मौत हो गई. वहीं 70 वर्षीय रामचंद्र नगेसिया ने बताया कि उन्होने कई महीने से बैंक से पेंशन की राशि नहीं निकाली है. चलने फिरने में असमर्थ हैं. गांव में सड़क नहीं होने के कारण कोई टेंपो या सवारी गाड़ी भी नहीं चलती है.
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लोगों के पास साईकिल तक नहीं
गांव के सुरेंद्र कोरवा, डोगंचू कोरवा, पौलुस कोरवा एवं राजेश कोरवा ने बताया कि गांव तक जाने के लिए कोई सड़क नहीं है. इसलिए गांव में एक भी साइकिल नहीं हैं. हमलोगों को पहाड़ी रास्ते से प्रखंड मुख्यालय आना जाना करते हैं. जिसमें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. किसी काम से प्रखंड मुख्यालय आने जाने मे पूरा दिन लग जाता है.सबसे अधिक परेशानी बीमारी या किसी महिला का प्रसव कराने के दौरान होती है.
ग्राम प्रधान राधेश्याम नगेशिया ने बताया कि कई बार सड़क बनाने की मांग की गयी है. लेकिन अभी तक सड़क नहीं बन पाया है. उन्होंने बताया कि इस पहाड़ पर जीवन पहाड़ से भी विकराल है. बरसात के दिनों में तो हमारा संपर्क प्रखंड मुख्यालय से कट जाता है.
पलायन बना मजबूरी
सुरेंद्र कोरवा ने बताया कि गांव की भौगोलिक बनावट व पठारी क्षेत्र होने के कारण गांव में कोई खेती नहीं होती है. हां, कुछ मकई अवश्य हो जाता है. उन्होने बताया कि गांव मे रोजगार का साधन नहीं होने के कारण पलायन यहां की मजबूरी बन गयी है. यहां के युवा अन्य राज्यों में रोजगार के लिए पलायन कर जाते हैं. इस गांव की कई युवतियां दिल्ली व अन्य शहरों में दाई का काम करती हैं.
समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया जा रहा
महुआडांड प्रखंड विकास पदाधिकारी अमरेन डांग ने बताया कि गत दिनों चंपा पंचायत में सरकार आपके द्वार कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. इसमें ग्वालखांड़ के लोगों ने अपनी समस्याएं रखी थी. उसे दूर करने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होने बताया कि इस पथ में वन विभाग एवं कुछ रैयतों की जमीन आ रही है.
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