New Delhi : संसद के मानसून सत्र में UCC बिल पेश होने की संभावना कम है. मानसून सत्र 20 जुलाई से शुरू हो रहा है. विधि आयोग ने UCC बनाने की प्रक्रिया पर सार्वजनिक सुझाव और आपत्तियां देने की समय सीमा 28 जुलाई तक बढ़ा दी है. पहले इसकी अंतिम तिथि गुरुवार,13 जुलाई थी. बता दें कि विधि आयोग ने 14 जून को अधिसूचना जारी कर यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) पर लोगों से सुझाव मांगे थे. नेशनल खबरों के लिए यहां क्लिक करें
खबर है कि गुरुवार तक इस पर 60 लाख से ज्यादा सुझाव मिल चुके थे. इससे पहले 2018 में यूसीसी पर महज 76 हजार सुझाव मिले थे. इतनी बड़ी संख्या में आज तक किसी कानून या मामले पर राय नहीं मिली थी. जानकारी के अनुसार इन सुझावों को छांटने के लिए एआई टूल्स का सहारा लिया जायेगा.
90 प्रतिशत से ज्यादा सुझाव ई-मेल से मिलने की खबर
सूत्रों के अनुसार 90 प्रतिशत से अधिक सुझाव ईमेल से मिले हैं. इन्हें आसानी से एआई टूल्स द्वारा छांटा जा सकेगा. जानकारी सामने आ रही है कि ईमेल के अलावा जो अन्य सुझाव लिखित रूप से मिले हैं, उसकी अलग से स्क्रूटनी होगी. अंग्रेजी-हिंदी सहित अन्य भाषाओं में भी सुझाव मिले हैं. उनका अनुवाद किया जायेगा.
मुस्लिम संगठनों की ओर से सबसे ज्यादा आपत्तियां और सुझाव आये
खबर है कि UCC को लेकर सबसे ज्यादा आपत्तियां और सुझाव मुस्लिम संगठनों द्वारा भेजे गये हैं. इनमें से वे सुझाव अलग किये जायेंगे, जिनमें यूसीसी का विरोध किया गया है. आने वाले दिनों अधिकतर संगठनों, संस्थाओं, गैर सरकारी निकायों सहित विशेषज्ञ केंद्रों के प्रतिवेदनों को बुलाया जायेगा. जिससे आमने-सामने सुनवाई हो सके. दिलचस्प बात यह है कि हजारों सुझावों की शब्दावली एक-दूसरे से हूबहू मिलती है. सूत्रों के कहना है कि ये सुझाव किसी के इशारे पर प्रेषित किये गये हैं.
कनाडा, ब्रिटेन और खाड़ी देशों से भी सुझाव मिले
UCC मामले में विदेशों से भी सुझाव मिले हैं. ज्यादातर सुझाव कनाडा, ब्रिटेन और खाड़ी देशों से आये हैं. इन पर भी आयोग विचार करेगा. जानकारी मिली है कि विधि आयोग आगामी 40-50 दिनों में इन पर सुनवाई और निपटारे की प्रक्रिया पूरी करने की कवायद में है, सूत्रों का मानें तो यूसीसी का मूल ढांचा सुझाव आमंत्रित करने से पहले ही तैयार कर लिया गया है
एक बात और कि आयोग को बड़ी संख्या में पीड़िताओं ने अपनी समस्याओं से रूबरू कराया है. इस क्रम में विभिन्न धर्मों की महिलाओं ने लिख कर भेजा है कि तलाक लेने सहित संपत्ति में हिस्सेदारी और बच्चों की कस्टडी लेने में उन्हें निजी कानूनों की बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इसमें बड़ी परेशानी होती है.